भोपाल- मध्यप्रदेश में चल रही सियासी बवंडर के बीच राज्यपाल लालजी टंडन की ओर से मुख्यमंत्री कमलनाथ को लिखी गई वह चिट्ठी भी सवालों के साथ उलझ गई है, जिसमें सरकार को सदन में 16 मार्च को विश्वास मत हासिल किए जाने के निर्देश दिए गए हैं. संसदीय मामलों के जानकार कहते हैं कि राज्यपाल की चिट्ठी में लिखे गए तथ्यों में ही विरोधाभास है. एक ओर चिट्ठी में राज्यपाल कह रहे हैं कि उन्हें विश्वास हो गया है कि सरकार अल्पमत में है, तो ऐसी सूरत में सदन में उनका अभिभाषण नहीं हो सकता. वहीं दूसरी ओर सरकार अल्पमत में है, यह निर्णय का अधिकार राज्यपाल का नहीं है.
छत्तीसगढ़ विधानसभा के प्रमुख सचिव रह चुके और संसदीय मामलों के जानकार देवेंद्र वर्मा कहते हैं कि- राज्यपाल की यह चिट्ठी अधिकार क्षेत्र के बाहर है. चिट्ठी में राज्यपाल यह कह रहे हैं कि उन्हें विश्वास हो गया है कि सरकार अल्पमत में हैं. यह निर्णय करने वाले राज्यपाल नहीं हो सकते. वर्मा बताते हैं कि फ्लोर टेस्ट और विश्वास मत में अंतर होता है. आम निर्वाचन के बाद जब किसी दल को पूर्ण बहुमत नहीं होता, तब दूसरे दल का सहयोग लेकर बहुमत सदन में दिखाया जाता है, दल की ओर से राज्यपाल को चिट्ठी लिख इसकी सूचना दी जाती है, तब राज्यपाल फ्लोर टेस्ट के लिए दल को आमंत्रित करते हैं. विश्वास मत के लिए राज्यपाल कह सकते हैं, लेकिन विधानसभा की कार्य संचालन नियमावली में सदन की कार्यवाही का संचालन विधानसभा के अध्यक्ष के हाथ में है. देवेंद्र वर्मा कहते हैं कि संवैधानिक व्यवस्थाओं में अनुच्छेद 175 (2) के अधीन राज्यपाल को संदेश देने का अधिकार है. राज्यपाल के संदेश पर सदन विचार करता है और विचार किए जाने के बाद उन्हें सूचित कर दिया जाता है.
क्या हो सकता है?
राज्यपाल की चिट्ठी के बाद अब नजर 16 मार्च को होने वाले सदन की कार्यवाही पर जा टिकी है. कांग्रेस सरकार विश्वास मत होने से रोकने की कोशिश कर सकती है, वहीं बीजेपी चाहती है कि किसी भी सूरत में विश्वास मत सदन में लाया जाए. ऐसी सूरत में पूरा दारोमदार विधानसभा अध्यक्ष पर टिका होगा कि सदन की कार्यवाही को वह किस तरह से बढ़ाते हैं. संभव है कि सदन में भारी हंगामे के बीच अध्यक्ष डिसआर्डर लीव घोषित कर दें. देश के संसदीय इतिहास में ऐसे कई मौके आए हैं, जब भारी हंगामे के बाद कार्यवाही स्थगित कर दी गई. सदन की कार्यवाही स्थगित करने का अधिकार विधानसभा अध्यक्ष के पास है.
दूसरी स्थिति यह होगी कि सदन में कमलनाथ सरकार विश्वास मत की परीक्षा से गुजरे. पिछले शुक्रवार को राज्यपाल से मुलाकात के दौरान मुख्यमंत्री कमलनाथ के सौंपे गए पत्र में कहा गया था कि वह फ्लोर टेस्ट के लिए तैयार हैं, लेकिन 22 विधायकों को बंधक बनाकर यह संभव नहीं है. हालांकि बाद में इन 22 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था. इनमें 6 मंत्री भी शामिल थे, जिनके इस्तीफे को विधानसभा अध्यक्ष ने मंजूर कर लिया है. जानकार कहते हैं कि मौजूदा आंकड़ों के हिसाब से सरकार बचाने के लिए कांग्रेस को 13 विधायकों का समर्थन चाहिए. ऐसे में कमलनाथ की कोशिश होगी कि यह आंकड़ा किसी भी कीमत में छू लिया जाए. मध्यप्रदेश विधानसभा में विधायकों के इस्तीफे के पहले 227 विधायक ( 2 का निधन और बसपा का एक विधायक सस्पेंड) थे, जिनमें कांग्रेस 114 + 6 सहयोगी मिलाकर 120 थे, जबकि बीजेपी के पास 107, लेकिन 22 विधायकों के इस्तीफे दिए जाने के बाद सदन में विधायकों का आंकड़ा हो जाएगा 206. इस आधार पर बहुमत का नया आंकड़ा 104 पर जा टिकेगा. अपने सहयोगी दलों को मिलाकर कांग्रेस के बाद कुल 99 विधायक ही होंगे, यानी बहुमत से पांच कम, जबकि बीजेपी के पास 107 यानी बहुमत से 3 ज्यादा.