रायपुर. 18 एवं 19 फरवरी को मध्यरात्रि 03 बजकर 48 मिनट पर गुरु वार्धक्य काल प्रारम्भ हो रहा है, जो कि 23 मार्च को दोपहर 01 बजकर 36 मिनट तक है. गुरु को शुभ कार्यों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. इसलिए गुरु के अस्त होने पर किसी भी प्रकार के शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं.
गुरु के अस्त होने को वार्धक्य काल माना जाता है और उदय होने के बाद भी तीन दिन तक गुरु की बाल्य अवस्था मानी जाती है, जिससे इन दिनों में शुभ काम नहीं किए जाते हैं. गुरु अस्त होने को तारा डूबना भी कहते हैं. जब तारा डूब जाता है वैवाहिक कार्य नहीं कर सकते हैं और ना ही अन्य शुभ कार्य किए जाते हैं.
गुरु को धर्म व मोक्ष से जोडा गया है जिस समय गुरु अस्त होता है. इस दौरान वह निर्बल हो जाता है और अपनी दशा/अन्तर्दशा में फ़ल नहीं दे पाता है. अस्त हुई उस समयावधि में कार्य रुक जाते हैं. गुरु को ज्ञान, शिक्षा, धर्म, विवाह, संतान, धन, संपत्ति, संतान,परोपकार आदि का कारक ग्रह माना जाता है.
गुरु अस्त का प्रभाव इन क्षेत्रों से संबधित व्यक्तियों के ऊपर अच्छा नहीं कहा जा सकता है. इसलिए इन क्षेत्रों से संबधित लोगों को इस समय संभलकर रहना चाहिए. गुरु अस्त का प्रभाव धार्मिक गुरुओं पर भी विपरीत देखा जा सकता है. इस समय इन्हें भी संभलकर रहना चाहिए अन्यथा मान-सम्मान को ठेस पहुंच सकती है. गुरु के वार्धक्य काल का प्रभाव भिन्न राशियों के लिए भिन्न ही होगा.