अमृतसर, पंजाब। अब अमृतसर के स्वर्ण मंदिर (गोल्डन टेंपल) में हारमोनियम का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. अकाल तख्त जत्थेदार ने हारमोनियम को अग्रेजों का साज बताते हुए इसे हटाने का आदेश दिया है. हालांकि ये एक दिन में नहीं होगा. आने वाले 3 सालों में गोल्डन टेंपल के अंदर धीरे-धीरे हारमोनियम की आवाज खत्म होती जाएगी. तीन सालों के बाद गोल्डन टेंपल में रागी जत्थे हारमोनियम का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद कर देंगे. श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह के आदेशों के बाद अब शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) ने भी इस आदेश को लागू करने का फैसला कर लिया है.

गोल्डन टेंपल में रागी जत्था हारमोनियम का प्रयोग करते हुए

साल 1901 में पहली बार हुआ था गोल्डन टेंपल में हारमोनियम का इस्तेमाल

जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह और SGPC के प्रधान एडवोकेट एचएस धामी का कहना है कि हारमोनियम कभी गुरुओं की तरफ से इस्तेमाल किया जाने वाला साज था ही नहीं. भारत में हारमोनियम अंग्रेजों की तरफ से दिया गया साज है. उन्होंने कहा कि साल 1901 वो साल था, जब पहली बार गोल्डन टेंपल के अंदर रागी जत्थों ने हारमोनियम का प्रयोग शुरू किया था. 122 सालों के बाद हारमोनियम का इस्तेमाल बंद करने का फैसला किया गया है और 125 सालों के बाद इसे पूरी तरह से बंद कर दिया जाएगा.

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हारमोनियम की जगह होगा सिर्फ पुरातन तारों वाले यंत्रों का इस्तेमाल

जानकारी के अनुसार, हारमोनियम का इस्तेमाल धीरे-धीरे इसलिए बंद किया जाएगा, ताकि रोज आने वाले श्रद्धालु भी इस बदलाव में अपने आप को ढाल सकें. इसकी जगह अब सिर्फ पुरातन तारों वाले यंत्रों का ही प्रयोग किया जाएगा. इसकी एक वजह ये भी है कि सभी जत्थों को हारमोनियम के बिना कीर्तन करना नहीं आता. ऐसे में जब धीरे-धीरे इसका इस्तेमाल बंद होगा, तो सभी जत्थे तब तक दूसरे यंत्रों का इस्तेमाल करना सीख जाएंगे. गौरतलब है कि 1842 में एक फ्रांसीसी आविष्कारक अलेक्जेंड्रे डेबैन ने सबसे पहले हारमोनियम के डिजाइन को पेटेंट कराया था. गोल्डन टेंपल में 5 जत्थे ऐसे हैं, जो हारमोनियम के बिना कीर्तन करना जानते हैं. ये जत्थे रबाब और सारंदा जैसे वाद्ययंत्रों का प्रयोग करते हैं.

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