Hathras : हाथरस में नारायण साकार हरि उर्फ ‘भोले बाबा’ के सत्संग के बाद मची भगदड़ में 121 लोगों की मौत हो गई. अब तक मामले में 6 लोगों की गिरफ्तारी हुई है. मुख्य आरोपी देवप्रकाश मधुकर फरार है, पुलिस ने उस पर एक लाख रूपए का इनाम घोषित किया है. हालांकि अब तक मामले में बाबा के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है… और यह मुश्किल भी है.
इसकी तमाम वजह भी है. मीडिया रिपोर्टस् के मुताबिक भोले बाबा पर जितने पुराने केस मीडिया में बताए जा रहे हैं, उसमें से एक भी मामला नारायण साकार हरि पर दर्ज नहीं है. साल 2000 में ‘भोले बाबा’ पर एक मृत लड़की को जिंदा करने की कोशिश की थी. 2 दिन तक उसकी लाश रखने और उस पर झाड़ फूंककर जिंदा करने की प्रयास के आरोप में में बाबा को जेल हुई थी, लेकिन वह मामला अब खत्म हो चुका है. इस केस में पुलिस फाइनल रिपोर्ट लगा चुकी है.
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अलीगढ़ रेंज के आईजी शलभ माथुर ने शुक्रवार को बताया कि हादसे में प्रथम दृष्टया सेवादारों की भूमिका सामने आ रही है, इसलिए FIR में सिर्फ सेवादारों का नाम है. इधर, विपक्षी दलों के नेताओं ने भी बाबा के खिलाफ कोई कार्रवाई की मांग भी नहीं की है. आज राहुल गांधी भी हाथरस पहुंचे, लेकिन बाबा को लेकर कोई ऐसा बयान नहीं दिया और न ही कार्रवाई की मांग की. ऐसे में सरकार पर बाबा की गिरफ्तारी का कोई दबाव नहीं है.
जाटव और दलित समाज से ज्यादा बाबा के भक्त
दूसरी तरफ बाबा पर कार्रवाई न होना, राजनीतिक संरक्षण का भी हवाला दिया जा रहा है. मीडिया रिपोर्टस् के मुताबिक, नारायण साकार हरि के भक्त और समर्थक सबसे ज्यादा तादाद में जाटव और दलित समाज के हैं. इतना ही नहीं, बाबा के भक्तों में विधायक, सांसद, मंत्री और अधिकारी से लेकर सेना-पैरा मिलिट्री के जवान तक शामिल हैं. जाटव समाज की बात करें तो, वे दलित बिरादरी के सबसे बड़ी जाति है. वह बाबा के सबसे बड़े भक्तों में से एक हैं. हाल ही में सपा मुखिया अखिलेश यादव उनके एक कार्यक्रम में मंच पर मौजूद रहे हैं. साथ ही अलग अलग दलों के भी नेता बाबा की चौखट पर हाजिरी लगाते रहे हैं. इसका कारण यह कि दलितों में बाबा का प्रभाव बहुत ज्यादा माना जाता है.
सरकार को इस बात का डर
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बाबा के खिलाफ कार्रवाई न करने के पीछे सरकार का डर है कि उनके खिलाफ कार्रवाई से कहीं दलितों में गुस्सा और रोष न फैल जाए. दरअसल, भोले बाबा के हर महीने के पहले मंगलवार को होने वाले सत्संग में लाखों लोगों की भीड़ जुटती है. जिसमें 90 प्रतिशत से ज्यादा दलित और अति पिछड़ी बिरादरियां होती हैं. बाबा के भक्त और एक पूर्व आईपीएस अधिकारी के मुताबिक, जिस तरीके का बाबा का प्रभाव है, इसने दलितों में धर्मांतरण को भी रोका है. उनका कहना है कि दलित जो बहुत तेजी से बौद्ध या ईसाई धर्म अपना रहे थे, अब इन इलाकों में बाबा के सत्संग और प्रभाव की वजह से यह रुक गया है. इसलिए कोई भी सरकार और राजनीतिक दल कार्रवाई करने के पहले कई बार सोचेगी.
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