फीचर स्टोरी । गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार नवाचार को लगातार बढ़ावा दे रही है. नतीजा ये है कि नवा काम के बलबूते रोजगार के नए-नए द्वार खुल रहे हैं. खास तौर पर गोबर को राज्य सरकार न सिर्फ खरीद रही है, बल्कि उसे बहुउपयोगी बनाकर ढेरों उत्पादों का निर्माण भी करा रही है. इसी में एक निर्माण में से एक है गो-काष्ठ का.
जी हाँ, गो-काष्ठ शब्द से हो सकता है बहुत से लोग परिचित हो और इसकी उपयोगिता को भी जानते हो, लेकिन ज्यादातर लोगों के लिए यह नया है. शब्द भी और काम भी. छत्तीसगढ़ में गो-काष्ठ निर्माण का काम कई जिलों में चल रहा है. यह एक तरह से गोबर तैयार किए जाने वाले उत्पादों में एक नवाचार है. इस नवाचार ने राज्य में नए रोजगार के द्वार खोल दिए हैं.
विशेष बात ये है कि रोजगार के साथ-साथ यह पर्यावरण की दृष्टि बेहद महत्वपूर्ण उत्पाद है. आज इसी तरह के उत्पादों की जरूरत है. गो-काष्ठ का उपयोग आज सबसे अधिक दाह-संस्कार के लिए हो रहा है, लेकिन इसका उपयोग जलाऊ लकड़ी की जगह कहीं भी हो सकता है. विशेषकर ढाबों में.
समूह की महिलाओं के लिए रोजगार के नए द्वार
प्रदेश के नगरीय निकायों में संचालित करीब 322 गौठानों में गो-काष्ठ निर्माण का काम चल रहा है. गो-काष्ठ का निर्माण गोठानों में स्व-सहायता समूह की महिलाएं कर रही हैं. महिलाओं के लिए गोबर से गो-काष्ठ निर्माण का यह नया काम हैं. क्योंकि अभी गोबर से खाद, दीया अन्य सजावटी समानों का निर्माण हो रहा है था, अब समूह की महिलाएं गो-काष्ठ का भी निर्माण कर रही हैं. इससे ग्रामीण महिलाओं को नवाचार के माध्यम से नवा रोजागार भी मिल गया है. रोजगार के इस नए द्वार के खुलने से बड़ी संख्या में महिलाएं इस काम से जुड़ रही हैं.
गो-काष्ठों की मांग सबसे अधिक मुक्तिधाम में है. जहाँ दाह संस्कार के लिए अब गो-काष्ठ का ही उपयोग किया जा रहा है. इसके पीछे मुख्य वजह लकड़ियों की उपयोगिता को खत्म करना, प्रदूषण मुक्त स्वच्छ वातावरण रखना है. लिहाजा सरकार जनता से यही अपील कर रही है कि वे दाह संस्कारों में अब केवल गो-काष्ठों का ही उपयोग करें. उन्हें रियायती दरों में मुक्तिधाम में गो-काष्ठ मिलेगा.
लाखों पेड़ की कटाई रुक जाएगी
नगरीय प्रशासन विभाग की माने तो गो-काष्ठ के उपयोग से एक साल में लाखों पेड़ की कटाई रुक जाएगी. इससे पर्यावरण को बड़ा फायदा होगा. शहर का वातावरण स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त बनेगा. गोठानों में स्व-सहायता समूह की महिलाएं कार्य कर रही है और गौ-काष्ठ, जैविक खाद सहित कण्डे और अन्य गौ उत्पाद तैयार कर रही हैं. गो-माता हम सबके लिए पूजनीय है. छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार गो-संरक्षण की दिशा में लगातार काम कर रही है. पशुपालकों से गोबर खरीदने के साथ ही सर्वसुविधा युक्त गोठानों की व्यवस्था की है.
एक दाह संस्कार में 20-20 साल के दो पेड़
जानकार बताते हैं कि एक दाह संस्कार में 500 किलो तक लकड़ी की जलाई जाती है. यह 500 किलो लकड़ी 20-20 साल के दो पेड़ों से निकलता है. वहीं पेड़ के संबंध में मानना है कि एक वृक्ष से लाखों का आक्सीजन, औषधि, मृदा संरक्षण, हजारों पक्षियों के बैठने की व्यवस्था, कीडे-मकोड़े, मधुमक्खी के छत्ते के लिए वातावरण अनुकूलन बना होता है. वृक्ष अपने जीवन में 7 से 11 टन ऑक्सीजन छोड़ता है और 12 टन तक काॅर्बन डाइ आक्साइड ग्रहण करता है. मतलब ये पेड़ प्रकृति के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं इससे यह पता चलता है. और पेड़ के साथ इन तमाम चीजों को बचाने के लिए अगर गो-काष्ठ और कंडे का उपयोग बढ़ा तो जाहिर पेड़ों की कटाई नहीं होगी. जलाऊ लकड़ी के लिए इस्तेमाल गो-काष्ठ का होगा.
नगरीय प्रशासन विभाग के मुताबिक गो-काष्ठ के जलने से प्रदूषण भी नहीं फैलेगा और गाय की महत्ता बढ़ने के साथ रोजगार के नए अवसर भी बनेंगे. रायपुर निगम क्षेत्र में गौ-काष्ठ और कण्डे से अनेक दाह संस्कार करा चुके पहल सेवा समिति के उपाध्यक्ष रितेश अग्रवाल का कहना है कि अब लोग जागरूक हो रहे हैं. रायपुर में दाह संस्कारों में गो-काष्ठ और कण्डे का उपयोग भी हो रहा है.
अलाव में भी गो-काष्ठ के इस्तेमाल करने के निर्देश
नगरीय प्रशासन विभाग ने दाह संस्कार के लिए लकड़ी के स्थान पर गो-काष्ठ और कण्डे को प्राथमिकता देने के निर्देश दिए हैं. वहीं उन्होंने ठण्ड और शीतलहर के दौरान आम नागरिकों के लिए चैक-चैराहों पर जलाए जाने वाले अलाव में भी गो-काष्ठ को अनिवार्य रूप से उपयोग में लाने के निर्देश दिए हैं. प्रदेश के नगरीय निकाय क्षेत्रों में अनुमानित 400 सौ से भी अधिक स्थानों पर लकड़ी के अलाव जलाए जाते हैं. यह संख्या ठण्ड और शीतलहर के हिसाब से घटती बढ़ती रहती है. रायपुर नगर निगम क्षेत्र में अनुमानित 51 स्थानों पर अलाव जलाए जाते हैं. प्रदेश में नगरीय निकाय के अंतर्गत नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायतों की संख्या कुल 166 है. स्वाभाविक है कि बड़ी संख्या में गो-काष्ठ का उपयोग दाह संस्कार और अलाव के रूप में होने से लकड़ी का इस्तेमाल कम होगा, जिससे प्रदूषण फैलने की गुंजाइश कम रहेगी और पेड़ों की अनावश्यक कटाई बंद होगी.