बिलासपुर। गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय के 72 कर्मचारियों का 15 साल से अधिक समय से चल रहा न्याय संघर्ष अब भी जारी है. हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लगातार जीत के बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा इन कर्मचारियों को नियमित नहीं किया गया है.

यह भी पढ़ें : बिलासपुर मेमू ट्रेन हादसा: 23 दिन बाद चश्मदीद महिला ALP रश्मि राज का गोपनीय बयान दर्ज

विश्वविद्यालय में एलडीसी और एमटीएस पदों पर कार्यरत ये कर्मचारी वर्ष 1997 से पूर्व दैनिक वेतन भोगी के रूप में सेवाएं दे रहे थे. शासन के सामान्य प्रशासन विभाग के आदेश पर सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनी तो 5 मार्च 2008 और विश्वविद्यालय के आदेश 26 अगस्त 2008 के अनुसार सभी कर्मचारियों को नियमित कर वेतनमान दे दिया गया था.

मार्च 2009 तक नियमित वेतनमान मिलने के बाद विश्वविद्यालय ने बिना किसी आदेश या सूचना के अप्रैल 2009 से दोबारा इन्हें दैनिक वेतनभोगी मानकर भुगतान शुरू कर दिया. कर्मचारियों ने इस निर्णय को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में लगाई. जिसके बाद पिछले 15 साल से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वाद दायर किए गए, यहां से इनके पक्ष में फैसला आने के बाद भी आज तक न्याय के लिए भटक रहे हैं.

कर्मचारियों ने बताया कि इस मामले में हाईकोर्ट ने 6 मार्च 2023 को कर्मचारियों के पक्ष में निर्णय देते हुए 26 अगस्त 2008 से नियमितीकरण का लाभ प्रदान करने का आदेश दिया. विश्वविद्यालय ने इस आदेश के विरुद्ध डिवीजन बेंच में और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाएं खारिज हो गईं.

कर्मचारियों के मुताबिक, हाईकोर्ट के आदेश के बाद गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी ने मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू याचिकाएं दायर कीं, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 12 फरवरी 2025 को निरस्त कर दिया. इसके बावजूद कर्मचारी आज तक नियमितीकरण और आर्थिक लाभ से वंचित हैं. यूनिवर्सिटी प्रबंधन शीर्ष न्यायालयों के आदेश तक की अवहेलना कर रही है.

सेंट्रल यूनिवर्सिटी के 72 कर्मचारी पिछले 15 वर्षों से न्याय पाने लड़ाई लड़ रहे हैं. कर्मचारियों ने बताया कि इन वर्षों में 8 कर्मचारियों की मृत्यु हो गई, जबकि 31 मई 2025 को रिटायरमेंट की उम्र होने पर 18 कर्मचारियों को बिना आदेश और बिना किसी वित्तीय लाभ के सेवा से हटा दिया गया. उन्हें न तो कोई पेंशन दी जा रही है, न ही प्रोविडेंट फंड की राशि ही उन्हें मिली है.

सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं करने पर कर्मचारियों द्वारा दायर अवमानना याचिकाएं अभी भी लंबित हैं. कर्मचारियों का आरोप है कि शीर्ष अदालत के स्पष्ट आदेशों का पालन नहीं कर विश्वविद्यालय प्रशासन न्यायिक अवमानना कर रहा है. कर्मचारियों ने अपनी आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए फिर से कोर्ट से न्याय दिलाने की अपील की है.

क्यूरेटिव पिटीशन पर निर्णय का इंतजार

जीजीयू मीडिया प्रभारी प्रो. मनीष श्रीवास्तव ने बताया कि 1997 से दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों को 2008 में नियमित करने के बाद फिर से 2009 में दैनिक वेतनभोगी किए जाने के बाद हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में मामला चला. वहां से आए आदेश के बाद यूनिवर्सिटी प्रबंधन ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन (उपचारात्मक याचिका) दायर की है. इसका निर्णय आने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी.