संदीप सिंह ठाकुर, लोरमी। पूरा विश्व अंतरराष्ट्रीय टाइगर डे मना रहा है। यह दिवस आज छत्तीसगढ़ प्रदेश के लिए सुखद खुशखबरी ले कर आया है। जानकारी के अनुसार अप्रैल 2024 में हुए फोर्थ फेस टाइगर सर्वे में अचानकमार टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या बढ़कर अब 10 हो गई है। इसमें 3 मेल सहित 7 फीमेल टाइगर शामिल है। बता दें कि एटीआर में टाइगर सेंसस 2022 में बाघों की संख्या केवल 5 आंकी गई थी। यह ही नहीं ग्रीष्मकालीन सर्वे के दौरान एटीआर में विलुप्त प्रजाति का मेलानिस्टिक लेपर्ड (ब्लैक पैंथर) का होने का भी पुष्टि हुई हैं। निसंदेह यह पूरे छत्तीसगढ़ के लिए अत्यंत हर्ष का विषय है कि एटीआर प्रबंधन की लगातार मेहनत रंग लाई।

यह एटीआर प्रबंधन की ओर से निरंतर बाघों की संख्या वृद्धि की दिशा में किए गए कार्यों और योजनाओं का परिणाम है, जिसके कारण आज बाघों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। इसी दिशा में अगर प्रबंधन निरंतर प्रयासरत रहे तो भविष्य में और बेहतर परिणाम आएंगे। इससे न केवल जंगल की उत्पादकता बढ़ेगी, साथ ही इकोटूरिसम में वृद्धि होगी और अन्य देशों से आए सैलानियों एवं वन्यजीव प्रेमियो की संख्या बढ़ेगी। इससे जहा स्थानीय जनसमुदाय को अधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे, वही वन्यजीव प्रेमियों, वानिकी के विद्यार्थियों के रिसर्च स्कॉलर्स के लिए एक बेहतर विकल्प राज्य में ही उपलब्ध हो पाएगा।

एटीआर प्रबंधन की कड़ी मेहनत और स्ट्रेटजी

बता दें कि बाघों की संख्या वृद्धि यू ही नहीं हुई है। उपसंचालक यूआर गणेश के अनुसार इसके पीछे एटीआर प्रबंधन की कड़ी मेहनत और स्ट्रेटजी है। इसमें एक ओर जहां रिजर्व के कोर और बफर क्षेत्र के 108 बीटो में नियुक्त पैदल गार्ड और परिसर रक्षकों की ओर से जीपीएस बेस्ड एम-स्ट्राइप मोबाइल एप से प्रतिदिन 10 km की पेट्रोलिंग की जाती है, वही कैमरा ट्रैप दैनिक चेकिंग कर बाघों सहित अन्य जानवरों की सटीक निगरानी सुनिश्चित होती है। बाघों की विशेष निगरानी के लिए यहां stpf की टीम भी गठित है, जिनका मुख्य कार्य केवल बाघों की ट्रैकिंग करना है, हर विपरीत परिस्थिति और मौसम में भी लगातार गश्त कर बाघों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है। इन सभी प्रकार की व्यवस्थाओं टेक्निकल मॉनिटरिंग के लिए कोटा में जीआईएस सेल भी स्थापित है, जहां प्रत्येक सप्ताह और माह में प्राप्त सभी डाटा का एनालिसिस कर रिपोर्ट सीधे डिप्टी डायरेक्टर और फील्ड डायरेक्टर को दी जाती है। चूंकि एटीआर नेटवर्क विहीन क्षेत्र है, इस के लिए यहां वायरलेस तकनीकी की मदद से सभी प्रकार के निर्देशों और सूचनाओं का सुलभ प्रसार सुनिश्चित हो पाता है।

मुख्य वन्यप्रानी अभिरक्षक सुधीर कुमार अग्रवाल के मार्गदर्शन में रहवास विकास कार्य जैसे चारागाह विकास, ग्रीष्मकाल में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करना, समय सीमा में मुआवजे का प्रकरण तैयार करना संवेदनशीलता से एटीआर कार्य कर रहा है, जिसका दूरगामी परिणाम जरूर देखने को मिलेगा।

निवासरत जनसमुदाय की बड़ी भूमिका

बाघों की सुरक्षा और संरक्षण में एटीआर प्रबंधन के अतिरिक्त सबसे बड़ी भूमिका यहां निवासरत जनसमुदाय की है। जिनके प्रत्यक्ष भागीदारी और प्रकृति संरक्षण के प्रयासों के कारण ही आज वन्यजीव यहा सुरक्षित है। यहां वन्यजीवों और वनों की सुरक्षा के लिए 31 वन प्रबंधन समिति गठित है। इनके प्रत्यक्ष सहयोग के कारण ही अग्नि सुरक्षा,अतिक्रमण, अवैध कटाई और शिकार पर समग्र नियंत्रण स्थापित हो पाता है। एटीआर प्रबंधन के हर प्रयास में ग्रामीणों का भूमिका अहम होती है और वे स्वस्फूर्त ढंग से प्रबंधन का सहयोग करते है। यही कारण है कि आज भी एटीआर वन क्षेत्र सुरक्षित और संरक्षित है। एटीएर अंदर एवं लगे हुए गांव के युवकों के सपने को भी पंख दे रहा हैं। एटीआर प्रबंधन की ओर से इको पर्यटन में ड्राइवर, गाइड के रूप में स्थानीय युवकों और महिलाओं को आजीविका प्रदान करते ही हैं। साथ ही भिलाई, बैंगलोर शहरों में आयोजित प्रशिक्षण से युवकों को रोज़गार उपलब्ध कराया जा रहा हैं, जो वन्यप्राणियों की सुरक्षा एवं पार्क प्रबंधन में जनभागीरदारी एवं सहयोग सुनिश्चित करता हैं ।

सको लेकर एटीआर के फील्ड डायरेक्टर यूआर गणेश ने बताया कि टाइगर का भविष्य में मॉनिटरिंग एवं प्रबंधन का सुधृढ़ीकरण हेतु नया TCP निर्माण, कॉरिडोर प्लान सहित नया कार्य योजना का निर्माण जारी हैं। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए एटीआर को और आगे बढ़ाने के लिए निरंतर सहयोग प्रदान करते रहने की अपील की है।