बक्सर. भारत एक कृषि प्रधान देश है. इस देश की 70 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है. उसके बाद भी यंहा के किसानो का आर्थिक स्थिति बद से बदतर है. आजादी से लेकर अब तक देश में जब भी लोकसभा, या विधानसभा, का चुनाव होता है. मुद्दे में किसान, और खेतिहर मजदूर होते है. लेकिन चुनाव खत्म होने के साथ ही किसानो का मुद्दा भी खत्म हो जाता है. यही कारण है कि आजादी के 77 साल बाद भी किसान आर्थिक तंगी के बोझ से दबे जा रहे है, और किसान का बेटा किसान नहीं बनना चाह रहा है. प्राकृत के साथ विभागीय अधिकारियो की बेरुखी को देख अब किसान, कृषि कार्य को छोड़कर मजदूरी करने के लिए शहरों में पलायन करने लगे है. जिसका आभास न तो राजनेताओं को है. और न ही अधिकारियों को.

किसानों के सम्मान से अपमान तक का सफर

सदियों पहले जब टीवी, या रेडियो नहीं था, और न ही सरकार का मौसम विभाग था. उस दौर में किसान-कवि घाघ की वह कहावतें ही खेतिहर समाज का पथ-प्रदर्शन किया करती थी. कभी किसान कवि घाघ ने कहा था. उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ठ चाकरी भीख निदान.” अर्थात सबसे अच्छा कार्य या बेहतर पेशा खेती . दूसरे दर्ज पर व्यापार . औऱ सबसे खराब पेशा नौकरी को निकृष्ठ भीख मांगने के समान बताया गया है. लेकिन बीते समय के साथ अब खेती करना ही अपमान का विषय बन गया है.

रोहिणी नक्षत्र बीतने के साथ ही, आदरा नक्षत्र का होने जा रहा है आगमन

खरीफ की खेती का काम रोहिणी नक्षत्र के शुभ मुहूर्त में 25 मई से किसान करते है. जिसको देखते हुए, 20 मई से पहले ही नहरों के माध्यम से विभागीय अधिकारी किसानों के खेतों तक पानी उपलब्ध करा देते थे, लेकिन पिछले डेढ़ दशक से हालात और बद से बदतर होते जा रहा है. सरकार इस बार किसानों को रोहिणी नक्षत्र में न तो बीज उपलब्ध करा पाई, और न ही नहरों में पानी आया.अपने निजी ट्यूबेल के सहारे किसानों ने बाजार से महंगे दाम पर बीज की खरीददारी कर, अपना बिचड़ा को तैयार करने में लगे हुए है. समय के साथ मौसम की बेरुखी, एवं अधिकारियो की झूठे आश्वासन ने किसानों के फौलादी हौसले को चकनाचूर कर दिया है. विपरीत परिस्थितियों से जूझकर जब किसान अपने फसल को तैयार करने में सफल हो जाते हैं तो अखबारों में फोटो छपवाने के लिए अधिकारी खेतों की पगडंडियों पर पहुँचकर खुद को किसानों का हमदर्द बताने की कोशिश करते है. लेकिन आज जब किसान 47 डिग्री तापमान में खुले आसमान के नीचे अपने बिचड़ा को बचाने के लिए, बूंद बूंद और बीज के लिए किसान तरस रहे तो कोई उनका सुध लेने वाला नहीं है.

विभाग के दावे का निकला हवा

विभागीय अधिकारियों का यह दावा है कि लगभग 8 हजार किसानों को बीज उपलब्ध कराया गया है. 16 हजार किसानों ने बीज के लिए आवेदन किया है. हैरानी की बात है कि जिस जिले में रजिस्टर्ड किसानों की संख्या 2 लाख 22 हजार 947 है.वंहा के मात्र 8 हजार किसानों को बीज उपलब्ध कराकर विभाग ने कौन सा बड़ा तीर मार लिया है.

किसानों ने अधिकारियों के साथ सरकार को दिखाया आइना

सदर प्रखण्ड के कुल्हड़िया गांव में 46 डिग्री तापमान के बीच खुले आसमान में अपने खेतों में लगी धान की बिचड़ा को बचाने के जद्दोजहद कर रहे, किसान लालबिहारी गोंड़, निरंजन राम, विष्णुदेव पासवान, बिहारी यादव, समेत दर्जनों किसानों ने बताया की नेतागिरी करने वाला नही, खेतों में खुद के दम पर खेती करने वाले कितने किसान प्रतिदिन अखबार पढ़ते हैं. या उनके घरों में टीवी लगा है. इंटरनेट की सुविधा उनके यंहा उपलब्ध है. जिससे उनको इस बात की जानकारी मिल सके कि बीज के लिए कहा ऑन लाइन आवेदन करना है. औऱ पानी देने वाले बाबू कहा बैठते हैं. सरकारी जो नुमाइंदे हैं वह सैकड़ों एकड़ वाले किसान के दरवाजे का चक्कर लगाकर 100 किसानों का नाम पता नोट कर लेते है और उनके नाम का बिल फाड़कर अपना जेब गरम कर लेते है. एक सरकारी कर्मचारी जिसका वेतन 30-40 हजार ही है. वह बनारस से लेकर पटना एवं बक्सर में करोड़ों का जमीन खरीदकर आलीशान मकान बनाकर रह रहा है. लेकिन हमारे बाप दादा से लेकर हमारी वर्तमान एवं अगली पीढ़ी दिन रात काम कर रही है.लेकिन अब तक छत नशीब नहीं हुआ.मजबूरन हमलोग भी खेती का काम छोड़कर शहरों में मजदूरी करने को मजबूर है.

गौरतलब है कि आसमान से बरस रही आग और पछुआ हवा की थपेड़ों के बीच अपने फसल को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे किसान अब ना उम्मीद होते जा रहे है. दुर्भाग्य है इस देश का, की जंहा के किसान डेढ़ अरब लोगों के थाली तक भोजन पहुँचाकर खुद भूखे रह जाते है.

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