सीमेंट की इमारतों से त्रस्त दुनियॉ अब हरियाली की तलाश में है। वैश्विक स्तर पर प्रदूषित होते पर्यावरण से हैरान परेशान आम जन अब ताज़ी हवा और स्वच्छ जल को परेशान होने लगे हैं. विश्व से आरंभ होकर देश-देश तक देश से हर राज्य तक और हर राज्य से एक-एक गांव तक पर्यावरणीय क्षति केा रोकने वाली मुहिम चलाए जाने की आवश्यकता है, कागजों पर इस दिशा में किया गया प्रयास भी दिखाई देता है मगर हकीकत की जमीन कुछ और कहती है, आमूलचूल परिवर्तन के लिए जिस इच्छा शक्ति की आवश्यकता होती है उसकी कमी बहुतेरे देखी जा सकती है उसी कमजोर निर्णय शक्ति का ही दुष्परिणाम है कि आज समूचा संसार प्रदूषण की मार झेलने केा मजबूर है लेकिन छत्तीसगढ़ की बात ही कुछ और है. पूरी जिम्मेदारी के साथ यहां वृक्षारोपण के काम को अंजाम दिया जा रहा है. पर्यावरण सुधार की दिशा में वैश्विक स्तर पर अहम भाागीदारी निभाने वाले छत्तीसगढ़ राज्य की ये मौलिक जिम्मेदारी कभी नहीं थी कि वो इस तादाद में वृक्षारोपित कराए क्यो कि हरियाली के मामले में इस राज्य का योगदान पहले ही बहुत ज्यादा है लेकिन फिर भी पुण्य कर्म का बेहिसाबी होना चाहिए के सिद्धांत पर चलते हुए छत्तीसगढ़ की सरकार इस दिशा में कुछ ऐसा कर रही है कि छत्तीसगढ़ की धानी चुनर अब और भी हरित होने जा रही है.

हरियाली प्रसार योजना की सफलता

छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार की वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा संचालित हरियाली प्रसार योजना के प्रयास से आने वाले सुपरिणाम को देखकर संबंधित विभाग और भी उत्साही हो गया है. हरियाली प्रसार योजना के अंतर्गत पिछले तीन वर्षों में 83 लाख से अधिक पौधों के रोपण के लिए वर्ष 2022-23 में 17 करोड़ से अधिक राशि का प्रावधान रखा गया है. राज्य सरकार के इस प्रयास का जमीनी परिणाम भी परिलक्षित होने लगा है.

वन विभाग का हितग्राहियों को विशेष प्रोत्साहन

छत्तीसगढ़ वन विभाग ने हितग्राहियों को एक वर्ष में 50 से लेकर 5 हज़ार पौधों के रोपण की पात्रता देकर इस दिशा में एक मजबूत कदम बढ़ाया है, हुए ये कि छत्तीसगढ़ की पड़त जमीन भी हरियाली से लबरेज हुई जा रही है. इस प्रयास के चलते लगभग 7400 हेक्टेयर रकबा हरा हो गया है. वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा संचालित हरियाली प्रसारण योजना के अंतर्गत तीन वर्ष 2019, 2020 और 2021 में वर्षा ऋतु में कुल 83 लाख 31 हजार पौधों का रोपण किया गया है। नतीजा ये हुआ कि इस तरह से 07 हजार 400 हेक्टेयर रकबा हरियाली से ढंक गई है.

पौधरोपण के लिए हितग्राहियों में बढ़ा उत्साह

पौधों के लिए हितग्राहियों और कृषकों की ओर से पौधों की बढ़ती मांग को देखते हुए उसमें वृद्धि कर वर्ष 2022-23 में इस योजना के अंतर्गत वनेत्तर क्षेत्रों में कृषकों की भूमि पर रोपण के लिए बजट में 17 करोड़ 58 लाख रूपए की राशि का प्रावधान किया गया है. वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि हरियाली प्रसारण योजना का ध्येय पर्यावरण में सुधार के साथ पड़त भूमि के विकास और लोगों की आय में वृद्धि करना भी है. हरियाली प्रसार योजना में कृषकों की स्वयं की भूमि पर कृषि वानिकी को प्रोत्साहित करने और हरियाली को बढ़ाए जाने के लिए विभाग द्वारा प्रति हितग्राही 50 से 5 हजार तक न केवल पौधे उपलब्ध कराए जा रहे हैं बल्कि उसके देखरेख के लिए अनुदान के रूप में आंशिक राशि भी उपलबध कराई जा रही है. इससे कृषकों को लगभग 30 हजार रुपये प्रति एकड़ प्रति वर्ष का लाभ अर्जित होने की पूरी-पूरी संभावना है.

लाखों की तादाद में हुए सफल वृक्षारोपण

विभाग के अधिकारियों के अनुसार हरियाली प्रसार योजना के अंतर्गत वर्ष 2021-22 में 30 लाख 95 हजार पौधों का रोपण किया गया है. इससे 13 हजार 651 हितग्राही लाभान्वित हुए हैं. इनमें वन वृत्त रायपुर के अंतर्गत 1500 हितग्राहियों द्वारा 25 हजार 730 पौधे और कांकेर के अंतर्गत 3 हजार 089 हितग्राहियों द्वारा 6 लाख 30 हजार पौधों का रोपण किया गया है. इसी तरह वन वृत्त सरगुजा के अंतर्गत 419 हितग्राहियों द्वारा 99 हजार 250 पौधे, जगदलपुर के अंतर्गत 2 हजार 391 हितग्राहियों द्वारा 3 लाख 80 हजार पौधे, दुर्ग के अंतर्गत 3 हजार 632 हितग्राहियों द्वारा 3 लाख 59 हजार पौधे और बिलासपुर के अंतर्गत 2 हजार 620 हितग्राहियों द्वारा 16 लाख पौधों का रोपण किया गया है. कुल 2 हजार 800 हेक्टेयर रकबा में हुए इस रोपण ने क्षेत्र की रौनक ही बढ़ा दी है. हरियाली प्रसार योजना के तहत वर्ष 2019-20 में एक हजार 600 हेक्टेयर रकबा में 18 लाख 56 हजार पौधों और वर्ष 2020-21 में 3 हजार हेक्टेयर रकबा में 33 लाख 80 हजार पौधों का रोपण हुआ है. इनमें वर्ष 2019-20 में 10 हजार 497 और वर्ष 2020-21 में 20 हजार 16 हितग्राही लाभान्वित हुए हैं.

वृक्षों में विभिन्नता बना रहे वनों को और भी उपयोगी

योजना के अंतर्गत सागौन, बांस, खम्हार, आंवला, शीशम, चंदन, मीलिया डुबिया, क्लोनल नीलगिरी, टिशू कल्चर बांस, टिशू कल्चर सागौन, आम, कटहल, मुनगा, सीताफल एवं अन्य प्रजातियों के पौधों का रोपण किया गया है. हरियाली से वन है और वन से वन्य प्राणि. वन्य प्राणियों का संरक्षण भी पर्यावरण सुधार की दिशा में उठाया गया एक जरूरी कदम है. वन्यप्राणी रहवास उन्नयन की दिशा में भी छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार उल्लेखनीय कार्य कर रही है. कैम्पा मद से 5920 हेक्टेयर रकबा में हुआ सघन लेन्टाना और यूपोटोरियम उन्मूलन का कार्य किया गया है. छत्तीसगढ़ में वन्यप्राणियों के रहवास और चारागाह के लिए अच्छी सुविधाएं विकसित की जा रही है.

बरनवापारा अभ्यारण्य का हुआ कायाकल्प

राजधानी से लगभग 100 किमी की दूरी पर स्थित अभ्यारण्य में बहुतायत संख्या में हैं बसने वाले संरक्षित वन्यप्राणी हमारे राज्य के लिए सुधरते और विकास पाते पर्यावरण के दावे पर लगी हुई एक मुहर है. पर्यावरण संरक्षण की दिशा में होने वाले प्रयास के तारतम्य में ही छत्तीसगढ़ का सबसे उत्कृष्ट और आकर्षक अभ्यारण्य बारनवापारा का ऐसा कायाकल्प किया गया है कि उसका एक नया ही स्वरूप सामने आया है.

वन विभाग ने कैंम्पा मद से किया उल्लेखनीय कार्य

बारनवापारा अभ्यारण्य में आया यह परिवर्तन वन्यप्राणी रहवास उन्नयन कार्य के अंतर्गत कैम्पा यानी छत्तीसगढ़ प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरणद्ध के वार्षिक कार्ययोजना 2021-22 में स्वीकृत राशि से किया गया है. इसके तहत 5 हजार 920 हेक्टेयर रकबा में सघन लेन्टाना उन्मूलन और यूपोटोरियम उन्मूलन का कार्य हुआ है. जिसमें से बारनवापारा अभ्यारण्य के 19 कक्षों में कुल 950 हेक्टेयर रकबा में लेन्टाना उन्मूलन का काम और 32 कक्षों में कुल 4 हजार 970 हेक्टेयर रकबा में यूपोटोरियम उन्मूलन का कार्य शामिल है. राजधानी रायपुर से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर बलौदाबाजार वनमंडल अंतर्गत स्थित बारनवापारा अभ्यारण्य में हुए वन्यप्राणी रहवास उन्नयन के काम को वहां की नमी युक्त मृदा का अच्छा योगदान मिल रहा है क्यो कि जमीन की नमी में घास की हर प्रजाति अच्छी तरह से शीध्र विकास पाती है जो अभ्यारण्य के वन्यप्राणियों के चराई के लिए काम में आती है. जिससे वे लेन्टाना और यूपोटोरियम के उन्मूलन कार्य के बाद अब स्वच्छंद विचरण भी करने लगे हैं.

स्वछंदता और निर्भिकता से धूमते वन्य प्राणियों से मोहित हैं सैलानी

पूरी आजादी और निर्भिकता से घूमने वाले इन वन्य प्राणियों के दर्शन अब पर्यटकों को आसानी से होने लगे हैं जिससे बार नवापारा अभ्यारण्य दूर-दूर के सैलानियों को लुभाने लगा है. इस अभ्यारण्य में मिलने वाली स्वच्छंदता और पौष्टिक भोजन से यहां के वन्यप्राणी भी स्वस्थ और तन्दुरूस्त दिखाई देने लगे हैं. अभ्यारण्य में वन्यप्राणी रहवास उन्मूलन कार्य के साथ ही साथ घास पुनुरोत्पादन में भी स्पष्ट अंतर देखा जा सकता है. बारनवापारा अभ्यारण्य का कुल क्षेत्रफल 244.86 वर्ग किमी है जिसमें मुख्यतः मिश्रित वन, साल वन और पहले वृक्षारोपित हुए सागौन है. बारनवापारा के मिश्रित वनों में मुख्य रूप से कर्रा, भिर्रा, सेन्हा, पाये जाते हैं. सागौन वृक्षारोपण क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से उगे सागौन है और साल वन क्षेत्र कम रकबे में है. छत्रक प्रजाति के अलावा यहां शाकिय प्रजाति जैसे यूपोटोरियम, लेन्टाना, चरोठा वगैरह प्रमुख खरपतवार के रूप में प्राप्त होता हैं, जिनके कारण बारनवापारा अभ्यारण्य क्षेत्र में पाये जाने वाले शाकाहारी वन्यप्राणियों को घास आदि नहीं मिलती, वन्यप्राणियों को आवागमन में भी दिक्कत होती है और मॉसभक्षी प्राणियों से भी बचाव कठिन हो जाता है. वन्य शाकाहारी प्राणियों को इससे बचाने के लिए बारनवापारा अभ्यारण्य में वन्यप्राणी रहवास उन्नयन कार्य के तहत सघन लेन्टाना तथा यूपोटोरियम के उन्मूलन का कार्य किया गया है, जिससे बारनवापारा अभ्यारण्य में अब वन्यप्राणियों को वर्षभर हरी खाद्य घास उनके भोजन और चारा के रूप में उपलब्ध हो रहा है.

अनेकों वन्य प्रणियों से भरा अभ्यारण्य बन रहा आकर्षण का केन्द्र

स्मरण रखने योग्य बात ये है कि बारनवापारा अभ्यारण्य में तेन्दुए, गौर, भालू, साम्भर, चीतल, नीलगाय, कोटरी, चौसिंघा, जंगली सुअर, जंगली कुत्ता, धारीदार लकड़बग्घा, लोमड़ी, भेड़िया और मूषक मृग जैसे वन्यप्राणी बहुतायत में मिलता है और पर्यटकों के द्वारा आसानी से देखा भी जा रहा है. वृक्ष का वन से और वन का वन्य प्राणियों से एक ऐसा सुंदर समायोजन बन रहा है कि आने वाले समय में छत्तीसगढ़ राज्य अपने वनों के लिए, अपनी हरियाली के लिए, निर्मल प्राण वायु के लिए और निर्भीक वन्य प्राणियों के लिए भी प्राथमिकता से पहचान लिया जाएगा.