दिल्ली. अब सरकार ने एक ऐसी टेक्नोलॉजी को अनुमति दी है, जिससे वाहन चोरी की घटनाओं पर रोक लगेगी। वहीं इसकी कीमत भी मात्र एक हजार रुपये के आसपास होगी।

सरकार ने वाहन चोरी की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए हाल ही में माइक्रोडॉट्स टेक्नोलॉजी को लागू करने की मंजूरी दी है। इन माइक्रोडॉट्स का इस्तेमाल वाहनों पर किया जाएगा। इस टेक्नोलॉजी के तहत यूनिक नंबर और व्हीकल आइडेंटिफिकेशन नंबर वालें लेजर बेस्ड हजारों छोटे-छोटे माइक्रोडॉट्स को कार की पूरी बॉडी पर स्प्रे किया जाएगा। इंजन पर भी इन माइक्रोडॉट्स का स्प्रे किया जाएगा। इन नैनो माइक्रोडॉट्स का साइज 0.5 एमएम होगा

इस स्प्रे की खासियत होगी कि इन डॉक्ट्स को हटाना या खत्म करना मुश्किल होगा। साथ ही, इन डॉट्स को अल्ट्रावॉयलेट लाइट के जरिए देखा जा सकेगा। इस टेक्नोलॉजी के लागू होने के बाद कार चोरों को चोरी करना मुश्किल होगा।

हालांकि दक्षिणी अफ्रिका में सितंबर 2012 से और अमेरिका में इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल पहले से ही किया जा रहा है। इस टेक्नोलॉजी के जरिए चोरी हुए वाहनों और उनके मालिकों के बारे में चुटकियों में पता लगाया जा सकेगा। यहां तक कि कार  पुर्जे भी अलग कर दिए जाएं, तो भी कार की डिटेल्स पता लगाई जा सकती हैं।

माइक्रोडॉट टेक्नोलॉजी को लागू करने को लेकर कई दिनों से विचारविमर्श चल रहा था लेकिन सरकार ने अब इसे लागू करने को लेकर हरी झंडी दे दी है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक देश की ऑटोमोबाइल टेक्निकल स्टैंडर्ड्स का आंकलन करने वाली संस्था CMVR-TSC ने भी इसके स्टैंडर्ड्स को लेकर बैठक की थी, जिसमें इसे मंजूरी दी गईष। वहीं जल्द ही एक नोटिफिकेशन के जरिए इसे देशभर में लागू किया जाएगा।

वहीं सरकार ने इस टेक्नोलॉजी की कीमतों को भी मंजूरी दे दी है। सरकार का मानना है कि जैसे-जैसे यह टेक्नोलॉजी विस्तृत रूप लेगी, कीमतें भी उसी के मुताबिक कम होती चली जाएंगी। इस टेक्नोलॉजी की कीमत 1000 रुपये से कम रखी जा सकती है।

खबरों के मुताबिक चार पहिया वाहनों जैसे कार, ट्रक, बसों के लिए 10 हजार माइक्रोडॉट्स की आवश्यकता होगी, वहीं दो पहिया वाहनों के लिए 5000 माइक्रोडॉट्स की जरूरत होगी। वहीं इनकी लाइफसाइकिल 15 सालों तक होगी। भारत में माइक्रोडॉट्स मैन्यूफैक्चरर कम के कम 10 अल्फा न्यूमरिक करैक्टर इस्तेमाल करेंगे।