नेहा केशरवानी, रायपुर. राज्यपाल अनुसूईया उइके आज अखिल भारतीय महापौर परिषद सम्मेलन में शामिल हुईं. इस दौरान आज उन्होंने अपनी राजनीतिक जीवन की चर्चा की. इस बीच उन्होंने कहा कि मैनें राज्यपाल भवन की परंपरा तोड़ दी. गवर्नर ने बताया कि कैसे उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की. उन्होंने कहा कि ‘मैंने भी अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत सामाजिक जीवन से प्रारंभ किया था. कभी मैंने यह भी नहीं सोचा था कि विधायक, मंत्री, सांसद और उसके बाद राज्यपाल बनूंगी. उस समय मुझे नगर पालिका और नगर निगम में कुछ बनने का मौका नहीं मिला. छात्र राजनीति से निकलकर कॉलेज में 3 साल पढ़ाया, 26 साल की उम्र में राजनीति में प्रवेश हुआ और विधायक बन गई. मैंने अपने जीवन में विधायक के रूप में जीवन का अनुभव किया है. व्यक्ति को जिम्मेदारी मिलती है तो लोगों की अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं’.

राज्यपाल ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि जब भी कोई व्यक्ति मेरे क्षेत्र का आता था तो मैं यह नहीं देखती थी कि वह कौन सी पार्टी का है, यह देखती थी कि उनकी समस्या क्या है, और आज भी जब मैं रायपुर आई मैंने कभी घमंड नहीं किया कि मैं विधायक या उससे बड़े पद पर हूं, मैंने हमेशा ये सोचा कि यह सारी जिम्मेदारी किसके आशीर्वाद से मिली है? उन्होंने कहा कि आप जनता के प्रति ईमानदार हैं तो पद हमारे पास चल कर आता है. मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि विधायक, सांसद के बाद राष्ट्रीय स्तर पर तमाम जिम्मेदारी मिलेगी.

राजभवन को बनाया जन भवन

राज्यपाल पद के लिए बहुत कम ही लोग कल्पना करते हैं. लोगों की भावना होती है कि राज्यपाल से क्या ही मिलेगा, लिमिटेड लोगों से ही उनका मिलना जुलना रहता है, 20 सालों में जितने भी गवर्नर हो पहली बार मैंने अपने कार्यकाल में राजभवन को जन भवन में बदल दिया, जनता के लिए राजभवन के दरवाजे खोल दिए.

राज्यपाल ने परंपरा तोड़ी !

राज्यपाल ने बताया कि राजभवन मेरे रहने और आराम करने के लिए नहीं है. राष्ट्रीय जनजाति की उपाध्यक्ष थी, तब उस वक़्त मेरे कार्यकाल का समय बहुत कम बचा था. 6 महीने बाकी थे तभी प्रधानमंत्री जी का कॉल आया कि यह जिम्मेदारी आपको दे रहा हूं. प्रधानमंत्री जी ने जिम्मेदारी बताया तो नहीं, दूसरे दिन डिक्लेयर हुआ कि मुझे राज्यपाल पद के लिए चुना गया है. शपथ के बाद जब मैं प्रधानमंत्री जी से मिलने दिल्ली गई तो मैंने उनसे कहा गवर्नर का पद जो होता है, मोस्ट सीनियर लोगों को जिम्मेदारी दी जाती है, जबकि मैं तो सीनियर हूं नहीं, लोगों की मानसिकता थी कि राजभवन में लोग लॉड गवर्नर बनकर रहते हैं. मैं चाहती थी कि मैं इस सिस्टम को बदलूं और एक्टिव लोगों को इस पद पर बिठाया जाए, ताकि प्रदेश का जनमानस देश के सिस्टम को देखे और सरकार का ध्यान आकर्षित करे, इसके बाद से लोगों ने मुझे ऐसा कहा कि मैंने राज्यपाल भवन की परंपरा तोड़ दी.

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