दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट ने एक बलात्कार मामले में झूठी गवाही देने के आरोप में एक महिला के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का आदेश दिया है. साथ ही, कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया. न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी की प्रतिष्ठा को बनाने में वर्षों लगते हैं, जबकि उसे नष्ट करने के लिए कुछ झूठी बातें ही पर्याप्त होती हैं.
अदालत ने आरोपी को बरी करते हुए स्पष्ट किया कि रिकॉर्ड से यह सिद्ध होता है कि अभियोक्ता ने अदालत के समक्ष झूठा बयान दिया और बलात्कार तथा धमकी की एक झूठी कहानी बनाई. वास्तव में, उज्जैन की एक महिला ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने उसे दिल्ली में घूमने के लिए बुलाया और नवंबर 2019 में नबी करीम क्षेत्र के एक होटल में उसके साथ बलात्कार किया.
एडिशनल सेशन जज अनुज अग्रवाल ने महिला के द्वारा दिए गए झूठे बयान के आधार पर आरोपी को बरी कर दिया. अदालत ने यह स्पष्ट किया कि यदि अभियोक्ता की गवाही विश्वसनीय और भरोसेमंद होती है, तो उसे किसी स्वतंत्र पुष्टि की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन इस मामले में पीड़िता की गवाही कुछ कारणों से अपेक्षित गुणवत्ता की नहीं है, जिनका पहले उल्लेख किया जा चुका है.
एएसजे अग्रवाल ने 4 अप्रैल के निर्णय में उल्लेख किया, “वास्तव में, रिकॉर्ड से यह स्पष्ट होता है कि अभियोक्ता ने इस न्यायालय के समक्ष झूठी गवाही प्रस्तुत की और बलात्कार/धमकी की एक झूठी कथा बनाई.”
जज ने यह स्पष्ट किया कि अदालत ने यह स्वीकार किया कि बलात्कार के झूठे आरोप ने आरोपी को भी पीड़ित बना दिया है. ‘पीड़ित’ की परिभाषा केवल शिकायतकर्ता तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि ऐसे मामलों में भी हो सकती है जहां आरोपी स्वयं वास्तविक पीड़ित बन जाते हैं और न्याय की मांग करते हुए अदालत के समक्ष उपस्थित होते हैं.
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एएसजे अनुज अग्रवाल ने व्यक्त किया कि प्रतिष्ठा का निर्माण करने में एक व्यक्ति का संपूर्ण जीवन व्यतीत होता है, जबकि इसे नष्ट करने के लिए कुछ झूठ ही पर्याप्त होते हैं. इस संदर्भ में, उनका मानना है कि केवल आरोपी को बरी करना उस पीड़ा की भरपाई नहीं कर सकता, जिसे उसने यौन उत्पीड़न की झूठी आरोपों के कारण जघन्य अपराधों के मुकदमे के दौरान सहन किया.
अदालत ने निर्देश दिया कि, “चूंकि यह स्पष्ट है कि महिला ने इस न्यायालय के समक्ष गलत बयान दिया है, इसलिए उसके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 229/231 के तहत झूठी गवाही के अपराध के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 379 के अंतर्गत शिकायत इस अदालत के अहलमद द्वारा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (केंद्रीय) की अदालत में प्रस्तुत की जाए.”
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