प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बच्चों द्वारा बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल न करने पर बड़ी टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने कहा कि क्षणिक फायदे के लिए माता-पिता को नजर अंदाज करना दुखद, कोर्ट ने कहा हमें यह देखकर दुख होता है कि आज के युवा अपने छोटे फायदे के लिए माता-पिता को पर्याप्त भावनात्मक संरक्षण नहीं दे रहे हैं.

अदालत ने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों और माता-पिता के संरक्षण के लिए बने कानून में यह प्रावधान है, कि सरकार वरिष्ठ नागरिकों के जीवन व संपत्ति की सुरक्षा करे, साथ ही कानून में बच्चों के लिए भी यह कर्तव्य है, कि वह अपने माता-पिता/ वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल करें. कोर्ट ने कहा ऐसा करने में असफल रहने पर माता-पिता अपनी देखभाल के लिए संबंधित डीएम को प्रार्थना पत्र दे सकते हैं.

याची कानपुर की सुमन लता शुक्ला की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा को लेकर बने कानून में यह व्यवस्था दी गई है, कि राज्य सरकार डीएम को ऐसे अधिकार और दायित्व दे, जो इस एक्ट का पालन करने के लिए आवश्यक हों, यहां तक कि डीएम किसी अधीनस्थ अधिकारी को यह दायित्व सौंप सकता है.

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अदालत ने कहा कि एक्ट में कहा गया है कि राज्य सरकार एक समग्र कार्य योजना वरिष्ठ नागरिकों के जीवन व संपत्ति की रक्षा के लिए तैयार करे. पीठ का कहना था कि हमारा विचार है कि कानून बनाने वालों ने जो योजना बनाई है वह पवित्र उद्देश्य के साथ है, ताकि पारिवारिक मूल्यों के साथ ही बच्चों में ऐसी आदतें विकसित की जाएं, कि वह अपने माता-पिता की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति करें, इसके अलावा उनके साथ भावनात्मक संबंध बनाए रखें.

इस मामले में याची एक वृद्ध महिला है तथा उसे अपने बेटे व बहू से जान और संपत्ति का खतरा है, उसने अपने संरक्षण के लिए डीएम कानपुर नगर को प्रार्थना पत्र दिया था, लेकिन डीएम ने उस पर कोई कदम नहीं उठाया गया. जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी और जस्टिस प्रशांत कुमार की डिवीजन बेंच ने डीएम कानपुर नगर को निर्देश दिया है, कि वह याची का प्रार्थना पत्र 6 सप्ताह के भीतर कानून के मुताबिक निस्तारित करें.

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