दिल्ली. नरेंद्र मोदी सरकार ने बड़े गाजे-बाजे औऱ शोरगुल के साथ जीएसटी यानि कि गुड्स एंड सर्विस टैक्स को देश में लागू किया था. सरकार को उम्मीद थी कि एक देश, एक टैक्स की उसकी धारणा को ये कानून मदद करेगा औऱ टैक्स सिस्टम में एकरुपता आएगी.
अब सरकार के लिए खतरे की घंटी बज गई है. आंकड़ों पर गौर करें तो जीएसटी कलेक्शन में लगातार कमी आ रही है. जहां जुलाई 2017 में जीएसटी कलेक्शन 93,590 करोड़ था वहीं ये घटकर फरवरी 2018 के ताजा प्राप्त आंकड़ों में 85,174 करोड़ घटकर रह गया है. यानि कि अब तक के कुल कलेक्शन में करीब 9 हजार करोड़ रुपये की कमी आई है.
खतरे की बात सरकार के लिए सिर्फ ये नहीं है कि उसके जीएसटी कलेक्शन में कमी आ रही है बल्कि जो सरकार और उसके अधिकारियों के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात है वो ये है कि ये कलेक्शन लगातार गिर रहा है. अगर आंकड़ों पर गौर करें तो दिसंबर 2017 में जहां जीएसटी कलेक्शन 88,929 करोड़ था वहीं ये कलेक्शन जनवरी 2018 में घटकर 86,318 करोड़ रह गया जबकि फरवरी माह में ये कलेक्शन 85,174 करोड़ हो गया. माना जा रहा है कि मार्च माह के जीएसटी कलेक्शन के आंकड़ों में औऱ भी ज्यादा कमी आ सकती है.
व्यापारी और बिजनेस क्लास इसके पीछे जीएसटी नियमों का बेहद उलझा हुआ होना औऱ पूरे सिस्टम में भटकाव औऱ उलझाव को दोषी बता रहे हैं. व्यापारियों का कहना है कि कभी सर्वर की दिक्कत तो जीएसटी फार्म में ढेर सारी विसंगतियां उन्हें परेशान कर रही हैं. अगर, हालात यही रहे तो व्यापारी जीएसटी से बचने के नए-नए तरीके खोजेंगे और जिसका सीधा खामियाजा सरकार को उठाना पड़ेगा.
वैसे घटते जीएसटी कलेक्शन से सरकार के माथे पर चिंता की लकीरें हैं. अब सरकार जीएसटी फार्म को और भी सरल बनाने में लगी है. उसके नतीजे तो आने वाले वक्त में ही देखने को मिलेंगे. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 25 मार्च 2018 तक सिर्फ 69 फीसदी एलिजिबल टैक्सपेयर्स ने जीएसटीआर-3बी भार्म भरा है. यानि कि टोटल रजिस्टर्ड 1.05 करोड़ टैक्स पेयर्स में से सिर्फ 86.3 लाख जीएसटी टैक्सपेयर्स ने ये फार्म भरा है.
जानकारी के मुताबिक इससे साफ पता चलता है कि सरकार को रेट स्ट्रक्चर औऱ दूसरे मुद्दों पर गंभीरता से सोचना होगा. व्यापारियों का कहना है कि अगर सरकार ऐसे ही प्रयोग करती रही और व्यापारियों की चिंताओं को उसने गंभीरता से नहीं लिया तो उसके नुकसान सरकार को ही भरने होंगे.