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पी. रंजन दास, बीजापुर। छत्तीसगढ़-तेलंगाना की सरहद पर पुजारी कांकेर गांव में धर्मराज युधिष्ठिर की गुड़ी है, जो बस्तर के अलावा अन्यत्र कहीं नहीं है. यहां हर दूसरे वर्ष धर्म मण्डप के अवसर पर विशेष अनुष्ठान होता है. हालांकि, नक्सली समस्या की वजह से अनुष्ठान की रौनक पहले जैसे नहीं रह गई है. इसे भी पढ़ें : राज्योत्सव: वन विभाग के स्टॉल में परम्परागत वैद्य निःशुल्क परामर्श के साथ दे रहे औषधि…
बस्तर की लोक परम्परा के जानकार-साहित्यकारों की मानें तो महाभारत काल यानी महाकाव्य युग में दण्डकारण्य का वर्णन अवश्य मिलता है. चूंकि पांडवों का वनवास काफी लंबा था, इस दौरान उन्होंने ज्यादा समय दण्डकारण्य में व्यतीत किया था. इसका जीता-जागता सबूत बीजापुर जिला मुख्यालय से लगभग 72 किमी दूर पहाड़ी तराई में बसा पुजारी कांकेर गांव है.
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“बस्तर भूषण” में भी पुजारी कांकेर तथा इस गांव के समीप पर्वत पर पंच पांडव मंदिर अवस्थित होने का उल्लेख मिलते हैं.
गांव में पांडवों का पूजन उत्साह के साथ किया जाता है. यहां हर दूसरे वर्ष सम्पन्न होने वाले विशेष अनुष्ठान में पामेड़, मुकर्म, पेदाबोदिकल, चिकतराज समेत अन्य स्थानों से देव विग्रह जुटते हैं. एक विशेषता यह भी है कि पंच पांडवों के लिए पंच पुजारियों की प्रथा का आज भी अनुसरण हो रहा है.
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