छत्तीसगढ़ सरकार की नीतियाँ खनिज संपदा के अधिकतम दोहन व खनिज आधारित उद्योगों की स्थापना पर केन्द्रित रही जिन्हें वर्तमान समय में और तेज गति से आगे बढ़ाया जा रहा है जिसके गंभीर दुष्परिणाम भी अब हमारे सामने आने लगे हैं l इस वर्ष बिलासपुर शहर का तापमान 49 डिग्री तक पहुँच गया जो देश में सबसे अधिक रहाl सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ के तापमान में लगातार औसत वृद्धि हो रही है l यह वृद्धि महज संयोग नहीं हैं बल्कि, अंधाधुंध व अनियंत्रित औद्योगिकीकरण, खनन, शहरीकरण और परिवहन की देन है जिसके लिए बड़े पैमाने पर जंगलो को काटा जा रहा हैं और प्राकृतिक जल स्रोतों को नष्ट किया जा रहा हैं l व्यापक वन क्षेत्र वाले हमारे राज्य में तापमान का यह आंकडा न सिर्फ चिंता का विषय है बल्कि पर्यावरण में हो रहे बदलाव, भविष्य के गंभीर संकट की ओर भी इशारा कर रहा हैं l ये तमाम आरोप छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन सामाजिक संगठन की ओर से लगाए गए हैं।
संस्था के सदस्य आलोक शुक्ला का कहना है कि इन पर्यावरणीय दुष्प्रभावों को जानबूझकर नजरंदाज कर वर्तमान केन्द्रीय व राज्य सरकार कार्पोरेट घरानों के मुनाफे के लिए भारी पैमाने पर खनन, बिजली व अन्य जुड़ी हुई परियोजनाओं को स्थापित कर रहीं हैं l यहाँ तक कि हसदेव अरण्य, मांड रायगढ़, और मैनपाट जैसे पर्यावरणीय संवेदनशील वन क्षेत्र में भी परियाजनाओं को स्वीकृति प्रदान की जा रही हैं l कोरबा और रायगढ़ जिले में 4 कोल ब्लॉक को बचाने के लिए प्रस्तावित लेमरू एलिफेंट रिजर्व को ही निरस्त कर दिया गया जिससे मानव-हाथी संघर्ष लगातार बढ रहा हैंl हसदेव अरण्य जिसे वनों के घनत्व, जैव विविधता, वन्यप्राणियों का आवास, हसदेव बांगो बांध का केचमेंट और आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण खनन गतिविधियों से मुक्त रखने के लिए नो गो क्षेत्र घोषित किया गया था l उस क्षेत्र में मंत्रालय ने अपने ही प्रवधानों से मुकरते हुए अदानी जैसी कंपनियों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से 6 खदानों का आवंटन विभिन्न राज्य सरकार की कंपनियों को किया l हसदेव स्थित ही पतुरिया, गिदमुदी कोल ब्लॉक छत्तीसगढ़ सरकार की विद्युत् उत्पादन कंपनी के भैयाथान बिजली कारखाने हेतु किया गया, जबकि स्वयं राज्य सरकार भैयाथान परियोजना से पीछे हट चुकी हैं l इसके वाबजूद खदान के विकास हेतु प्रक्रिया चलाई जा रही है जिसका साफ मकसद अन्य उपयोग हेतु अदानी कंपनी को MDO के रास्ते खदान सौंपना हैl
आलोक शुक्ला के आरोप है कि मोदी सरकार, खनन की स्वीकृति की प्रक्रियाओं के सरलीकरण के नाम पर उन तमाम जनपक्षीय कानूनों व प्रावधानों को ख़त्म करने की कोशिश कर रही है जो वंचित तबके विशेषरूप से, आदिवासी, मजदूर, किसानों के अधिकारों को सुरक्षित करते हैं l केंद्र और राज्य की इन कार्पोरेट परस्त नीतियों के खिलाफ छत्तीसगढ़ की कई ग्रामसभाएं अपने सांवैधानिक अधिकारों का उपयोग करते हुए पेसा और वनाधिकार कानून की ताकत से लगातर संघर्ष कर रही हैं l हसदेव कि 18 ग्रामसभाओं ने 2015 में कोयला खदानों के आवंटन का एक स्वर में विरोध किया था l इन प्रस्तावों में विशेष रूप से छत्तीसगढ़ के पर्यावरण के संदर्भ में हसदेव के जंगलो को बचाने का आव्हान किया गया था परन्तु केन्द्रीय कोयला मंत्रालय ने उन प्रस्तावों को नजरंदाज कर खदानों का आवंटन कियाl इन आवंटनो के खिलाफ ग्रामीण लगातार अपने जंगल जमीन को बचाने के लिए आन्दोलन कर रहे हैं l ग्रामीणों के आन्दोलन को समाप्त करने के लिए राज्य सरकार और कंपनिया मिलकर कई प्रकार से फर्जी, दुष्प्रचार और कार्यवाहियों को अंजाम दे रहे हैंl पिछले दिनों ही परसा कोयला खदान का विरोध कर रहे 5 ग्रामीणों पर अदानी कंपनी के दवाब में शांति भंग करने के आरोप में थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई है l उसी प्रकार कोरबा जिले में खदानों के गैरकानूनी सर्वे का विरोध करने पर ग्रामीणों को पुलिस प्रशासन के द्वारा थाने बुलाकर एफ आई आर दर्ज करने की धमकी दी जा रही हैं l
ग्रामसभाओं के विरोध को दरकिनार कर खनन व उद्योग परियोजनाओं को आगे बढ़ाना संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत पेसा कानून व वनाधिकार कानून का खुला उल्लंघन हैं जिसे रोकने के लिए व्यापक जन आन्दोलन की आवश्यकता हैं l हसदेव क्षेत्र कि ग्रामसभाएं इस दिशा में प्रयासरत हैं और हम सभी को इन प्रयासों को और मजबूत करने की आवश्यकता है l