पुरुषोत्तम पात्रा. गरियाबंद. कहते हैं जब मन में लगन हो तो कितना भी कठिन काम हो आसान हो जाता है. ऐसा ही काम मैनपुर के स्वास्थ्य अमले ने कर दिखाया है, जो तमाम बाधाओं के बीच 32 किमी पहाड़ों की चढ़ाई कर कमार जनजाति के 57 बच्चों का टीकाकरण किया. 13 लोगों के इस साहसिक दल के जज्बे को सलाम करते हुए कलेक्टर श्याम धावडे ने 26 जनवरी को पुरस्कृत करने का भी एलान किया है.

मैनपुर ब्लॉक के सबसे बीहड़ माने जाने वाले कमार जनजाति के गांव ताराझर, कुरुवापनी व डड़ईपानी में आजादी के बाद पहली बार ऐसा अवसर आया कि जब स्वास्थ्य विभाग के अमले ने पहाड़ों की चढ़ाई कर आदिवासी बच्चों का टीकाकरण किया. ऐसा सम्भव हो सका यहां के कलेक्टर श्याम धावडे की पहल पर. धावड़े ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत मिजल्स रूबेला के टीकाकरण को शत-प्रतिशत करने समय सीमा की बैठक में स्वास्थ्य विभाग को निर्देश दिया था. इसके साथ बीएमओ मैनपुर कालेश्वर नेगी को पहाड़ों में बसे जनजाति के इस गांव में टीम भेजने का भी निर्देश दिया था.

57 बच्चों का किया टीकाकरण

बीएमओ नेगी ने बताया कि सुपरवाइजर ईशू लाल पटेल के साथ 3 महिला, 5 पुरुष स्वास्थ्य कार्यकर्ता, वहां पदस्थ तीन शिक्षक व आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के पति टीम में शामिल थे. 5 दिसम्बर को टीम रवाना हुई. ऊपर बसे तीन गांव के 57 बच्चों का मिजल्स रूबेला का सफल टीकाकरण कर 6 दिसम्बर को देर शाम वापस लौटी. इस दरम्यान सर्दी-खासी जैसे सामान्य मरीजों का भी उपचार कर दवा दिया गया.

ठंड पर भारी पड़ा फर्ज

ईशू पटेल ने बताया कि मूख्यालय से 15 किमी चारपहिया में आने के बाद, देवदोंगर में वाहन को 5 दिसम्बर को सुबह छोड़ दिए. 22 किमी खड़ी पहाड़ी के आड़े-तिरछे रास्ते की चढ़ाई कर 3 बजे शाम ताराझर पहुंचे, यहां 37 बच्चों को टीकाकरण कर 5 बजे कुरुवापनी के लिए रवाना हुए. जंगली जानवरों के भय के बीच 4 किमी का सफर देर शाम तक पूरा किया, रात्रि को विश्राम किया. मितानिन रुकमणी सोरी के घर में दल को ठहरने की व्यवस्था तो हो गई पर सीमित गर्म कपड़े में कड़कड़ाती ठंड में दल को रात अलाव के सहारे बितानी पड़ी. दल को टीकाकरण के साजोसामान के अलावा गर्म कपड़े, खाने के राशन सामान तक साथ में लेकर चढ़ना पड़ा था. 6 दिसंबर की सुबह 8 बजे से दल अपने अभियान में जुट गया. कुरुवापानी मे 7 बच्चों को टीका लगाकर डड़ई पानी के लिए रवाना हुए. 6 किमी का पथरीला रास्ता था. दोपहर के पहले दल यहां 14 बच्चों का टीकाकरण किया. शाम 5 बजे तक दल देडोंगर पहुंच गया था.

पहले साप्ताहिक बाजारों में पूरी होती थी औपचारिकता

महीने के पहले शनिवार को पहाड़ों में बसे कमार कुल्हाड़ीघाट राशन लेने आते हैं. टीकाकरण या किसी भी योजना के लिए उन्हें पहले से खबर भिजवा दिया जाता था, कुल्हडीघाट में मंगलवार को लगने वाले साप्ताहिक बाजार में विभाग के दल पहुंचकर योजना की औपचारिकता पूरी की जाती थी. शनिवार को बर्तन-कपड़े लेकर उतरे कमारों को मंगलवार तक टीकाकरण का इंतजार करना पड़ता था.

बसाहट की प्रशासन व्यवस्था रास नहीं आई

वर्ष 2014 में ऊपर बसे जनजाति को नीचे विस्थापन की योजना तैयार किया गया. तत्कालीन एसडीएम शैलाभ साहू 30 जुलाई 2016 को पहाड़ों की चढ़ाई कर इन तीनों गांव तक पहुंचने वाले पहले प्रशासनिक अधिकारी थे, जिन्होंने वापस आकर विस्थापन की प्रक्रिया को जल्द कराया था.  कुल्हाड़ीघाट के समीप बसाए गए नया ताराझर में कमारों को अनुरूप वातावरण नहीं मिला इसलिए योजना सफल नहीं रही. हालांकि, बीमारी या जजकी के समय इसी जगह आकर कमार अपना दिन बिताते हैं. ऊपर के तीनों गांव कुल्हाड़ीघाट उपस्वास्थ्य केंद्र के अधीन आता है, जो गांव वालों के लिए 15 से 20 किमी दूर पड़ता है.

देखिए वीडियो : [embedyt] https://www.youtube.com/watch?v=55V4mm_EAzs[/embedyt]