उत्तराखंड के कद्दावर नेताओं में हरीश रावत का नाम शुमार है. हरीश रावत (Harish Rawat) ने अपने प्रतिद्वंदियों से मात खाने के बाद, आलाकमान की अनदेखी, तमाम बाधाओं के बावजूद केंद्र में कैबिनेट मंत्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी को अपने नाम किया था. वह उत्तराखंड राज्य के सातवें मुख्यमंत्री रहे. उनके कार्यकाल में कई तरह की बाधाएं आती रहीं. वह तीन बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन उन्हें पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं मिला था.
बता दें कि हरीश रावत (Harish Rawat) प्रदेश ही नहीं देश की राजनीति में एक बड़ा नाम है. 2017 विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारने के बाद भी आज वो प्रदेश की राजनीति में सबसे बड़े नाम बने हुए हैं. कांग्रेस के लिए हरीश रावत के बिना उत्तराखंड की राजनीति में आगे बढ़ना मुश्किल है.
तीनों शासन में नहीं मिला पूरे पांच साल का कार्यकाल
वह सबसे पहले 1 एक फरवरी 2014 को उत्तराखंड की सीएम बने, लेकिन 27 मार्च 2016 को राष्ट्रपति शासन लग गया था. इसके बाद 21 अप्रैल 2016 को दोबारा मुख्यमंत्री बने, लेकिन एक दिन बाद फिर से राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. इसके बाद 11 मई 2016 को फिर से उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली और 18 मार्च 2017 तक वह सीएम रहे. इस वक्त कांग्रेस पार्टी ने उन्हें पंजाब राज्य का प्रभारी बना रखा है. Read More – World Penguin Day : अपने खाने के लिए बहुत लंबी दूरी तय करते हैं पेंगुइन, जानिए उनसे जुड़ी कुछ रोचक बातें …
हरीश रावत की परिवारिक पृष्ठभूमि
बता दें कि हरीश रावत (Harish Rawat) का जन्म 27 अप्रैल 1947 को उत्तराखंड के अलमोड़ा जिले के मोहनारी में एक राजपूत परिवार में हुआ था. उत्तराखंड से अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त कर उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से बीए और एलएलबी की उपाधि प्राप्त की. हरीश रावत के दो बच्चे हैं. बेटे आनंद सिंह रावत भी राजनीति से जुड़े हैं, जबकि बेटी अनुपमा रावत आईटी सेक्टर से हैं पर राजनीति में भी सक्रिय हैं.
हरीश रावत के जन्म जुड़ी रोचक कहानी
बताया जाता है कि जब हरीश रावत के पिता राज सिंह को पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हो रही थी, तो उन्होंने मोहनी गांव के दुर्गेश्वर (नवाड़) मंदिर में हाथ पर दीया जलाकर 24 घंटे पूजा की और उनकी पत्नी दानू देवी भी हाथों में फूल लेकर खड़ी रहीं. बताया जाता है कि इस पूजा के एक वर्ष बाद हरीश रावत (Harish Rawat) ने उनके घर में जन्म लिया. इसके बाद चंदन रावत और जगदीश रावत पैदा हुए थे.
ब्लॉक लेवल से शुरू किया सियासी सफर
उत्तराखंड की सियासत में हरीश रावत उन नेताओं में शुमार किए जाते हैं जो छोटी इकाई से राजनीतिक सफर शुरू कर आज इस मुकाम तक पहुंचे हैं. हरीश रावत (Harish Rawat) ने अपनी राजनीति की शुरुआत ब्लॉक स्तर से की और बाद में युवा कांग्रेस के साथ जुड़ गए. 1973 में कांग्रेस की जिला युवा इकाई के प्रमुख चुने जाने वाले वो सबसे कम उम्र के युवा थे. हरीश रावत पहली बार साल 1980 में केंद्र की राजनीति में शामिल हुए. साल 1980 में वो अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने गए. उन्हें केंद्र में श्रम और रोजगार राज्यमंत्री बनाया गया था. उसके बाद 1984 व 1989 में भी उन्होंने संसद में इसी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया.
1990 में हरीश रावत संचार मंत्री बने
1990 में हरीश रावत संचार मंत्री और मार्च 1990 में राजभाषा कमेटी के सदस्य बने. 1992 में उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस सेवा दल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का महत्वपूर्ण पद संभाला, जिसकी जिम्मेदारी वो 1997 तक संभालते रहे. 1999 में हरीश रावत हाउस कमेटी के सदस्य बने. 2001 में उन्हें उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया. 2002 में वो राज्यसभा के लिए चुन लिए गए. 2009 में वो एक बार फिर लेबर एंड इम्प्लॉयमेंट के राज्यमंत्री बने. साल 2011 में उन्हें राज्यमंत्री, कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण इंडस्ट्री के साथ संसदीय कार्यमंत्री का कार्यभार सौंपा गया. वो यूपीए के शासन में केंद्रीय मंत्री भी रहे. 30 अक्टूबर 2012 से 31 जनवरी 2014 तक जल संसाधन मंत्रालय उनके पास रहा. Read more – Singham Again : फिर से पर्दे पर लौटने को तैयार हैं Rohit Shetty और Ajay Devgan, ‘सिंघम अगेन’ के रिलीज डेट की हुई घोषणा …
सीएम की कुर्सी तक कैसे पहुंचे हरीश रावत?
उत्तराखंड राज्य की स्थापना 9 नवंबर 2000 को हुई थी. प्रदेश को नित्यानंद स्वामी और भगत सिंह कोश्यारी के रूप में भाजपा ने अंतरिम सरकार में मुख्यमंत्री दिए. राज्य निर्माण के बाद हरीश रावत (Harish Rawat) प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए और उनकी अगुवाई में 2002 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बहुमत प्राप्त हुआ और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी. नारायण दत्त तिवारी के मुकाबले मुख्यमंत्री पद की दावेदारी से बाहर होने के बाद उसी साल नवंबर में रावत को उत्तराखंड से राज्यसभा के सदस्य के रूप में भेजा दिया गया था.
स्टिंग ऑपरेशन के बाद बैकफुट पर आए…
हरीश रावत सीएम रहते 2017 विधानसभा चुनाव के दौरान हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा दोनों सीट से चुनाव हार गए थे. लेकिन हरीश रावत जितनी बार चुनाव हारे अगली बार उतनी ही ताकत से जनता के बीच आए. हरीश रावत (Harish Rawat) जब मुख्यमंत्री थे तो उनकी कैबिनेट के मंत्री समेत 9 विधायक सरकार गिरा कर भाजपा में शामिल हो गए. हालांकि हरीश रावत कोर्ट में उन सभी बागी विधायकों की सदस्यता रद्द कराने और बहुमत साबित कर अपनी सरकार बचाने में कामयाब हो गए पर कुछ ही समय बाद एक स्टिंग ऑपरेशन ने उनको बैकफुट पर ला दिया, जिससे उनकी पूरे प्रदेश में खूब किरकिरी हुई. नतीजा ये हुआ कि वो आगामी 2017 के चुनाव में दो सीट से चुनाव लड़ने के बावजूद दोनों सीटों से हार गए.
हार के बाद फिर क्यों बने कांग्रेस की जरूरत?
2019 के चुनाव में राजनीतिक जानकारों ने उत्तराखंड की जिस अकेली सीट पर कांग्रेस की जीत का अनुमान लगा रहे थे, उसमें कांग्रेस की सबसे बड़ी हार हुई. पार्टी के सबसे बड़े नेता हरीश रावत को नैनीताल सीट पर तीन लाख 39 हजार से भी ज्यादा मतों से हार का सामना करना पड़ा. रावत के राजनीतिक करियर की ये अब तक की सबसे बड़ी हार थी और इस चुनाव में उत्तराखंड की पांचों सीटों पर वो सबसे ज्यादा अंतर से पराजित हुए.
इस हार के बाद लगने लगा कि हरीश रावत (Harish Rawat) का सियासी करियर खत्म हो गया है पर उसके बाद हरीश रावत ने दोबारा आज अपने आपको सत्ता की दौड़ में लाकर खड़ा कर दिया है. कांग्रेस पार्टी को उनकी जरूरत है. उत्तराखंड के रण में हरीश रावत की अहमियत इसलिए भी बढ़ जाती है, क्योंकि वो कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं. फिलहाल प्रदेश में उनके जितना सियासी अनुभव वाला कोई नेता कांग्रेस के पास नहीं है. 3 बार के मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, प्रदेश अध्यक्ष रहे हरीश रावत उत्तराखंड में कांग्रेस की रीढ़ माने जाते हैं.
- छतीसगढ़ की खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक
- मध्यप्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- उत्तर प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- दिल्ली की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- पंजाब की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- मनोरंजन की खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक