बस्तर से लौटकर डॉ. वैभव बेमेतरिहा की रिपोर्ट
राजधानी रायपुर से 300 किलोमीटर दूर छत्तीसगढ़ का सबसे खूबसूरत इलाका बस्तर है. बस्तर की पहचान आदिम संस्कृति, नैसर्गिक खूबसूरती, भरपूर खनिज संपदा से रही है. कुछ एक दशकों में एक पहचान नक्सलवाद से बनी, जो कि अब मिटती जा रही है. लेकिन इन सबके बीच बस्तर की एक छवि हाल के दिनों में धर्मांतरण विवाद से भी बनती और बिगड़ती जा रही है. इसी सूरत-ए-हाल पर पढ़िए ‘भेजरीपदर’ गांव की ग्राउंड रिपोर्ट, जो एक करीब सप्ताह के लिए छावनी में तब्दील हो गया था, जहाँ बहुत तनाव था.
बस्तर जिला मुख्यालय जगदलपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर दंतेवाड़ा राष्ट्रीय मार्ग पर पश्चिम दिशा में दाहिनी ओर प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना से बनी एक पक्की सड़क जाती है. पक्की सड़क कई गांवों से होकर गुजरती है. सड़क किनारे से जंगल की खूबसूरती देखते बनती है. गर्मी का मौसम है, बावजूद इसके जंगल में हरियाली नजर आती है.
विदेशी संस्था की ओर से संचालित अंग्रेजी माध्यम का स्कूल
राष्ट्रीय राजमार्ग से कुछ एक किलोमीटर की दूरी तय कर हमारी गाड़ी ‘भेजरीपदर’ गांव की सीमा में प्रवेश कर जाती है. गांव में जिस समय पर पहुँचे शाम हो चुकी थी. गांव के प्रवेश द्वार पर दाहिनी ओर एक बड़ा स्कूल दिखाई पड़ता है. जिसका परिसर काफी बड़ा है. परिसर के अंदर स्कूल बस खड़ी थी. गांव वालों से जानकारी हुई कि अंग्रेजी माध्यम का यह स्कूल ईसाई समुदाय के एक विदेशी संस्था की ओर से संचालित है. स्कूल में शिक्षक ज्यादातर बाहर से हैं.
गांव में बढ़ती सुविधाएं
बस्तर का वनांचल गांव होने के बाद भी भेजरीपदर में सुविधाएं लगभग शहर के करीब वाले गांव जैसी दिखाई पड़ती है. गांव में अच्छी सड़क, बिजली, पानी, नवीन पंचायत भवन, हेल्थ वेलनेस सेंटर, 6 बिस्तर क अस्पताल भवन, आदि है. हालांकि गांव में ज्यादातर मकान कच्चे थे.
पुलिस का स्टॉपर
गांव के अंदर जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते गए जंगल की खामोशी की तरह का एहसास होने लगा था. हालांकि गांव में लोगों की आवा-जाही थी, कुछ लोग चौराहे पर बैठें मिले. चौराहे के पास ही पुलिस का स्टॉपेज मिला. चौराहे पर बैठे लोगों से जैसे ही हमने धर्मांतरण के विषय पर बात की वे सब उठ खड़े हुए. वे कहने लगे पत्रकार हो. प्रेस से हो. हम क्या बोले ? हम तो अपने धर्म को बचाने के लिए लड़ रहे. आगे पुलिस वाले हैं उनसे पूछो.
चौराहे पर जहां खड़े थे वहाँ से एक कच्चा रास्ता जाता है. उसी रास्ते पर पुलिस स्टॉपेज थी. आगे पुलिस की कई गाड़ियाँ खड़ी दिखाई दी. हम उसी ओर आगे बढ़ चले. पुलिस के बहुत से जवान स्कूल में ठहरे नजर आए, कुछ अधिकारी और जवान बाहर बैठे हुए थे. जहाँ पुलिस और स्थानीय प्रशासन के अधिकारी बैठे थे, ठीक उसी के सामने एक चर्च दिखाई दिया.
फ्लैशबैक
इस कहानी में आगे बढ़ने से पहले अब थोड़ा पीछे लौटना होगा. दरअसल भेजरीपदर गांव धर्म परिवर्तन को लेकर अब दो खेमों में बँट चुका है. एक खेमा मूल आदिवासियों का है, दूसरा खेमा आदिवासी धर्म छोड़कर ईसाई धर्म को अपना चुके लोगों का है. दोनों पक्षों के बीच 19 मार्च को शव दफनाने को लेकर विवाद हो गया. शव था मतांतरित महिला वेको का था. इसे लेकर विवाद इतना बढ़ा कि दोनों पक्षों के बीच मारपीट और पथराव हो गया.
गांव से इस घटना की जानकारी तोकापाल थाने तक पहुँची और थाने से भी उच्च अधिकारियों तक. मामले की गंभीरता और संवेदनशीलता को देखते हुए पुलिस बल की गांव में तैनाती कर दी गई. दोनों पक्षों के बीच विवाद इतना बढ़ चुका था कि गांव में अधिकारियों की टीम के साथ पुलिस बल की तैनाती शांति कायम होने तक कर दी गई.
1200 की आबादी और गांव में तीन चर्च
अब फिर से वहीं लौटिए जिस जगह पर अधिकारी बैठे थी, जहाँ पुलिस के जवान खड़े थे, ठीक चर्च के सामने. चर्च को देखकर अंदाजा हो गया था कि यह नया नहीं है, कुछ साल पुराना है. स्थानीय लोगों से बातचीत में पता चला करीब एक दशक पुराना चर्च है. और गांव में एक नहीं तीन चर्च हैं. अधिकारियों से बातचीत के बाद हम उस रास्ते की ओर आगे बढ़ गए, जिस ओर सरपंच का घर था.
सरपंच का घर पांडू पारा में था. पांडू पारा अभी उतना विकसित नहीं हुआ जितना है पटेल पारा, यादव पारा, कोटवार पारा है. पांडू पारा से आगे मजार पारा भी है. और इन दोनों से पहले लखमा पारा. लखमा पारा और पांडू पारा में चर्च का निर्माण हुआ. पांडू पारा जाने वाला रास्ता पूरी तरह से कच्चा है, लेकिन चारपहिया जाने लायक है. आने वाले दिनों में सीसी रोड का निर्माण हो जाएगा. इसी रास्ते पर सुराजी योजना के तहत निर्मित गौठान है. गौठान के पास ही कुछ दूरी पर मजार पारा है.
रामू का भतीजा बन गया जोसफ
पांडूपारा में पहुँचते ही एक बड़ा स मकान दिखता है, जो कि पक्का मकान है. पक्का मकान ही सरपंच का घर है. घर के बाहर सरपंच के परिवार के लोगों से हमारी मुलाकात हुई. सरपंच के परिवार के लोग आदिवासी धर्म को छोड़कर मसीह धर्म को अपना चुके हैं और इस धर्म से बहुत खुश हैं.
रामू पोयाम कहते हैं कि परिवार के लोग 20 साल पहले ही मसीह धर्म को अपना चुके हैं. पहले परिवार के लोगों की तबीयत बहुत खराब रहती थी. बीमारी की वजह से कुछ सदस्यों को खो चुके थे. बहन की तबीयत खराब रहती थी. इसी दौरान हम लोग मसीह धर्म वालों के संपर्क में आए. बहन का मसीह धर्म के लोगों ने इलाज किया. बहन ठीक हुई और हमारा विश्वास बढ़ गया. हमने अब मसीह धर्म को अपना लिया है. हिंदू लोग चाहते हैं कि मूल धर्म में लौट जाए, लेकिन हमें अपने मूल धर्म में नहीं जाना है. हम जहाँ हैं, वहीं खुश हैं. रामू पोयाम का हिंदू से तात्पर्य अपने मूल धर्म आदिवासी से है.
करीब 80 परिवार कर चुके हैं धर्म परिवर्तन
रामू पोयाम यह बताते हैं कि गांव में धर्म परिवर्तन जैसा मुद्दा ही नहीं था. यहाँ करीब 70-80 परिवार के लोग आदिवासी धर्म को छोड़कर दशकों पर पहले क्रिश्चन धर्म को अपना चुके हैं. गांव में तीन चर्च हैं. एक पांडू पारा में और दो लखमा पारा में. पहला चर्च गांव में 2008 में बना. इसके बाद दो साल में दो और चर्च बने. लेकिन तब गांव के लोगों ने कोई आपत्ति नहीं की थी. न ही किसी तरह का विवाद हुआ था. चर्च निर्माण के 10-12 साल बाद भी किसी तरह से विवाद नहीं हुआ और सब तीज-त्योहार एक साथ मनाते रहे. अचनाक 19 मार्च को हमारे ही रिश्तेदारी में एक महिला के शव को दफनाने को लेकर विवाद हुआ. दो पक्षों के बीच विवाद इतना बढ़ा कि पुलिस बल तैनात कर दी गई.
रामू की तरह कई लोग जो धर्म परिवर्तन कर चुके हैं, वें सब परिवर्तन के पीछे एक ही बात बताते हैं कि उनके परिवार के सदस्य बीमारी से परेशान थे, जिन्हें कहीं से राहत नहीं मिल रही थी, लेकिन मसीह धर्म के लोगों के पास जाने ही बीमारी से ठीक हो गई और घर की आर्थिक स्थिति भी सुधरने लगी. वहीं अब नई पीढ़ी के लोगों का नामकरण भी मसीह धर्म वालों के नाम की तरह ही हो रहा है. जैसे रामू पोयाम का भतीजा अब जोसफ हो गया.
धर्मपरिवर्तन कर चुके लोगों से बातचीत में एक बात समझ में आ गई थी, वे अपने मूल धर्म और संस्कृति से पूरी तरह से दूर हो चुके हैं और वे दोबारा उस ओर लौटना नहीं चाहते. साथ ही यह बात भी समझ में आई कि वे कठिन से कठिन सवालों का जबाव देने के लिए तैयार हैं, जैसे उन्हें पहले समझा दिया गया हो. परिवर्तित लोग कानून और संवधिान की बात करते हैं और बताते हैं कि संविधान में धर्म को लेकर क्या कहा गया है. ऐसा लगा जैसे वे इन मुद्दों पर घंटों बातचीत कर सकते हैं.
सर्व आदिवासी समाज का पक्ष
पांडू पारा से हम यादव पारा पहुँचे. यादव पारा के कई लोगों से हमने बात करने की कोशिश की. लेकिन यादव लोगों ने धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर कुछ भी नहीं कहा. आदिवासी परिवारों ने भी कुछ नहीं कहा. इस पूरे मामले में मुखर रहे सर्व आदिवासी समाज के नेता महेश कश्यप की जानकारी मिली. लेकिन उनसे गांव में मुलाकात नहीं हो पाई.
महेश कश्यप ने फोन पर हुई बातचीत में कहा कि बस्तर के अंदर कई गांवों में स्थिति अनुकूल नहीं है. धर्मांतरण का मुद्दा काफी बड़ा हो गया है. पहले लोगों को धर्मांतरण के फायदे और नुकसान का अंदाजा नहीं था. अब समाज के लोग धीरे-धीरे समझने लगे हैं. भेजरीपदर की घटना एका-एक नहीं हुई है. दरअसल परिवर्तित लोग आदिवासी संस्कृति और सनातन परंपरा के खिलाफ काम करने लगे हैं. हमें यह जानकारी मिली है कि जिन्होंने अपना धर्म बदल लिया वे हमारे देवी-देताओं और रुढ़ी परंपराओं का विरोध और अपमान करते हैं.
18 मार्च शनिवार को जब परिवर्तित महिला का शव दफनाने लेकर जा रहे थे तो गांव के लोगों ने विरोध किया. दो दिनों तक गांव में भारी विरोध हुआ. 20 मार्च सोमवार को परिवर्तित लोग बड़ी संख्या में गांव में जुट गए और हमारे समाज के लोगों पर हमला कर दिया. इस घटना के बाद गांव में माहौल तनापूर्ण हो गया, प्रशासन ने फोर्स लगा दी. हम चाहते हैं कि गांव में शांति रहे. हम किसी धर्म का विरोध नहीं कर रहे, लेकिन अपनी संस्कृति को बचाने के लिए हम आगे आ रहे हैं.
भेजरीपदर से प्रशासन सतर्क
पुलिस बल के साथ गांव में शांति स्थापित करने में जुटे रहने वाले तोकापाल के एसडीएम ऋृतुराज सिंह भी हमने बात की. उन्होंने भेजरीपदर की घटना को एक सीख बताया है. कहा कि जरूरी है कि सभी समाज आपस में मिलजुल कर रहे. हमने एक सप्ताह तक शांति की यही कोशिश की. सभी पक्षों से लगातार हमने संवाद किया. लोगों का दिल आपस में मिला रहे यही चाहते हैं. खुशी है कि एक सप्ताह का तनाव अब दूर हो गया है. हमारी कोशिश यही रहेगी कि अन्य किसी गांव में ऐसा कोई विवाद उत्पन्न न हो. हम पहले से ही अब और ज्यादा सजग हैं.
भेजरीपदर से लौटते-लौटते शाम ढल चुकी थी, अंधेरा हो चुका था. मन में सवाल गहराते ही जा रहे थे, जैसे रात गहराती जा रही थी. क्या बस्तर सच में अब इसी रूप में बदल रहा ? बस्तर में इस बदलाव का परिणाम भविष्य में क्या होगा ? आदिवासी क्या मूल संस्कृति से सच में दूर हो रहे हैं ? क्या आने वाले दिनों में बस्तर के गांवों में संघर्ष और बढ़ेगा ? क्या बस्तर में परिवर्तन और वापसी का कोई प्रायोजित मिशन चल रहा है ? सवाल अनगिनत थे, लेकिन जवाब स्पष्ट नहीं. क्योंकि बस्तर में ये कहानी एक भेजरीपदर की नहीं, कई गांवों की है.
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