श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले बड़ा झटका देते हुए डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी (DPAP) के संस्थापक अध्यक्ष गुलाम नबी आज़ाद ने गुरुवार को घोषणा की कि वे “अप्रत्याशित परिस्थितियों” के चलते अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए प्रचार नहीं कर पाएंगे.
आज़ाद ने एक स्थानीय समाचार एजेंसी को दिए गए बयान में कहा, “अप्रत्याशित परिस्थितियों ने मुझे प्रचार अभियान से पीछे हटने के लिए मजबूर किया है… उम्मीदवारों को यह आकलन करना चाहिए कि क्या वे मेरी मौजूदगी के बिना आगे बढ़ सकते हैं. अगर उन्हें लगता है कि मेरी अनुपस्थिति उनके अवसरों को प्रभावित करेगी, तो उन्हें अपनी उम्मीदवारी वापस लेने की स्वतंत्रता है.”
18 सितंबर को 24 सीटों के लिए होने वाले पहले चरण के चुनाव के लिए डीपीएपी टिकट पर 13 उम्मीदवारों द्वारा नामांकन दाखिल करने के दो दिन बाद यह घोषणा की गई. वहीं पार्टी प्रवक्ता सलमान निजामी का कहना है कि आजाद की घोषणा केवल पहले चरण के मतदान से संबंधित है, पार्टी की स्थापना के दो साल बाद डीपीएपी उम्मीदवारों का भविष्य अनिश्चित है.
जानकारी के अनुसार, पार्टी के भीतर इस बात को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है कि 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को क्रमशः दूसरे और तीसरे चरण के मतदान के लिए कोई उम्मीदवार सूची होगी या नहीं.
कांग्रेस से आजाद के बाहर होने के बाद 2022 में अपनी स्थापना के बाद से, डीपीएपी कभी भी उम्मीद के मुताबिक उड़ान नहीं भर पाई. लोकसभा चुनावों में नगण्य प्रदर्शन के बाद विधानसभा चुनाव आजाद के लिए अपनी क्षमता साबित करने की पहली बड़ी परीक्षा होने की उम्मीद थी.
हिंदू बहुल जम्मू क्षेत्र से एक मुस्लिम चेहरा और पूर्व मुख्यमंत्री, आजाद की डीपीएपी ने पार्टी की स्थापना के समय कांग्रेस के कई शीर्ष नेताओं को आकर्षित किया था. इसके बाद के दो वर्षों में इनमें से लगभग सभी नेता या तो कांग्रेस में वापस चले गए या फिर निर्दलीय के तौर पर अपने विकल्पों पर विचार कर रहे हैं.
पूर्व उपमुख्यमंत्री तारा चंद, पूर्व मंत्री मनोहर लाल शर्मा और पूर्व विधायक बलवान सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं को पार्टी के गठन के तीन महीने बाद ही निष्कासित कर दिया गया, जबकि पूर्व मंत्री और डीपीएपी के उपाध्यक्ष अब्दुल रशीद डार, शाम लाल भगत, नरेश गुप्ता और पार्टी की कश्मीर महिला विंग की अध्यक्ष साइमा जान समेत अन्य नेताओं ने आखिरकार पार्टी छोड़ दी.
हाल के लोकसभा चुनावों में कमजोर डीपीएपी अनंतनाग-राजौरी और उधमपुर-डोडा निर्वाचन क्षेत्रों में पूरी तरह से विफल रही, जहां इसने अपने उम्मीदवार उतारे थे. इसके दोनों उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई और वे दोनों संसदीय सीटों के 36 विधानसभा क्षेत्रों में से एक में भी बढ़त हासिल करने में कामयाब नहीं हो पाए.
उस समय भी आजाद ने अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट से खुद चुनाव लड़ने के फैसले से पीछे हटकर अपनी पार्टी को चुनाव से ठीक पहले झटका दिया था. परिसीमन के बाद जम्मू और कश्मीर दोनों प्रांतों के हिस्सों को शामिल करने वाले निर्वाचन क्षेत्र के रूप में, यह आज़ाद के लिए एक आदर्श सीट थी.
लोकसभा चुनावों में मिली हार के बाद डीपीएपी के वरिष्ठ नेता ताज मोहिउद्दीन और आदिवासी नेता हारून खटाना ने पार्टी छोड़ दी. मंगलवार को आज़ाद के वफादार गुलाम मोहम्मद सरूरी ने यह घोषणा करके सबको चौंका दिया कि वह किश्तवाड़ के इंदरवाल विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय के रूप में अपना नामांकन दाखिल कर रहे हैं.