Guru Purnima 2023. गुरु पूर्णिमा 3 जुलाई 2023 को है. हर साल गुरु के प्रति अपनी आस्था दिखाने के लिए आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर गुरु पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है. हिंदू पंचांग की गणना के मुताबिक इस वर्ष 2 जुलाई को शाम 6 बजकर 2 मिनट पर आषाढ़ महीने की पूर्णिमा तिथि शुरू हो जाएगी, जिसका समापन 3 जुलाई को रात 11 बजकर 8 मिनट पर होगा. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार गुरु पूर्णिमा का त्योहार 3 जुलाई को मनाया जाएगा.

यदि आप इस गुरु पूर्णिमा पर किसी को अपना गुरु बनाने की सोच रहे हैं, तो उससे पहले खूब सोच-विचार लें. क्योंकि जीवन में गुरु सिर्फ एक बार बनाया जाता है. उसे बार-बार नहीं बदला जाता है. भागती-दौड़ती जिंदगी में किसी को भी गुरु बनाने से पहले कबीरदास जी के दोहे की इस पंक्ति को जरूर याद कर लेना चाहिए.

गुरु कीजिए जानि के, पानी पीजै छानि । बिना विचारे गुरु करे, परे चौरासी खानि॥

यानी जिस तरह पानी को छान कर पीना चाहिए, उसी तरह किसी भी व्यक्ति की कथनी-करनी जान कर ही उसे अपना सद्गुरु बनाना चाहिए. अन्यथा उसे मोक्ष नहीं मिलता और इस पृथ्वी पर उसका आवागमन बना रहता है. कुल मिलाकर सद्गुरु ऐसा होना चाहिए जिसमें किसी भी प्रकार लोभ न हो और वह मोह-माया, भ्रम-संदेह से मुक्त हो. वह इस संसार में रहते हुए भी तमाम कामना, कुवासना और महत्वाकांक्षा आदि से मुक्त हो.

कौन दे सकता है दीक्षा ?

गुरु की कृपा और शिष्य की श्रद्धा रूपी दो पवित्र धाराओं का संगम ही दीक्षा है. यानी गुरू के आत्मदान और शिष्य के आत्मसमर्पण के मेल से ही दीक्षा संपन्न होती है. दीक्षा के संबंध में गुरूगीता में लिखा है-

गुरूमंत्रो मुखे यस्य तस्य सिद्धयन्ति नान्यथा। दीक्षया सर्वकर्माणि सिद्धयन्ति गुरूपुत्रके।।

– गुरूगीता 2/131

यानी जिसके मुख में गुरूमंत्र है, उसके सब कर्म सिद्ध होते हैं. दूसरे के नहीं, दीक्षा के कारण शिष्य के सर्वकार्य सिद्ध हो जाते है. गुरु दीक्षा के बाद गुरु और शिष्य दोनों का उत्तरदायित्व बढ़ जाता है. गुरु का उत्तरदायित्व समस्त बाधाओं को दूर करते हुए शिष्य को आध्यात्मिकता की चरम सीमा पर पहुंचाना होता है. वहीं शिष्य का उत्तरदायित्व हर परिस्थिति में गुरु के द्वारा बताए गए नियमों का पालन करना होता है.

हर बाधाओं को दूर कर देता है गुरु मंत्र

गुरु शब्द का अर्थ है जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए. जब हम गुरु मंत्र का निरंतर गुरु मार्गदर्शन में जप करते हैं तो एक समय बाद वह मंत्र सिद्ध होता है तथा हमें सिद्धि रूपी फल प्राप्त होता है. जब भी कोई कष्ट बाधा दुविधा आती है उस स्थिति में गुरु मंत्र का जाप हमें मार्ग प्रशस्त करता है.

गुरु कब बनाना चाहिए?

यूं तो बाल्यकाल की अवस्था में ही गुरु का सानिध्य पाना सबसे उत्तम होता है, क्योंकि यह वह उम्र है जब बालक जैसा सीखता और देखता है उसी दिशा की तरफ बढ़ना उसका आसान हो जाता है. पर चूंकि सबका ऐसा सौभाग्य नहीं होता की उन्हें सच्चे गुरु की प्राप्ति बचपन में ही हो जाए. अतः यह कहा जा सकता है संयोग से या तुम्हारी खोज के परिणामस्वरुप जिस उम्र में आपको गुरु का साथ मिल जाये वही समय आपके लिए उत्तम है.

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