दिल्ली. गौसेवा के नाम पर सरकार से पैसा वसूलने वाली संस्थाओं और अपनी दुकानदारी चमकाने वालों को एक जर्मन महिला आईना दिखा रही है. राज्य के धमतरी जिले की एक गौशाला में हाल ही में 200 गायों की मौत का मुद्दा न सिर्फ राज्य में बल्कि देश भर में चर्चा का विषय बना रहा.
देश के तमाम राज्यों में इस तरह की घटनाएं अक्सर सामने आती हैं. जहां गौसेवा के नाम पर कहीं सरकारी अनुदान डकार लिया जाता है तो कभी संस्थाएं गौसेवा के नाम पर मिलने वाली सरकारी सहायता से गायों की सेवा के बजाय खुद की सेवा करती हैं. अक्सर गौशालाओं में गायों की दयनीय स्थिति और भूख-प्यास से मरने की खबर न सिर्फ पशु प्रेमियों के लिए काफी दुखद होती हैं बल्कि पूजा की जाने वाली गौमाता की हालत देखकर तकलीफ भी होती है.
ऐसे कथित गौसेवकों को एक जर्मन महिला आईना दिखाने का काम कर रही है. जहां देश के लोग अपनी ही गौमाता के साथ बेरूखी और बेदिली से पेश आ रहे हैं वहीं जर्मनी की साठ वर्षीय फ्रेडरिक इरिना बर्निंग एक हजार से भी ज्यादा बीमार, लाचार औऱ घायल गायों की सेवा कर चुकी हैं. गौरतलब है कि इनमें ज्यादातर वे गायें हैं जो दूध देने में सक्षम नहीं हैं. एक टूरिस्ट के तौर पर करीब चालीस साल पहले भारत आने वाली इरिना भारत घूमने के मकसद से आई थी लेकिन उनका मन मथुरा में ऐसे लगा कि वो यहीं की होकर रह गईं. मथुरा के पास गोवर्धन के राधाकुंड में जर्मन मैय्या के नाम से मशहूर इरिना ने करीब पंद्रह साल पहले एक टीनशेड में गौशाला की शुरुआत की. खास बात ये है कि उनके ट्रस्ट का नाम जर्मन मैय्या गौ सेवा ट्रस्ट है. उनकी गौशाला की खास बात ये है कि जो भी बीमार, घायल और विकलांग गाय उनकी गौशाला में आती है उसकी सेवा करके उसे स्वस्थ और तंदुरूस्त बनाने के पूरे प्रयास किए जाते हैं. गायों के ठीक होने के बाद उनके गौपालक या तो उन्हें वापस ले जाते हैं या फिर किसी गौसेवक को वो गायें दान में दे दी जाती हैं. जो गायें चलने-फिरने में असमर्थ, बुजुर्ग या बीमार होती हैं उन्हें गौशाला में ही रखकर उनकी देखभाल की जाती है. उन्हें किसी को नहीं दिया जाता. आज उनके आश्रम में इसी तरह की करीब 1200 गायें हैं.
इरिना कहती हैं कि उन्हें बीमार और लाचार गायों की देखभाल के लिए हर माह लाखों रूपये चाहिए होते हैं. चूंकि मुझे मिलने वाली मदद इतनी कम होती है कि मैं जर्मनी में अपनी प्रापर्टी से होने वाली आय से काफी हद तक गौशाला पर होने वाले खर्च को वहन करती हूं.
इरिना को न तो सरकार से कोई पर्याप्त मदद मिलती है और न ही गौसेवा के नाम पर काम करने वाले एनजीओ से किसी किस्म की कोई सहायता मिलती है फिर भी इरिना अपनी गौशाला में आने वाली किसी भी लाचार, बीमार या घायल गाय को न नहीं कहती हैं. यही वजह है कि लोग इरिना को प्यार और सम्मान से जर्मन मैय्या कहते हैं.