रायपुर. हिन्दू वर्ष में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ मासों में चार बार नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है, जिसमें दो नवरात्रि को प्रगट एवं शेष दो नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है. चैत्र और आश्विन मास के नवरात्रि में देवी प्रतिमा स्थापित कर मां दुर्गा की पूजा-आराधना की जाती है, वहीं आषाढ़ और माघ मास में की जाने वाली देवी पूजा गुप्त नवरात्रि के अंतर्गत आती है. जिसमें केवल मां दुर्गा के नाम से अखंड ज्योति प्रज्ज्‍वलित कर या जवारे की स्थापना कर देवी की आराधना की जाती है.

देवी आराधना को हम तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं – पहला घट स्थापना, अखंड ज्योति प्रज्ज्‍वलित करना व जवारे स्थापित करना, श्रद्धालुगण अपने सामर्थ्य के अनुसार उपर्युक्त तीनों ही कार्यों से नवरात्रि का प्रारंभ कर सकते हैं या क्रमश: एक या दो कार्यों से भी प्रारम्भ किया जा सकता है. यदि यह भी संभव नहीं तो केवल घट स्थापना से देवी पूजा का प्रारंभ किया जा सकता है.

दुसरा सप्तशती पाठ व जप – देवी पूजन में दुर्गा सप्तशती के पाठ का बहुत महत्व है. यथासंभव नवरात्रि के नौ दिनों में प्रत्येक श्रद्धालु को दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए, लेकिन किसी कारणवश यह संभव नहीं हो, तो देवी के नवार्ण मंत्र का जप यथाशक्ति अवश्य करना चाहिए.

 नवार्ण मंत्र – ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै

पूर्णाहुति हवन व कन्याभोज – नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व का समापन पूर्णाहुति हवन एवं कन्याभोज कराकर किया जाना चाहिए. पूर्णाहुति हवन दुर्गा सप्तशती के मंत्रों से किए जाने का विधान है.

10 महाविद्या की होती है पूजा – गुप्त नवरात्रि की पूजा के नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की बजाय दस महाविद्याओं की पूजा की जाती है. ये दस महाविद्याएं मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी हैं. गुप्त नवरात्रि एक बहुत महत्वपूर्ण एवं तुरंत फलदायक पर्व है, अपने गुप्त उद्देश्यों अथवा इच्छाओं की प्राप्ति के लिए सच्चे मन से मंत्र जप करता है, तो उसकी सभी मनोकामनाएं बहुत जल्द पूरी हो जाती है.