निशा मसीह, रायगढ़. लंबे अरसे से जिले में ज्ञान की रौशनी जलाने वाले समाजसेवी शशिभूषण पंडा का निधन हो गया. शिक्षा के क्षेत्र में किए गए असाधारण प्रयासों के कारण शशिभूषण पंडा को क्षेत्र में ज्ञान गुरु के नाम से भी जाना जाता है. अस्सी वर्षीय पंडा के निधन से क्षेत्र में शोक की लहर फैल गई. स्थानीय लोगों ने उनके सम्मान में अपने प्रतिष्ठान व कार्यालय बंद रखे. हजारों लोगों ने उन्हें अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि दी. पंडा के निधन को शिक्षा के क्षेत्र में अपूरणीय क्षति माना जा रहा है. उनका अंतिम संस्कार महपल्ली स्थित उनके गृह ग्राम में किया गया.
रायगढ़ में शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रयासों के जरिए ज्ञान की ज्योति जगाने वाले शिक्षाविद व समाजसेवी शशिभूषण पंडा के निधन से क्षेत्र में शोक की लहर फैल गई. साठ-सत्तर के दशक में जिले के दूर दराज के गांवों से राज्य की मेधा सूची में कई विद्यार्थियों को स्थान दिलाने वाले पंडा का शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान रहा है. यही वजह रही कि क्षेत्र में उन्हें लोग प्यार और सम्मान से पंडा गुरु की उपाधि से नवाजते रहे. अपनी पुरानी साइकिल से गांव-गांव जाकर लोगों को शिक्षा और उसके महत्व के बारे में बताने वाले पंडा के निस्वार्थ कार्य से आज हजारों नौजवान शिक्षित होकर अपने और दूसरों की जिंदगी में उजाला फैला रहे हैं.
शिक्षा की अलख घर-घर पहुंचाने वाले शशिभूषण पंडा ने शिक्षक की सेवा से सेवानिवृत्त होकर महापल्ली जैसे गांव में जनभागीदारी से कालेज की स्थापना की. खास बात ये है कि इस कालेज में लड़कियों की शिक्षा के विशेष प्रयास किए गए. आठ सौ विद्यार्थियों की क्षमता वाले इस कालेज की खास बात ये है कि यहां के छात्रों में सत्तर फीसदी से भी ज्यादा की संख्या लड़कियों की है. रायगढ़ के ग्रामीण इलाकों में लड़कियां स्कूली शिक्षा के बाद कालेज का रूख नहीं करती थी. जिसकी प्रमुख वजह उनके घरों से कालेजों की दूरी थी. शशिभूषण पंडा ने ग्रामीण अंचल की लड़कियो की इस दिक्कत को ध्यान में रखते हुए सूदूर ग्रामीण इलाके महापल्ली में बटमूल आश्रम महाविद्यालय की स्थापना की.
खास बात ये है कि इस महाविद्यालय के लिए सरकार से किसी भी तरह की कोई मदद नहीं ली गई. जनसहयोग से बने इस महाविद्यालय की स्थापना के लिए शशिभूषण पंडा ने वर्षों तक अथक मेहनत की. महाविद्यालय में न सिर्फ शिक्षा की उत्कृष्ट व्यवस्था की गई बल्कि आयुर्वेद और योग की शिक्षा भी छात्रों को दी जाती है. क्षेत्र में शिक्षा की अलख अपने बूते जलाने वाले पंडा के प्रयासों को न तो किसी नेता, क्षेत्रीय सांसद व विधायक ने सराहा और न ही उन्हें किसी किस्म की मदद की. बावजूद इसके अपने प्रयासों से लोगों में शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने और ग्रामीण अंचल के लोगों को जागरूक करने में शशिभूषण पंडा ने कोई कोर कसर नहीं रखी. आज उनके निधन से न सिर्फ क्षेत्र में शोक की लहर है बल्कि हजारों छात्र-छात्राओं के चेहरों की उदासी कह रही है कि पंडा उनके लिए मात्र शिक्षक या गुरू नहीं बल्कि वो मार्गदर्शक थे जिनकी कमी कभी नहीं पूरी की जा सकेगी. क्षेत्रवासियों का यही कहना है कि उनके निधन से हुई क्षति की भरपाई संभव नहीं है.