मनीषा त्रिपाठी, भोपाल। मध्यप्रदेश के हरदा पटाखा फैक्ट्री ब्लास्ट के बाद एक एक कर कमियां और खामिया सामने आ रही है। इस मामले में फैक्ट्री संचालक जितने जिम्मेदार है उनती ही जिम्मेदारी प्रशासन के अधिकारियों की भी है। विस्फोटक नियंत्रक ने फैक्ट्री को पटाखा निर्माण का लाइसेंस नहीं दिया था। आम पटाखा विक्रेताओं की तरह पटाखों को स्टॉक करने का लाइसेंस था। आम लाइसेंस को मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस की तरह इस्तेमाल किया जा रहा था। राजेश और सोमेश अग्रवाल बिना लाइसेंस के 4 फैक्ट्रियां चला रहे थे।
तत्कालीन कलेक्टर ऋषि गर्ग ने 2022 में फ़ैक्ट्री लाइसेंस को सस्पेंड किया था। तत्कालीन कमिश्नर माल सिंह ने कलेक्टर के आदेश के खिलाफ स्टे दिया था। केवल 1 महीने के लिए स्टे दिया था। तत्कालीन एडीएम ने बगैर कलेक्टर की इजाजत के लाइसेंस रिन्यू कर दिया था। प्रदेश सरकार के वरिष्ठ अफसर मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस बता रहे है, वह पटाखे की मैन्युफैक्चरिंग का नहीं, पटाखे बेचने और स्टॉक करने का है। लाइसेंस में भी सिर्फ 15 किलो पटाखा निर्माण की अनुमति थी। तत्कालीन संभागायुक्त माल सिंह भयडिया और तत्कालीन एडीएम प्रवीण फूलपगारे की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे है।
कलेक्टर ने लाइसेंस सस्पेंड किया तो तत्कालीन संभागायुक्त ने कलेक्टर के आदेश के विरुद्ध स्टे क्यों दिया? लाइसेंस का स्टे क्लियर नहीं हुआ था तो तत्कालीन एडीएम प्रवीण फूलपगारे ने कलेक्टर से बिना अनुमति लिए इस लाइसेंस को रिन्यू किसके इशारे पर किया? कमिश्नर ने एक महीने का स्टे दिया था तो फिर महीने भर बाद अगली तारीख पर संभागायुक्त माल सिंह ने हरदा जिला प्रशासन को इस बात की सूचना क्यों नहीं दी कि स्टे खत्म हो चुका है। लाइसेंस 15 किलो का और 7 हजार किलो बारूद से पटाखे बन रहे थे। फैक्ट्री में तो रोजाना औसतन 700 लोग काम करते थे।
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