बर्लिन. जर्मनी में मुसलमानों पर मस्जिद टैक्स लगाने पर विचार हो रहा है। ये ठीक वैसे ही होगा जैसे ईसाई चर्च टैक्स देते हैं। जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल की सीडीयू पार्टी के सांसद थोर्स्टन फ्राई का कहना है कि मस्जिद टैक्स एक अहम कदम है जिससे जर्मनी में इस्लाम बाहरी देशों से मुक्त हो जाएगा। जर्मनी में कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट ईसाईयों से टैक्स लिया जाता है जिससे चर्च की गतिविधियों के लिए जरूरी आर्थिक राशि मुहैया कराई जाती है। यह टैक्स सरकार जमा करती है जिसे बाद में धार्मिक अधिकारियों को सौंप दिया जाता है।
मस्जिदों के लिए फिलहाल ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिसके कारण वे चंदे पर निर्भर होती हैं। विदेशी संगठनों और सरकारों से मिलने वाली वित्तीय मदद कई चिंताएं भी पैदा करती है। अकसर सवाल उठते हैं कि इस तरह की मदद के सहारे चरमपंथी विचारधारा को फैलाया जा रहा है। इस बारे में जर्मनी में सक्रिय धार्मिक मामलों की टर्किश इस्लामिक यूनियन का नाम खास तौर से लिया जाता है जो सीधे तौर पर तुर्की की सरकार से जुड़ी है।
अधिकारियों का अनुमान है कि आठ करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले जर्मनी में 47 लाख मुसलमान रहते हैं। इस आंकड़े में वे सभी लोग हैं जिनके परिवार पारंपरिक तौर पर मुस्लिम हैं जबकि धार्मिक रीति रिवाजों पर पूरी तरह अमल करने वाले मुसलमानों की संख्या इससे कहीं कम हो सकती है। जर्मनी के सत्ताधारी गठबंधन में शामिल एसपीडी पार्टी के एक सांसद बुखार्ड लिश्का इस बात पर सहमत है कि मस्जिद टैक्स से जर्मनी में इस्लाम ज्यादा आत्मनिर्भर बनेगा। बर्लिन में प्रगतिशील मस्जिद की संस्थापक सेयरान अटेस भी इस तरह के टैक्स को लेकर सहमत हैं।
जर्मनी की तरह ऑस्ट्रिया, स्वीडन और इटली जैसे कई यूरोपीय देशों में भी कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट संस्थानों को धन देने के लिए चर्च टैक्स लिया जाता है। हालांकि यह कहकर इसकी आलोचना भी की जाती है कि धार्मिक रीति रिवाजों को मानने वाले सभी ईसाईयों से टैक्स क्यों वसूला जाता है। चूंकि यह टैक्स सरकार जमा करती है, इसलिए आलोचकों को लगता है कि सरकार और चर्च के बीच विभाजन रेखा धुंधली हो रही है।
जर्मन सरकार ने देश की मस्जिदों को आर्थिक मदद देने वाले देशों से आग्रह किया है कि वे ऐसी किसी भी रकम के बारे में जर्मन अधिकारियों को बताएं. इस कदम से जर्मन मस्जिदों में कट्टरपंथ को रोकने में मदद मिलने की उम्मीद है। जर्मन विदेश मंत्रालय चाहता है कि सऊदी अरब, कतर, कुवैत और दूसरे खाड़ी देशों से अगर जर्मनी में मौजूद मस्जिदों को कोई मदद भेजी जाती है, तो इसका ब्यौरा दर्ज किया जाए। सरकार ने घरेलू और विदेशी खुफिया सेवाओं से इस बात पर नजर रखने को कहा है कि कौन मदद भेज रहा है और वह किसको मिल रही है। जर्मनी के संयुक्त आतंकवाद विरोधी सेंटर (जीटीएजेड) की रिपोर्टों के आधार पर सरकार 2015 से जर्मनी में अरब खाड़ी देशों से आए सलाफी मिशनरियों की गतिविधियों की निगरानी कर रही है। 2015 में लाखों शरणार्थी जर्मनी आए थे।