रायपुर. गुरुवार के दिन पड़ने वाला प्रदोष ”गुरु प्रदोष व्रत” कहलाता है. इस उपवास को करने से अपने सभी मौजूदा खतरों को समाप्त कर सकते हैं. इस दिन के व्रत के फल से शत्रुओं का विनाश होता है. इसके अलावा गुरुवार प्रदोष व्रत रखने से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है. जिंदगी में सफलता प्राप्त होती है. प्रदोष के साथ अनंग त्रयोदशी की पूजा अत्यंत फलदायी है.
अनंग का एक अन्य नाम कामदेव है. अनंग अर्थात बिना अंग का. जब भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया, तो रति द्वारा अनंग को जीवत करने का करुण वंदन सुन भगवान ने कामदेव को पुन: जीवन प्रदान किया. किंतु बिना देह के होने के कारण कामदेव का एक अन्य नाम अनंग कहलाया है. इस दिन शिव एवं देवी पार्वती जी का पूजन किया जाता है.
इस पूजन से सौभाग्य, सुख ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. इसके साथ जीवन में प्रेम की कभी कमी नहीं रहती है. इस दिन पूजन करने से वैवाहिक संबंधों में सुधार होता है. इस दिन शिवलिंग पर जलाभिषेक करना चाहिये. साथ ही दूध, दही, ईख का रस, घी और शहद से भी अभिषेक करना चाहिये. इसके साथ ही ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करते रहना चाहिये.
भगवान शिव को सफेद रंग की वस्तुएं अर्पित करनी चाहिये. इसमें सफेद वस्त्र, मिठाई, बेलपत्र को चढ़ाना चाहिये. इस पूजन में तेरह की संख्या में वस्तु भी भेंट कर सकते हैं जिसमें तेरह सिक्के, बेलपत्र, लडडू, बताशे इत्यादि चढ़ाने चाहिये. पूजा में अशोक वृक्ष के पत्ते और फूल चढ़ाना बहुत शुभ होता है. साथ ही घी के दीपक को अशोक वृक्ष के समीप जलाना चाहिये. इस मंत्र का जाप करना चाहिये – “नमो रामाय कामाय कामदेवस्य मूर्तये। ब्रह्मविष्णुशिवेन्द्राणां नमरू क्षेमकराय वै.
गुरु दोष अनंग त्रयोदशी व्रत करने के लिए त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए. नित्यकर्मों से निवृत होकर भगवान् शिव का नाम स्मरण करना चाहिये. पूरे दिन उपवास रखने के बाद सूर्यास्त से लगभग एक घंटा पहले स्नान कर श्वेत वस्त्र धारण करने चाहिये. प्रदोष व्रत की आराधना करने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है. गंगाजल से पूजन के स्थान को शुद्ध करना चाहिए और उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए.
विभिन्न पुष्पों, लाल चंदन, हवन और पंचामृत द्वारा भगवान शिवजी की पूजा करनी चाहिए. एक प्रारंभिक पूजा की जाती है जिसमे भगवान शिव को देवी पार्वती भगवान गणेश भगवान कार्तिक और नंदी के साथ पूजा जाता है. उसके बाद एक अनुष्ठान किया जाता है जिसमे भगवान शिव की पूजा की जाती है और एक पवित्र कलश में उनका आह्वान किया जाता है. पूजन में भगवान शिव के मंत्र ‘ऊँ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए शिव को जल चढ़ाना चाहिए. इस अनुष्ठान के बाद प्रदोष व्रत कथा सुनते है या शिव पुराण की कहानियां सुनते हैं. महामृत्यंजय मंत्र का 108 बार जाप भी किया जाता है. पूजा के समय एकाग्र रहना चाहिए और शिव-पार्वती का ध्यान करना चाहिए. मान्यता है कि एक वर्ष तक लगातार यह व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप खत्म हो जाते हैं. धर्म ग्रंथों के अनुसार गुरु प्रदोष व्रत करने से शत्रुओं का विनाश हो जाता है.
इस व्रत की विधि इस प्रकार है
- प्रदोष व्रत में बिना जल पीए व्रत रखना होता है. सुबह स्नान करके भगवान शंकर, पार्वती और नंदी को पंचामृत व गंगाजल से स्नान कराकर बेल पत्र, गंध, चावल, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची भगवान को चढ़ाएं.
- शाम के समय पुन: स्नान करके इसी तरह शिवजी की पूजा करें. शिवजी की षोडशोपचार पूजा करें. जिसमें भगवान शिव की सोलह सामग्री से पूजा करें.
- भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं.
- आठ दीपक आठ दिशाओं में जलाएं. आठ बार दीपक रखते समय प्रणाम करें. शिव आरती करें। शिव स्त्रोत, मंत्र जप करें.
- रात्रि में जागरण करें.
इस प्रकार समस्त मनोरथ पूर्ति और कष्टों से मुक्ति के लिए व्रती को प्रदोष व्रत के धार्मिक विधान का नियम और संयम से पालन करना चाहिए.