कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। ग्वालियर मेडिकल कॉलेज को लगभग 20 महीने बाद दान में शरीर मिला है. जिस पर अब छात्र शोध कर सकेंगे. कोरोना के चलते गजराराजा मेडिकल कॉलेज को पार्थिव देह दान में नहीं मिल रही थी. ऐसे में एनाटॉमी विभाग देह के संकट से गुजर रहा था, लेकिन ग्वालियर के 63 वर्षीय यशवंत पेंढारकर ने अपनी अंतिम शिक्षा बतौर अपना शरीर मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया. इसमें उनके परिजनों ने भी उनकी अंतिम इच्छा का सम्मान किया.

मेरे शरीर पर शोध कर चिकित्सक विद्यार्थी काबिल बने, वह मुश्किल से मुश्किल बीमारियों का हल निकाल सकें. जीते जी इस इच्छा को यशवंत पेंढारकर ने अपने परिजनों से कहा था. इसी बीच गांधी नगर में रहने वाले यशवंत पेंढारकर का निधन हो गया. इस कठिन वक्त में भी उनकी पत्नी और दोनों बेटों ने उनकी अंतिम इच्छा का ध्यान रखते हुए घर से मेडिकल कॉलेज तक उनकी अंतिम यात्रा निकाली और मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग को उनका देह दान में दिया. ऐसे में अब एमबीबीएस के विद्यार्थी इसके जरिए शरीर के विभिन्न अंगों को बारीकी से जान इलाज करना सीख पाएंगे और भविष्य के काबिल डॉक्टर बनेंगे.

मृतक यशवंत पेंढारकर के परिजनों के अनुसार 7 जुलाई 2017 को उनके द्वारा देह दान के लिए फॉर्म भरते हुए शपथ पत्र दिया गया था. इसमें उन्होंने लिखा था कि मृत्यु के बाद उनके शरीर को मेडिकल कॉलेज के एमबीबीएस छात्रों के अध्ययन और शोध के लिए दान कर दिया जाए. पेंढारकर वर्ष 2018 में बैंक से सेवानिवृत्त हुए थे. उनके बेटे पुष्कर ने बताया कि वर्ष 2012 में उन्हें सांस का रोग हुआ था. इसके बाद उनकी बीमारी बढ़ती गई. परिवार में काफी डॉक्टर हैं इसलिए उनके उपचार में अन्य चिकित्सकों का काफी सहयोग मिला. यही वजह है कि चिकित्सकों की सेवा को देखते हुए उन्होंने काबिल डॉक्टर तैयार करने के उद्देश्य से देह को दान करने की इच्छा जताई थी.

बता दें कि गजराराजा मेडिकल कॉलेज ग्वालियर में 21 साल में महज 31 शरीर ही दान में मिले हैं. एनाटोमी विभाग को वर्ष 2000 से पार्थिव शरीर दान में मिला शुरू हुए थे. पहली देह लीला पाठक की मिली थी. इसके बाद वर्ष 2003 में एक, 2008 में एक, 2011 में तीन, 2013 में दो, 2016 में 6, 2017 में 6, 2018 में 6, 2019 में 3 और 2020 में 1 शरीर दान में मिला था. मेडिकल कॉलेज के एनाटोमी विभाग अध्यक्ष के अनुसार यशवंत पेंढारकर को देह मिलने से चिकित्सा शिक्षा के छात्रों को लाभ मिलेगा. अभी तक देह न मिलने के अभाव में मेडिकल कॉलेज जबलपुर को पत्र लिख बॉडी भी मांगी गई थी.

यशवंत पेंढारकर की छोटे बेटे पुष्कर का कहना है कि उनके पिता को जीते जी इतना सम्मान मिला है, उसे ज्यादा सम्मान आज देह दान के बाद मिल रहा है. उन्होंने लोगों से अपील की है कि वह भी देह दान करें, ताकि भविष्य के काबिल डॉक्टर बन सके जो लोगों को नई जिंदगी दे पाए.

बहरहाल दानों में महादान रक्तदान को कहा जाता है, लेकिन उससे भी बड़ा कोई दान है तो वह है देहदान. क्योंकि इसमें देह दाता और उनके परिजनों के संयुक्त प्रयासों से ही यह दान सम्भव होता है. यही वजह है की ग्वालियर के यशवन्त पेंढारकर अपना देह दान करके मर कर भी हमेशा हमेशा हमेशा के लिए अमर हो गए.