नई दिल्ली. गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) को लेकर अभी भी स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई है. एक तरफ व्यापारी कश्मकश में है, वहीं दूसरी ओर अधिकारी भी एक्ट की मनमानी व्याख्या कर रहे हैं, जिससे विवाद की स्थिति बन रही है. ऐसे ही एक प्रकरण में जीएसटी कमिश्नर की ओर से भेजे गए स्पेशल ऑडिट के नोटिस के खिलाफ दायर याचिका पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र से जवाब मांगा है. याचिका में सर्विस टैक्स रूल्स 1994 के रूल 5ए ( स्पेशल ऑडिट का अधिकार) को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है.
याचिकाकर्ता अनुराग ओझा की ओर से सेंट्रल जीएसटी कमिश्नर (ऑडिट)-2 की ओर से भेजे गए नोटिस को लेकर दायर याचिका पर जस्टिस एस रवींद्र भट्ट और जस्टिस प्रतीक जैन की बेंच ने केंद्र और संबंधित विभाग से जवाब तलब किया है. याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई थी कि सर्विस टैक्स के जीएसटी में समाहित होते समय सेक्शन 174 के तहत कुछ पुराने प्रावधान कायम रखे गए हैं, जबकि स्पेशल ऑडिट के अधिकार वाले रूल 5ए का वजूद नहीं रह गया हैं.
याचिकाकर्ता ने बताया कि फाइनेंस एक्ट 1994 के चैप्टर 5 के तहत सर्विस टैक्स वजूद में आया था, जिसमें रूल 5ए जोड़कर सीएजी या सर्विस टैक्स कमिश्नरों को स्पेशल ऑडिट का अधिकार दिया गया. 2014 में सरकार ने फाइनेंस एक्ट में बदलाव कर रूल 5(20) जोड़कर अधिकारियों के लिए इसके लिए रिकॉर्ड लेने का रास्ता साफ कर दिया. याचिका में इस तरह के ऑडिट के खिलाफ दलील दी गई कि जीएसटी लागू होने के साथ ही रूल 5ए खत्म हो गया, भले ही जीएसटी एक्ट के सेक्शन 174 के तहत इससे संबंधित रूल कायम रखने का प्रावधान लागू है. वहीं असेसी को बिना सुनवाई का मौका दिए कमिश्नर यह कैसे तय कर सकता है कि उसने टैक्स चोरी या कुछ गलत हरकत की है.
व्यापारी काम करे या सिर्फ रिटर्न फाइल करता रहे
इस संबंध में सीए राजेश अग्रवाल ने लल्लूराम डॉट कॉम से चर्चा में बताया कि जीएसटी को लेकर व्यापारियों की परेशानी बरकरार है. दो दिनों से जीएसटी की वेबसाइट ही नहीं खुल रही है. वहीं सरकार की तरफ से तैयारी नहीं होने की वजह से ही एनुअल रिटर्न भरने की समय सीमा भी 31 दिसंबर 2018 से बढ़ाकर 31 मार्च 2019 तय कर दी गई है. जीएसटी रिटर्न दाखिल करने में आ रही परेशानियों के अलावा अब सर्विस टैक्स ऑडिट को लेकर चिट्ठी आ रही है. अब व्यापारी जीएसटी रिटर्न भरे, सर्विस टैक्स का ऑडिट कराए या अपना व्यापार करे. इसके लिए जरूरी है कि सरकार-विभाग एक समयसीमा तय कर दे कि साल-डेढ़ साल तक के सर्विस टैक्स रिटर्न को चेक करेंगे. वैसे भी स्पेसिफिक इनपुट हो तो विभाग के पांच साल तक के रिकार्ड खंगालने का अधिकार है ही.