रायपुर। 2 अगस्त को संसद में पेगासस विवाद पर विपक्ष के गतिरोध के बीच ही बिना किसी चर्चा के सरकार ने साधारण बीमा व्यवसाय राष्ट्रीयकरण संशोधन विधेयक पारित कर यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी सहित साधारण बीमा क्षेत्र की राष्ट्रीयकृत कंपनियों के निजीकरण का एलान कर दिया. मोदी सरकार के इस कदम को देश बेचने का कदम बताते हुए आम बीमा की सभी कंपनियों के कर्मचारियों, अधिकारियों के संयुक्त मंच ने आज देश भर में जबरदस्त हड़ताल की और इसे वापस लेने की मांग की. आम बीमा कर्मियों के हड़ताल के समर्थन में देश भर में जीवन बीमा कर्मियों ने भी ऑल इंडिया इंश्योरेंस एम्पलाईज एसोसिएशन के आव्हान पर प्रदर्शन कर सरकार के निजीकरण के फैसले को वापस लेने की मांग की.

रायपुर के पंडरी में हड़ताली कर्मचारियों, अधिकारियों ने यूनाइटेड इंडिया के क्षेत्रीय कार्यालय में प्रदर्शन कर सभा की. इस सभा को संबोधित करते हुए एआईआईआई ई ए के सहसचिव धर्मराज महापात्र ने कहा कि यह विधयेक पेश करते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने चतुराई से सफाई देते हुए कहा कि यह आम बीमा के निजीकरण के लिए नहीं है. जबकि हकीकत में यही है. उनका यह तर्क कि इससे बीमा कंपनी में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ेगी, बीमा ले पहुंच बढ़ेगी, बीमा धारको के गिट सुरक्षित होंगे और अर्थव्यवस्था का इससे तेजी से विकास होगा. झूठ के अलावा कुछ नहीं है. क्योंकि इस विधेयक में जो संशोधन किए गए है उसके जरिए सरकार ने इन कंपनियों में 51% हिस्सेदारी रखने की बाध्यता को समाप्त कर दिया गया है, जो पूर्व में संसद को उसके द्वारा दिए गए वचन का ही उल्लंघन है.

सरकार ने साथ ही एक नई चीज जोड़ दी है. जिसके अनुसार 51% से कम सरकारी हिस्सेदारी पर अब यह कानून भी लागू नहीं होगा यानी इस कंपनी का पूरा नियंत्रण ही निजी हाथों में दे दिया जाएगा. इसका अर्थ यह भी है कि केवल यूनाइटेड इंडिया कंपनी ही नहीं आगे चलकर वह सभी आम बीमा कंपनी को ही निजीकृत करने कदम उठाएगी. यह देश की संपत्ति की खुली लूट है. उन्होंने कहा कि इन कंपनियों की 2 लाख करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति आधार है. उसमें भी 1 लाख 78 हजार करोड़ रुपए की राशि इन्होंने सरकारी क्षेत्र में निवेश की है. केवल 12 रुपए के प्रीमियम पर 2 लाख रुपए का प्रधानमंत्री बीमा सुरक्षा योजना यही कंपनी उपलब्ध करा रही है. जिसमे 100 रुपए के प्रीमियम की तुलना में बड़ा घाटा सहकार इन कंपनियों को 265 रुपए का दावा भुगतान करना पड़ रहा है.

आयुष्मान स्वास्थ्य बीमा योजना का भार भी यही कंपनिया उठा रही है. निजी क्षेत्र की आम बीमा कंपनी तो यह काम कर ही नहीं रही है. घाटे के इन योजनाओं को सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी ही घाटा सहकार चला रही है. जिसका इन्हें सरकार की ओर से मुआवजा देने की बजाय सरकार इन्हीं कंपनियों को नीलाम कर रही है. कोरोना आपदा के दौर में भी इन कंपनियों ने श्रेष्ठ प्रदर्शन किया है. आपदा को अवसर में बदलने और आत्मनिर्भर भारत के नारे लगाने वाली सरकार देश की बुनियाद को ही नीलाम कर आत्मनिर्भरता को दांव पर लगा रही है.

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