पुरुषोत्तम पात्र,गरियाबंद. गरियाबंद के किडनी प्रभावित सुपेबेड़ा के लोगों को मौत के मुंह से निकालने के लिए नई सरकार ने भी पहल करते हुए गांव में आज स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया, मगर ग्रामीणों का रवैया स्वास्थ्य शिविर को लेकर नकारात्मक ही रहा.
जानकारी के मुताबिक 3 साल में 68 मौते, 200 से ज्यादा प्रभावित, 900 की आबादी वाले सुपेबेडा गॉव की आजकल यही पहचान है. किडनी की बीमारी से लगातार मौतों और बढ़ते मरीजों से गांव में दहशत बनी हुई है. पिछली सरकार ने ग्रामीणों को हर संभव मदद का भरोसा दिलाया मगर ग्रामीणों को कोई ज्यादा राहत नहीं मिली. ग्रामीणों ने नई सरकार से गुहार लगाई तो मुख्यमंत्री के निर्देश पर रायपुर के विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम ने आज गांव पहुंचकर हालात का जायजा लिया. नफ्रोलॉजिस्ट डॉ पुनीत गुप्ता ने इस दौरान 16 मरीजों को देखा और 4 मरीजों को रायपुर सलाह दी. बीमारी के बारे में जानकारी देते हुए डॉ गुप्ता ने बताया कि अब स्पेशल जॉच की जाएगी. वही इस दौरान उन्होंने पीड़ितों को एहतियात बरतने की सलाह भी दी.
वही अब तक हुई जॉच की बात की जाए तो कई प्रकार की जांचे हो चुकी है. पीएचई विभाग पानी की जॉच कर चुका है, इंदिरा गॉधी कृषि विश्वविद्यालय मिट्टी का परीक्ष कर चुका है. मुम्बई के टाटा इंस्टीटयूट और दिल्ली के डॉक्टर भी अपने स्तर पर जॉच कर चुके है. पीएचई विभाग ने पानी की जो जॉच की थी उसमें उन्हें फ्लोराइड और आरसेनिक की मात्रा ज्यादा होना पाया गया था उसके समाधान के लिए गॉव में फलोराइड रिमुवल प्लॉट लगा दिया गया था, मगर इंदिरा गॉधी कृषि विश्व विद्यालय द्वारा की गयी मिट्टी की जॉच में हैवी मैटल पाये गये थे. जिसमें कैडमियम और क्रोमियम की भी ज्यादा मात्रा होना शामिल था, उसकी रिपोर्ट ना तो पीएचई विभाग के पास उपलब्ध है और ना ही इन हैवी मैटल से बचने के लिए कोई रोकथाम की गयी है.
शासन के अब तक के रवैये से ग्रामीण संतुष्ट नहीं है, इसका आसार आज के शिविर में भी देखने को मिला. गिने चुने मरीज ही शिविर में पहुंचे. यहॉ तक की स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों द्वारा घर घर जाकर मरीजों को स्वास्थ्य शिविर में जाने के लिए आग्रह किया. मगर उसके बाद भी मरीजो ने कोई रुचि नहीं दिखाई. कारण साफ है कि मरीजो को शिविर भी अब केवल फोटो सेंशन का एक हिस्सा लगने लगा है, अब तक ना जाने कितने शिविरों और आश्वासनों के बाद भी ग्रामीण वही पुरानी समस्याओं से जुझ रहे है.
तीन साल में सुपेबेडा के लिए दावे तो बड़े-बड़े हुए मगर गॉव के हालात नहीं बदले ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि नई सरकार सुपेबेडावासियों की उम्मीदों पर कितनी खरी उतरती है.