हेमंत शर्मा, इंदौर। अवैध शराब के इस पूरे खेल का खुलासा 17 अप्रैल 2024 को हुआ था। पुलिस ने प्रेस नोट जारी कर इसे बड़ी कार्रवाई बताया, 300 पेटी अवैध अंग्रेजी शराब पकड़ी, वाहवाही लूटी, अधिकारियों ने एक-दूसरे की पीठ थपथपाई। लेकिन आज 14 नवंबर 2025 है, यानी डेढ़ साल से ज्यादा हो चुके हैं, फिर भी इस केस में असली किरदार शराब माफिया सूरज रजक को पुलिस ने आज तक आरोपी तक नहीं बनाया। यह वही सूरज रजक है, जिसका नाम पकड़े गए ड्राइवरों और कर्मचारियों ने अपने बयान में साफ-साफ लिया था।
पुलिस ने पूरे डेढ़ साल में क्या किया?
पुलिस ने उस दिन बाईपास स्थित शराब दुकान से DVR जब्त किए थे। उन फुटेज में शराब का ट्रक साफ दिखाई देता है। चालान डायरी में पूरे सप्लाई नेटवर्क का कच्चा–चिट्ठा दर्ज है। सबूत इतने सीधे और पुख्ता हैं कि कोई भी जांच अधिकारी इस केस को जोड़ने में दो घंटे भी नहीं लगाता। लेकिन इंदौर पुलिस ने पूरे डेढ़ साल में क्या किया? वही मामला, वही डायरी, वही फुटेज… बस कार्रवाई का नाम नहीं।
पुलिस पर क्या राजनीतिक दबदबा
इस पूरे शराब रैकेट के पीछे जिस बाहुबली विधायक का हाथ बताया जा रहा है, उसी दबाव के आगे पुलिस हर कदम पर झुकती दिखाई दी। पहले दिन की प्रेस कॉन्फ्रेंस में पुलिस ने इस केस को अपनी “मास्टर स्ट्रोक” कार्रवाई बताया था। लेकिन असली मास्टरमाइंड तक पहुंचने की हिम्मत किसी में नहीं बची। कार्रवाई सिर्फ छोटी मछलियों तक सीमित रही, बड़े मगरमच्छों पर हाथ डालने की कोशिश भी नहीं हुई। चालान डायरी पेश होने के बाद भी पुलिस ने सूरज रज़क को आरोपी नहीं बनाया। आरोपी बयान दे चुके थे, DVR फुटेज सब कुछ सामने था।
सत्ता के गलियारों में अपनी पकड़ के लिए मशहूर
मगर पुलिस ने राजनीतिक इशारे पर इस पूरे मामले को फाइलों में दबा दिया। छोटे-छोटे कर्मचारियों पर कार्रवाई करके मामला निपटा दिया गया, जबकि उनका सीधा कहना था कि सप्लाई के निर्देश सूरज रजक देता था।उधर DVR फुटेज में दिख रहा ट्रक कहा था, किस दुकान से भरा, किसके इशारे पर निकाला गया… सबके जवाब उन्हीं सबूतों में दर्ज हैं। लेकिन पुलिस ने जानबूझकर उसे अनदेखा किया, क्योंकि सवाल जिस शख्स तक जाता है, वह सत्ता के गलियारों में अपनी पकड़ के लिए मशहूर है।
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही
क्या इंदौर पुलिस बाहुबली विधायक के सामने नतमस्तक हो गई? अगर नहीं, तो फिर डेढ़ साल में सूरज रजक पर एक धारा तक क्यों नहीं जोड़ी गई? चालान डायरी किसलिए थी? DVR किसलिए जप्त किया गया था? आरोपी का सीधा बयान किसलिए दर्ज किया गया था? क्या यह सब सिर्फ कागजी शो था? सिर्फ इसलिए कि पुलिस दिखा सके कि उन्होंने चुनाव के पहले बड़ी सफलता हासिल की? सच्चाई यही है कि इंदौर में अवैध शराब का यह पूरा मामला शुरुआत से ही एक बड़ा रैकेट था, और पुलिस को इसकी पक्की जानकारी थी।
राजनीतिक दबाव में खत्म हो जाएगा
लेकिन जैसे-जैसे जांच ऊपर पहुंचती गई, राजनीतिक दबाव उतना ही भारी होता गया। और नतीजा आज शहर देख रहा है। पूरे सबूत होने के बाद भी कार्रवाई का ज़ीरो रिज़ल्ट। अब इस पूरे मामले में देखना होगा कि इंदौर पुलिस कमिश्नर संतोष कुमार सिंह क्या इसमें शराब माफिया सूरज रज़क का नाम जोड़कर उसे सलाखों के पीछे पहुंचाने का काम करते हैं या फिर यह पूरा मामला फाइलों में दबाकर फिर राजनीतिक दबाव में खत्म हो जाएगा।

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