रायपुर। हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक उमेश्वर सिंह अर्मो और जयनंदन पोर्ते ने कहा कि विभिन्न समाचार पत्रों से मिली जानकारी के अनुसार हसदेव अरण्य क्षेत्र की सभी खदानों को आगामी कमर्शियल माइनिंग की नीलामी प्रक्रिया से हटाये जाने का हम स्वागत करते हैं. वास्तव में इस कदम से पहली बार हसदेव अरण्य की ग्राम सभाओं के एक दशक से चले आ रहे संघर्ष और उसकी मांगों को आधिकारिक रूप से मान्यता मिली है. जिस पर राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही ने अपनी मुहर लगाई है. हसदेव अरण्य की ग्रामसभाएं राज्य सरकार के इस निर्णय का स्वागत करती हैं.

पिछले एक दशक से हम लगातार हसदेव अरण्य के घने जंगलों, प्राकृतिक संसाधनों, जैव-विविधता और उससे जुड़ी हमारी संस्कृति और आजीविका को बचाने के लिए आवाज उठाते रहे हैं. कई बार ग्राम सभा में प्रस्ताव किए, सभी संबन्धित अधिकारियों को पत्र एवं बैठक के माध्यम से निवेदन किए, केंद्र एवं राज्य सरकार के मंत्रियों और प्रतिनिधियों से बार-बार आग्रह किए अनेकों बार धरणा, प्रदर्शन, रैली, सम्मेलन इत्यादि किए. हसदेव अरण्य का संरक्षण समृद्ध वन संपदा को बचाने के साथ हसदेव नदी और बने मिनीमाता बांगो बांध के लिए भी आवश्यक है. यही वन क्षेत्र हाथी सहित कोई महत्वपूर्ण वन्यप्राणियो का भी पर्यावास और कॉरिडोर हैं और इसका संरक्षण प्रदेश में मानव हाथी संघर्ष को भी कम करेगा.

इस संदर्भ में नीलामी से खदानों को हटाने का निर्णय महत्वपूर्ण और सराहनीय है. परंतु इस मामले पर अभी भी कुछ सवाल बने हुए हैं पूर्व में आवंटित खदानों (जिसमें परसा, गिद्धमुड़ी-पतुरिया और मदनपुर साउथ शामिल हैं) को चालू करने की कार्यवाही अभी भी जारी है. हम आशा करते हैं इन सभी खदानों को भी जल्द ही निरस्त किया जाएगा. गौरतलब है कि इन सभी पूर्व-आवंटित खदानों के पास ना ही कोई पर्यावरणीय या वन-भूमि डायवर्सन की स्वीकृति है और ना ही ग्राम सभा की सहमति, जिन आधार पर वर्तमान नीलामी को रद्द किया गया है. आवश्यक है की इन 3 खदानों को भी निरस्त किया जाये अन्यथा हसदेव अरण्य क्षेत्र का संरक्षण निरर्थ और मात्र खाना-पूर्ति बन कर रह जाएगा.

बहरहाल नीलामी से खदानों को हटाना एक स्पष्ट संदेश है की राज्य एवं केंद्र सरकारों ने आखिरकार हसदेव अरण्य क्षेत्र से जुड़े तथ्यों को समझ कर यहाँ के जन-समुदाय के संघर्ष और ग्राम सभा की अभिव्यक्ति का सम्मान किया है. इसमें विशेष रूप से वर्तमान राज्य सरकार की भूमिका उल्लेखनीय है जिसने लगातार केंद्र को पत्र लिखकर हसदेव अरण्य और मांड क्षेत्र के पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील इलाकों को बचाने की बात कही और पूर्व में प्रकाशित नीलामी सूची से इन खदानों को अलग करने पर ज़ोर दिया. हम उम्मीद करते है कि आने वाले समय में भी हसदेव अरण्य और ऐसे सभी संवेदनशील क्षेत्रों का संरक्षण सरकार की प्राथमिकता बनी रहेगी और ऐसे सभी अन्य इलाकों को भी नीलामी से बचाया जाएगा. जिनसे घने जंगलों का विनाश होगा और जहां जन-समुदाय विरोध में आवाज़ उठा रहे हैं. हमें आशा है कि प्रदेश में 5वी अनुसूची, पेसा कानून 1996, तथा वनाधिकार मानिता कानून 2006 का पूर्णतया पालन किया जाएगा और इनसे प्रदत्त शक्तियों के आधार पर ग्राम-सभाओं की अभिव्यक्ति का भी सम्मान रखा जाएगा.