नई दिल्ली। जातीय हिंसा की आग में सुलग रहे मणिपुर के हालात को देखते हुए केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाया है. सोमवार को गृह मंत्रालय ने मैतेई चरमपंथी संगठनों-पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और इसकी राजनीतिक शाखा, रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट (आरपीएफ), यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) और इसकी सशस्त्र शाखा मणिपुर पीपुल्स आर्मी (एमपीए) को गैरकानूनी घोषित कर पांच साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया है.

भाजपा के नेतृत्व वाली मणिपुर सरकार द्वारा आरक्षित वनों से आदिवासियों को निकालने का अभियान शुरू किए जाने के बाद से पहाड़ियों पर उग्र संघर्ष शुरू हो गया था. इसके बाद मैती समुदाय को जनजाति दर्जा मिलने की संभावना पर आदिवासियों में आक्रोश और अधिक भड़क गया.

मैती समुदाय को एसटी का दर्जा दिए जाने के विरोध में तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) ने ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकालने की घोषणा की. यह मार्च चूड़चंदपुर के तोरबंग क्षेत्र में निकाला गया. इस प्रदर्शन में हजारों की संख्या में लोग शामिल हुए. प्रदर्शन के दौरान आदिवासी और गैर-आदिवासी समुदाय में झड़प हो गई, जिसने देखते ही देखते जातीय हिंसा का रूप ले लिया.

आरक्षण की मांग कर रहा मैती समुदाय

राज्य में बहुसंख्यक आबादी वाला मैती समुदाय तकरीबन 10 वर्षों से एसटी का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहा है. राज्य सरकार द्वारा विचार नहीं करने पर मैती ट्राइब यूनियन ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कुछ समय पहले यूनियन केस जीत गई. पिछले माह हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर केंद्र सरकार को मैती समुदाय को एसटी का दर्जा देने के लिए सिफारिश भेजने के निर्देश दिए थे. इसके बाद से ही नगा और कुकी आदिवासी समुदाय में आक्रोश था.

10 प्रतिशत भूभाग में रहता है मैती समुदाय

मैती समुदाय राज्य का गैर-जनजाति समुदाय है. इस समुदाय की जनसंख्या राज्य की कुल आबादी की 53 प्रतिशत है. यह समुदाय घाटी में रहता है और घाटी का क्षेत्रफल पूरे राज्य का महज 10 प्रतिशत है. राज्य का 90 प्रतिशत भूभाग पहाड़ियों और वनों से घिरा है. इस क्षेत्र में नगा और कुकी समुदाय रहता है, जिनकी आबादी तकरीबन 40 प्रतिशत है. जनजाति समुदाय राज्य के किसी भी क्षेत्र में रह सकते हैं, लेकिन गैर-जनजाति के लोग घाटी में ही रह सकते हैं.