पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित खूबसूरत चिंगरा पगार में मानसून आते ही सैलानियों भी भीड़ उमड़ने लगी है. यह जगह लगभग तीन सालों से हर किसी के जुबान में है. चिंगरा पगार घूमने के लिए रायपुर, धमतरी और दुर्ग जैसे जगहों के लोग ज्यादा घूमने जाते हैं. लेकिन चिंगरा पगार प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ औषधीय गुणों से भरपूर स्थान है. चिंगरा पगार झरना के आसपास औषधीय गुण वाले कई पौधे पाए जाते हैं. यह झरना अपनी सुंदरता और कलकल आवाज के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन इसके आस-पास की वनस्पतियां भी विशेष महत्व की हैं. नेशनल हाइवे छोड़ने के बाद झरने की ओर जाने वाले कच्चे रास्ते पर कई औषधीय पौधे देखे जा सकते हैं, जिनमें मरोड़ फल्ली, चिरायता, अमलताश और सर्पगंधा प्रमुख हैं.

नेशनल हाइवे छोड़ने के बाद झरने के लिए कच्चा रास्ता पकड़ते ही कई झाड़ियां नजर आती है. पार्किंग स्थल से झरना पहुंचने तक कई फूल पौधे नजर आते हैं,इनमे मरोड़ फल्ली, चिरायता, अमलताश, सर्पगंधा जैसे औषधीय पौधे प्रचुर मात्रा में देखा गया हैl इनमें से मरोड़फल्ली वनस्पत्ती नाम हेलीक्टेरस ऐजोरा है स्थानीय नाम अतान और मालवेसी फैमिली का है. अभी बरसात के दिन मे इसे इसके सुन्दर फूलों के साथ देखा जा सकता है और इसके मुड़े स्क्रू जैसे फली के साथ जो पेट की बिमारी, अपच, पेचीश दूर करने सहायक है.

हाल ही में नवापारा शासकीय कन्या महाविद्यालय की सहायक प्राध्यापक खुशबू कश्यप भ्रमण में आई हुई थी. खुशबू की नजर इन पैधों पर पड़ी. उन्होंने अपने कैमरे में इसे कैद कर लिया है इसके बारे में जानकारी प्रदान की खुशबू वानस्पतिक शास्त्र की सहायक प्राध्यापक हैं, वे शासकीय दुधाधारी बजरंग महाविद्यालय पदस्थ डॉक्टर वैभव आचार्य के निर्देशन में एथनोबाटनी प्लांट पर शोध भी कर रही है.

खुशबू ने बताया कि वन ग्राम में रहने वाले स्थानीय जनजाति, समुदाय और हमारे पूर्वज जिन औषधीय पेड़ पौध को किस तरह उपयोग में लाते थे अथवा अब भी इसका उपयोग कैसे हो रहा है उसी पर वे शोध कर रहे है. खुशबू ने कहा कि गरियाबंद के जंगलों में प्रकृति ने ऐसे पौधों की सौगात दिया हुआ है. उसे सहजने और संरक्षण की जरूरत है, अपितु यह हमें किताबों में ही देखने और कथाओं में ही सुनने मिलेंगे.