सुप्रिया पाण्डेय, रायपुर। छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुईया उइके आज रायपुर के निजी संस्थान के कार्यक्रम में शामिल हुई इस दौरान राज्यपाल ने अपनी सफलता की कहानी शेयर की और कहा कि मैं गांव में जन्मी, ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी हूँ. मेरे पिता की छोटी सी नौकरी रही. वे आरआई के पद पर कार्यरत थे. मेरी 6 बहन थीं और एक भाई था. 1956 को मेरा जन्म उस समय हुआ था, जिस दौर में लड़कियों को पढ़ने नहीं दिया जाता था. उस समय समाज का नजरिया कुछ और था.
मेरी सभी 6 बहनों की कम उम्र में ही शादी कर दी गई. मैं हमेशा से चंचल स्वभाव की रही हूं जिस वजह से अपने पिता से मार भी खाती थी. जब मैं 7वीं कक्षा में थी तो मैने टीचर को जवाब दिया था और पेपर के बाद जब रिजल्ट आया तो मुझे लगा कि जानबूझकर मुझे फेल किया गया है. मैंने पिता को कहा मैं फेल नहीं हो सकती और मेरे पेपर को पुन: चेक कराया गया तो मैंने पाया कि मैं दो विषयों में पूरक आई गई हूँ. पूरक की परिक्षा में मैं कठिन प्रश्नों की वजह से फिर से फेल हो गई. मुझे फिर लगा कि जानबूझकर मुझे फेल किया गया है. जब मैं 8वीं पहुंची तो मैरिड में पास हुई. लेकिन गांव के स्कूलों में आठवीं कक्षा तक ही पढ़ाई होती थी और 9वीं के लिए मुझे शहर जाना था लिहाजा परिजनों ने कहा कि वो मुझे नहीं पढ़ाएंगे. फिर मैंने घरवालों को धमकी दी नहीं पढ़ाओगे तो सुसाइड कर लुंगी.
उस समय ग्रामीण परिवेश में रहकर शहर में पढ़ना मेरे लिए चुनौतीपूर्ण रहा, क्योंकि उस समय मेरा खूब मजाक उड़ा करता था. 9th से जब कॉलेज में पहुंची उस समय से लोगों में मदद करने का भाव रखती थी और इसी भाव के माध्यम से मैं कई समाजिक संगठन से जुड़ती गई. कॉलेज गई तो इलेक्शन आया कॉलेज के प्रेसिडेंट के लिए लड़ी, लेकिन सफलता नहीं मिली और इसके बाद भी कई इलेक्शन गुजरे जिसमें मुझे सफलता नहीं मिली.
1982 से 1985 तक कॉलेज में लेक्चरर के रूप में लोगों के बीच में लोकप्रिय हो गई. साथ ही नावेल के स्लोगन से तमाम चीजों को मन मे रखती थी. उसके बाद 1985 में मैने चुनाव लड़ा और विधानसभा का चुनाव जीत कर सबसे कम उम्र की विधायक बनीं. साल 1988 और 1989 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय संभाला और 2000 में राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य बनीं साथ ही इस पद पर पांच वर्षों तक अपनी सेवाएं दी. आज तमाम संघर्षोंं विफलता-सफलता के बीच छत्तीसगढ़ के राज्यपाल के रूप में आपके सामने खड़ी हूँ. मैं युवाओं से कहना चाहूंगी कि जीवन में हर व्यक्ति के अंदर मानवीय संवेदना है, वो आगे बढ़ सकता है बस अपने पदों का अहंकार कभी मत करना.