रायपुर. छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक अस्मिता और कृषि परंपराओं का प्रतीक हरेली तिहार इस वर्ष मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के निवास परिसर में अत्यंत हर्षाेल्लास और गरिमा के साथ मनाया गया। इस अवसर पर राज्य की समृद्ध विरासत, पारंपरिक कृषि यंत्रों, लोक परिधानों, खानपान और आधुनिक कृषि तकनीकों का समन्वय एक अद्भुत नजारे के रूप में सामने आया। कार्यक्रम स्थल को पारंपरिक छत्तीसगढ़ी रंग-रूप में सजाया गया था, जहां ग्रामीण परिधान पहने अतिथि, कलाकार और आमजन लोक संस्कृति में रमे हुए नजर आए।

हरेली उत्सव के दौरान मुख्यमंत्री निवास में परम्परागत और आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रदर्शन किया गया। मुख्यमंत्री साय ने प्रदर्शनी स्थल का भ्रमण कर विभिन्न पारंपरिक यंत्रों और वस्तुओं का अवलोकन किया। प्रदर्शनी में काठा, खुमरी, झांपी, कांसी की डोरी और तुतारी जैसे ऐतिहासिक कृषि उपकरणों को प्रदर्शित किया गया। कृषि विभाग द्वारा आयोजित आधुनिक कृषि यंत्रों की प्रदर्शनी, जिसमें नांगर, कुदाली, फावड़ा, रोटावेटर, बीज ड्रिल, पावर टिलर और स्प्रेयर जैसे यंत्रों का प्रदर्शन किया गया। ‘काठा’ वह परंपरागत मापक है जिससे पुराने समय में धान तौला जाता था; ‘खुमरी’ बांस और कौड़ियों से बनी छांव प्रदान करने वाली टोपी है; ‘झांपी’ शादी-ब्याह में उपयोग होने वाली वस्तुएं रखने की बांस से बनी पेटी; ‘कांसी की डोरी’ खाट बुनने में काम आती है और ‘तुतारी’ पशुओं को संभालने में उपयोग होती है।

मुख्यमंत्री साय ने यह भी कहा कि हरेली तिहार केवल पर्व नहीं, बल्कि यह हमारे कृषि जीवन, पशुधन और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक है। इस अवसर पर आयोजित प्रदर्शनी किसानों, युवाओं और आमजनों के लिए ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक रही। मुख्यमंत्री ने इन उपकरणों की जानकारी लेकर कृषि तकनीकी प्रगति की सराहना की और कहा कि छत्तीसगढ़ की खेती परंपरा और तकनीक के समन्वय से और भी अधिक लाभकारी और टिकाऊ बनेगी। किसानों को नई तकनीकों की जानकारी देकर हम राज्य की कृषि उत्पादकता को ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में आम नागरिक, किसान, छात्र और जनप्रतिनिधि उपस्थित रहे। इस आयोजन ने छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति और कृषि नवाचार के अद्वितीय संगम को सजीव रूप में प्रस्तुत किया, जो राज्य की समृद्ध परंपरा और विकासशील सोच का प्रतीक है।


मुख्यमंत्री ने की प्रदेशवासियों की सुख-समृद्धि की कामना
छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति के पहले पर्व “हरेली” पर मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने आज राजधानी स्थित अपने निवास कार्यालय में गौरी-गणेश, नवग्रह की पूजा कर भगवान शिव का अभिषेक किया। हरेली के पूजा-पाठ में विधानसभा अध्यक्ष डॉ रमन सिंह, उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा, स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल, कृषि मंत्री राम विचार नेताम, महिला बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े और राजस्व मंत्री टंक राम वर्मा भी शामिल हुए।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने खेती किसानी के कामों में उपयोग होने वाले नांगर, रापा, कुदाल व दूसरे कृषि यंत्रों की विधिवत पूजा-अर्चना कर हरेली उत्सव का शुभारंभ किया। इस मौके पर मुख्यमंत्री साय ने प्रदेश के किसानों समेत समस्त छत्तीसगढ़ वासियों की ख़ुशहाली एवं सुख-समृद्धि की कामना की।

छत्तीसगढ़ी व्यंजनों के स्वादों से सजी रही पारंपरिक थाली
छत्तीसगढ़ की धरती पर जब भी कोई त्योहार आता है तो वह केवल धार्मिक या सांस्कृतिक उत्सव भर नहीं होता, बल्कि वह जीवनशैली, परंपरा, स्वाद और सामाजिक सौहार्द का पर्व बन जाता है। इसी श्रृंखला में प्रदेश के प्रमुख कृषि पर्व हरेली तिहार मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के निवास में धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर पारंपरिक स्वादिष्ट छत्तीसगढ़ी व्यंजनों ने सभी अतिथियों का मन मोह लिया। प्रदेश की अतुलनीय पाक परंपरा को जीवंत करते हुए यहां आगंतुकों के स्वागत के लिए विशेष रूप से ठेठरी, खुरमी, पिड़िया, अनरसा, खाजा, करी लड्डू, मुठिया, गुलगुला भजिया, चीला-फरा, बरा और चौसेला जैसे दर्जनों पारंपरिक व्यंजनों की व्यवस्था की गई थी।

बांस की सूप, पिटारी और दोना-पत्तल में परोसे गए इन व्यंजनों ने न केवल स्वाद, बल्कि प्रस्तुतीकरण में भी लोकजीवन की आत्मा को उजागर किया। अतिथियों ने गर्मागर्म पकवानों का स्वाद लेते हुए राज्य की पारंपरिक पाककला की मुक्तकंठ से सराहना की। मुख्यमंत्री साय ने स्वयं भी इन व्यंजनों का स्वाद चखा और कहा कि हरेली तिहार केवल खेती-किसानी का पर्व नहीं है, बल्कि यह हमारी लोकसंस्कृति, हमारी परंपरा और आत्मीयता की अभिव्यक्ति है। इन पारंपरिक व्यंजनों में हमारी माताओं-बहनों की मेहनत, सादगी और स्वाद की समृद्ध परंपरा छिपी है, जो हमारी असली पहचान है। यह आयोजन न केवल हरेली पर्व की महत्ता को दर्शाता है, बल्कि यह प्रमाणित करता है कि छत्तीसगढ़ की आत्मा उसकी मिट्टी, उसके स्वाद और उसकी परंपराओं में रची-बसी है।
इस अवसर पर परिसर का हर कोना छत्तीसगढ़ी संस्कृति की सौंधी खुशबू से सराबोर था। कहीं ढोल-मंजीरों की थाप पर लोक नृत्य होते दिखे तो कहीं व्यंजनों की खुशबू लोगों को अपनी ओर खींचती रही। परंपरागत वेशभूषा में सजे ग्रामीण कलाकारों और सांस्कृतिक प्रस्तुति ने पूरे माहौल को जीवंत और आत्मीय बना दिया। कार्यक्रम में शामिल हुए वरिष्ठ अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों, कलाकारों और आमजनों ने इस आयोजन को एक स्मरणीय सांस्कृतिक अनुभव बताया।
हरेली की सुग्घर परंपरा के रंग में रंगा मुख्यमंत्री निवास
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री निवास हरेली पर्व की सुग्घर परंपरा के रंग में रंगा नजर आया। प्रवेश द्वार में बस्तर के मेटल आर्ट की झलक दिखी। इस द्वार पर लोगों के स्वागत में छत्तीसगढ़ का पारम्परिक वाद्य तुरही के मध्य में भगवान गणेश की प्रतिकृति है और मेटल आर्ट का घोड़ा भी उकेरा गया है। प्रवेश द्वार के बाद मध्य में तोरण द्वार है जिसे पारम्परिक टोकनी से सजाया गया है। साथ ही रंग-बिरंगी छोटी झंडियाँ तोरण के रूप में शोभा बढ़ा रही हैं। इस हिस्से में नीम और आम पत्तों की झालर को हरेली की परम्परा के प्रतीक के रूप में लगाया गया है। पूरी सजावट का मुख्य आकर्षण वे छोटी-छोटी रंग-बिरंगी गेड़ियां हैं, जिनका सुंदर स्वरूप यहां से मुख्य मंडप तक हर जगह दिखता है।

मुख्य मंडप द्वार को सरगुजा की कला के रंगों से आकर्षक बनाया गया है। इस द्वार की छत को पैरा से छाया गया है और सरगुजिहा भित्ति कला का के मनमोहक चित्र बनाये गए हैं। कई रंगों से सजा बैलगाड़ी का चक्का भी इस द्वार की रौनक बढ़ा रहा है। मुख्य कार्यक्रम मंडप के बाएँ हिस्से में छत्तीसगढ़ के ग्रामीण परिवेश का पारम्परिक घर बना है। इस घर के आहते को मैदानी छत्तीसगढ़ की चित्रकला से सजाया गया है। घर के आँगन में तुलसी चौरा और गौशाला है, जहाँ हल, कुदाल, रापा, गैती, टंगिया, सब्बल जैसे पारम्परिक कृषि यंत्र के साथ ही गोबर के उपले रखे हैं। इस ग्रामीण घर की दीवारों को सरगुजा की रजवार पेंटिंग के सुंदर चित्रों से सजाया गया है।
कार्यक्रम मंडप में कृषि यंत्रों की प्रदर्शनी मुख्य आकर्षण है। खास बात यह है कि इस प्रदर्शनी में पारम्परिक और आधुनिक कृषि यंत्रों को एक साथ प्रदर्शित किया गया है। पैडी सीडर, जुड़ा, बियासी हल, तेंदुआ हल और ट्रैक्टर जैसे यंत्र प्रदर्शित हैं।मंडप में एक ओर पारंपरिक छत्तीसगढ़ी व्यंजनों के जलपान का हिस्सा है तो वहीं सावन का झूला भी सावन के फुहारों भरे मौसम के आंनद को दर्शाता है। छत्तीसगढ़ का पारम्परिक रहचुली झूला भी आकर्षण का केंद्र है।

संस्कृति की छटा बिखेरते पारम्परिक नृत्य
हरेली के अवसर पर मुख्यमंत्री निवास में गेड़ी नृत्य और राउत नाचा जैसे पारम्परिक लोक नृत्य की छटा भी मनमोहक धुनों के साथ बिखर रही है। गेड़ी नृत्य के लिए बिलासपुर से दल आमंत्रित किया गया है। गेड़ी नृत्य के दल ने वेशभूषा में परसन वस्त्र के साथ सिर पर सीकबंद मयूर पंख का मुकुट, कौड़ी व चिनीमिट्टी से बनी माला और कौड़ी जड़ित जैकेट पहन रखा है। यह दल माँदर, झाँझ, झुमका, खँजरी, हारमोनियम और बाँसुरी की मधुर धुन में अपनी प्रस्तुति दे रही है। ग़ौरतलब है कि गेड़ी नृत्य की शुरुआत हरेली के दिन से होती है।
हरेली के मौके पर मुख्यमंत्री निवास में गड़बेड़ा (पिथौरा) से राउत नाचा के लिए 50 लोगों का दल पहुँचा है। इस दल में पुरुषों ने जहाँ धोती-कुर्ता के साथ सिर पर कलगी लगी पगड़ी, कौड़ी जड़ित बाजूबंद और पेटी के साथ पैरों में घुँघरू पहना है तो महिलाएँ भी पारम्परिक श्रृंगारी करके पहुँची हैं। इन दोनों ही दलों के सदस्यों ने बताया कि उन्हें इस मौक़े पर मुख्यमंत्री निवास पहुँचने का बेसब्री से इंतज़ार रहता है।
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