इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी(Giorgia Meloni) की अगुवाई वाली दक्षिणपंथी पार्टी ‘ब्रदर्स ऑफ इटली’ ने संसद में एक विवादास्पद विधेयक पेश किया है, जो देशभर में सार्वजनिक स्थानों पर बुरका और निकाब जैसे चेहरे ढकने वाले परिधानों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का प्रावधान करता है। सरकार का कहना है कि यह कदम ‘इस्लामी अलगाववाद’ और ‘सांस्कृतिक अलगाव’ को रोकने के उद्देश्य से उठाया गया है। मेलोनी सरकार इसे धार्मिक कट्टरवाद से जोड़ती है। विधेयक के अनुसार, इस नियम का उल्लंघन करने वालों पर 300 से 3,000 यूरो (लगभग 26,000 से 2.6 लाख रुपये) तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी की अगुवाई वाली दक्षिणपंथी पार्टी ‘ब्रदर्स ऑफ इटली’ ने 8 अक्टूबर को संसद में एक विवादास्पद विधेयक पेश किया है। यह विधेयक स्कूल, विश्वविद्यालय, दुकानें, कार्यालय और अन्य सभी सार्वजनिक स्थानों पर चेहरे को पूरी तरह ढकने वाले कपड़ों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का प्रावधान करता है। पार्टी के तीन सांसदों द्वारा पेश इस प्रस्ताव का उद्देश्य ‘धार्मिक कट्टरवाद और धर्म-प्रेरित घृणा’ का मुकाबला करना बताया गया है। मेलोनी सरकार का दावा है कि यह कदम इटली की सामाजिक एकजुटता को मजबूत करेगा और ‘सांस्कृतिक अलगाव’ को जड़ से समाप्त करेगा।
क्या है पूरा मामला, समझिए
इटली में पहले से ही 1975 का एक पुराना कानून मौजूद है, जो सार्वजनिक स्थानों पर चेहरे को पूरी तरह ढकने पर रोक लगाता है, लेकिन इसमें बुरका या निकाब का स्पष्ट उल्लेख नहीं है। मेलोनी की गठबंधन साझेदार ‘लीग’ पार्टी ने इस साल की शुरुआत में चेहरे को ढकने वाले परिधानों पर सीमित प्रतिबंध की कोशिश की थी, लेकिन अब ब्रदर्स ऑफ इटली इसे देशव्यापी स्तर पर लागू करना चाहती है। बुरका एक पूर्ण शरीर-ढकने वाला परिधान है, जिसमें आंखों पर जालीदार स्क्रीन जैसा कपड़ा होता है, जबकि निकाब चेहरे को ढकता है लेकिन आंखों के आसपास का हिस्सा खुला रहता है।
मेलोनी सरकार के एक मंत्री ने कहा, “यह विधेयक फ्रांस से प्रेरित है, जहां 2011 में बुरका पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया था। हम इटली की पहचान और एकता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं।” वर्तमान में मेलोनी की गठबंधन सरकार संसद में बहुमत रखती है, इसलिए इस विधेयक के पारित होने की संभावना मजबूत मानी जा रही है, हालांकि औपचारिक बहस की तारीख अभी तय नहीं हुई है।
इस्लामी संस्थाओं के विदेशी फंडिंग पर निगरानी
इसके अलावा, यह विधेयक धार्मिक संगठनों पर वित्तीय पारदर्शिता के नए नियम भी लागू करता है, खासकर उन पर जो राष्ट्र के साथ औपचारिक समझौते नहीं रखते। सरकार का कहना है कि इससे मस्जिदों और अन्य इस्लामी संस्थाओं की विदेशी फंडिंग पर निगरानी बढ़ेगी, जो कट्टरवाद को बढ़ावा दे सकती है। विधेयक के मसौदे में कहा गया है, “इस्लामी कट्टरवाद का प्रसार… निस्संदेह इस्लामी आतंकवाद के लिए प्रजनन स्थल है।”
यह विधेयक धार्मिक संगठनों पर वित्तीय पारदर्शिता के नए नियम भी लागू करता है, खासकर उन पर जो राष्ट्र के साथ औपचारिक समझौते नहीं रखते। कोई भी मुस्लिम संगठन इस तरह का समझौता नहीं करता है, इसलिए उन्हें अपने सभी फंडिंग स्रोतों का खुलासा करना होगा। जिन समूहों को राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा माना जाएगा, उन्हें फंडिंग नहीं दी जाएगी। सरकार का कहना है कि यह कदम मस्जिदों और अन्य इस्लामी संस्थाओं की विदेशी फंडिंग पर निगरानी बढ़ाने के उद्देश्य से है, ताकि कट्टरवाद को रोका जा सके।
क्यों उठाया गया यह कदम?
प्रधानमंत्री मेलोनी, जो अपनी दक्षिणपंथी विचारधारा के लिए जानी जाती हैं, ने इस विधेयक को ‘इस्लामी अलगाववाद’ के खिलाफ एक मजबूत हथियार बताया। उनका मानना है कि ऐसे परिधान न केवल सुरक्षा के लिए खतरा हैं, बल्कि समाज में अलगाव को बढ़ावा देते हैं। वर्तमान में मेलोनी की गठबंधन सरकार संसद में बहुमत रखती है, इसलिए इस विधेयक के पारित होने की संभावना मजबूत मानी जा रही है। इटली में मुस्लिम आबादी लगभग 5 लाख है, और हाल के वर्षों में प्रवास और सांस्कृतिक एकीकरण के मुद्दे राजनीतिक बहस का केंद्र बने हुए हैं। मेलोनी सरकार ने पहले भी प्रवासियों पर सख्त नीतियां अपनाई हैं, जैसे भूमध्य सागर में अवैध नावों को रोकना।
विधेयक की घोषणा के बाद राजनीतिक और सामाजिक हलकों में तीखी बहस छिड़ गई है। दक्षिणपंथी समर्थक इसे ‘राष्ट्रीय गौरव’ की रक्षा बता रहे हैं, जबकि विपक्षी दल और मुस्लिम संगठन इसे ‘इस्लाम-विरोधी’ करार दे रहे हैं। इटली के प्रमुख मुस्लिम संगठन ने कहा, “यह महिलाओं की स्वतंत्रता पर हमला है और धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।”
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