सुशील सलाम, कांकेर. जिले के सुदूरवर्ती गांव में आज भी लोग लकड़ी के पुल बनाकर अपना रास्ता खुद बनाने को मजबूर हैं. जी हां हम बात कर रहे हैं कांकेर जिले के सुदूरवर्ती गांव बासकुंड पंचायत के आश्रित गांव ऊपर तोनका, नीचे तोनका, चलाचूर की, जहां ग्रामीण कई वर्षों से चिनार नदी में पुल बनाने की आस लगाए हुए हैं, लेकिन ग्रामीणों की इस गंभीर समस्या को शासन प्रशासन ना जनप्रतिनिधि किसी ने अब तक नहीं सुनी.

ग्रामीणों ने बताया कि चिनार नदी पार करने के बाद 3 गांव ऊपर तोनका, नीचे तोनका और चलाचुर के ग्रामीणों को बारिश के महीनों में नदी पार करने के लिए हर साल लकड़ी का पुल बनाना पड़ता है. लकड़ी के पुल के सहारे ग्रामीणों को आने जाने की सुविधा होती है. ग्रामीण कई बार पुल निर्माण कराने नेता व अधिकारियों से निवेदन कर चुके हैं पर यहां अब तक पुल नहीं बन पाया है.

आखिर कब तक साथ देगा लकड़ी का पुल

ग्रामीण लकड़ी का अस्थायी पुल बनाकर जान जोखिम में डालकर आवाजाही कर रहे. 2 वर्ष पहले इन गांवों तक पहुंचने पक्की सड़क तो बन गई है पर चिनार नदी पर पुल नहीं बन पाया. ऐसे में ग्रामीणों ने एकजुट होकर चंदा करके श्रमदान कर लकड़ी का पुल बनाया है, जिससे लोग आना जाना कर रहे हैं. स्कूली छात्र छात्राओं को इस पुल के बन जाने से अब राहत है. ग्रामीणों का कहना है कि अब उफनते नदी को पार करते वक्त हादसे का डर खत्म हो चुका है, लेकिन हादसा बताकर नहीं आती है. लकड़ी का पुल आखिर कब तक साथ देगा. बहरहाल अभी तो ग्रामीणों ने अपने आने जाने के लिए बांसबल्ली का जुगाड़ कर यह पुल बना लिया है, लेकिन इस नदी में पुल कब बनेगा, जिसका इंतजार करते ग्रामीण थक चुके हैं.

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