रेणु अग्रवाल, धार। प्रसिद्ध पर्यटन नगरी मांडू अपनी आबोहवा और सुंदर महलों के लिए जाना जाता है, वहीं वहां मौजूद खुरसानी इमली के पेड़ों को देखकर पर्यटक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। अब यह खुरसानी इमली का पेड़ मांडू से निकलकर हैदराबाद तक का सफर तय करेगा। हैदराबाद के पर्यावरणविद रामदेव राव मांडू से 11 खुरसानी इमली के पेड़ों को अनुमति लेने के बाद हैदराबाद में निजी बॉटनिकल गार्डन में संजोएंगे। इन 11 पेड़ों को यहां से क्रेन के माध्यम से निकाला गया, वहीं ट्राले में भरकर हैदराबाद ले जाया जा रहा है। यह खुरसानी इमली औषधीय गुणों से भरपूर होती है ।
पर्यावरणविद रामदेव राव ने बताया कि उन्होंने हैदराबाद में 350 एकड़ जमीन पर अपना बॉटनिकल गार्डन विकसित कर रहे हैं। रामदेव अपना इंपोर्ट एक्सपोर्ट का कारोबार जो कि वह 75 देशों में करते थे उसको छोड़कर वे अब प्रकृति की सेवा में लग गए हैं। उन्होंने कहा कि उनको बचपन से ही पेड़ों से लगाव था। जब वे विदेशों में निजी बॉटनिकल गार्डन देखते थे तो उन्हें भारत में भी इस तरह के गार्डन स्थापित करने का आइडिया आया। वे धार जिले के मांडू में 4 वर्ष पूर्व आए थे, जब मांडू में उन्होंने खुर्सानी इमली के पेड़ देखें तो उन्होंने मन बनाया कि इस प्रजाति को अपने हैदराबाद स्थित गार्डन में ले जाकर लगाएंगे।
उन्होंने कहा कि मांडू में आकर उन्होंने पहले पूरा सर्वे किया। यहां पर उन्होंने देखा कि आदिवासियों के घर के आस-पास खुर्सानी इमली के 11 पेड़ लगे हुए हैं, जो धराशायी होने की स्थिति में और उन्हें ट्रीटमेंट की भी आवश्यकता थी। उन्होंने वन और राजस्व विभाग से ले जाने की अनुमति ली। अब वह भारी भरकम खुर्सानी इमली के 11 पेड़ों को ट्राले में रखकर एक हजार (1000) किलोमीटर दूर हैदराबाद स्थित बॉटनिकल गार्डन में ट्रांसप्लांट के लिए ले जा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उनके पास इस प्रजाति के अन्य पौधे भी हैं जिसे वह मांडू में लगाने को तैयार है।
बता दें कि खुर्सानी इमली की यह मुख्य प्रजाति है जो मांडू में है। इस पेड़ का व्यास काफी बड़ा और फल भी बड़ा होता है। मांडू क्षेत्र में लगभग एक हजार के करीब पेड़ हैं। इसका इतिहास भी काफी रोचक है। 15 वीं सदी में अलाउद्दीन खिलजी को अफगानिस्तान के सुल्तान खुरासान ने कुछ बोलने वाले तोते और खुरसानी इमली के पौधे भेंट किए थे। इस पौधे का वानस्पतिक नाम बाव बाव है। अलाउद्दीन खिलजी ने पूरे साम्राज्य में खुर्सानी इमली के पौधे लगाए थे लेकिन सिर्फ मांडू के आसपास के क्षेत्रों में ही अनुकूल जलवायु मिलने के कारण ही पौधे पनप सके। मूल रूप से यह प्रजाति अफ्रीका देश की है। वहीं पर्यावरणविद रामदेव राव ने बताया कि इन पेड़ों को क्रेन से निकलवाया गया है। स्पेनिश वैज्ञानिकों के द्वारा ट्रेंड किए गए कर्मचारी इन्हें लगाएंगे। इन्हें प्रॉपर ट्रीटमेंट दिया जाएगा और मांडू की विरासत सुरक्षित रहेगी।
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