आज सुप्रीम कोर्ट(Suprem Cout) वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई का पुनः आरंभ करेगा. इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस बी आर गवई(B.R. Gawai) और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह करेंगे. इससे पूर्व, पूर्व सीजेआई संजीव खन्ना(Sanjeev Khanna) की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी, जो 13 मई को रिटायर हो गए.

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17 अप्रैल को, सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया कि वह विवादास्पद वक्फ अधिनियम, 2025 के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाने पर विचार कर रहा है. इनमें ‘वक्फ-बाय-यूजर’ का सिद्धांत, वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व, और विवादित वक्फ भूमि की स्थिति को बदलने के लिए कलेक्टर को दिए गए अधिकार शामिल हैं.

पूर्व CJI ने क्या कहा था?

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा कि आमतौर पर हम किसी कानून पर रोक नहीं लगाते हैं जब तक कि असाधारण परिस्थितियां न हों, और यह मामला एक अपवाद प्रतीत होता है. उन्होंने चिंता व्यक्त की कि यदि ‘वक्फ-बाय-यूजर’ को गैर-अधिसूचित किया गया, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं. इस सुनवाई में जस्टिस पी वी संजय कुमार और के वी विश्वनाथन भी शामिल थे.

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‘वक्फ-बाय-यूजर’ पर संशय

2025 का वक्फ कानून ‘वक्फ-बाय-यूजर’ के सिद्धांत को समाप्त कर देता है. ‘वक्फ-बाय-यूजर’ वह संपत्ति है, जिसका उपयोग मुस्लिम धर्म या धार्मिक उद्देश्यों के लिए लंबे समय तक किया गया है, और इसे वक्फ माना जाता है, भले ही वह संपत्ति रजिस्टर्ड न हो. इस बदलाव के कारण कई वक्फ संपत्तियों की वैधता पर प्रश्न उठ सकते हैं.

सीजेआई खन्ना ने कहा कि ‘वक्फ-बाय-यूजर’ को रजिस्टर करना अत्यंत कठिन है, जिससे इसमें अस्पष्टता उत्पन्न होती है. उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि इस अवधारणा का दुरुपयोग हो सकता है, लेकिन वास्तविक ‘वक्फ-बाय-यूजर’ की उपस्थिति को नकारा नहीं किया जा सकता.

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कौन हैं नए CJI जस्टिस बीआर गवई?

जस्टिस बीआर गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ. उन्होंने 16 मार्च 1985 को वकालत की शुरुआत की और 1987 से 1990 तक बॉम्बे हाईकोर्ट में स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस की. इसके बाद वे नागपुर खंडपीठ में कार्यरत रहे और नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम तथा अमरावती विश्वविद्यालय के स्थायी वकील के रूप में अपनी सेवाएं दीं. अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक, उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक के रूप में कार्य किया.

उन्हें 17 जनवरी 2000 को नागपुर खंडपीठ में सरकारी वकील और लोक अभियोजक के पद पर नियुक्त किया गया. इसके बाद, 14 नवंबर 2003 को उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश बनाया गया, और 12 नवंबर 2005 को उन्हें स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया.

उन्होंने मुंबई की प्रधान पीठ के साथ-साथ नागपुर, औरंगाबाद और पणजी की खंडपीठों में विभिन्न प्रकार के मामलों की सुनवाई की. 24 मई 2019 को उन्हें भारत के सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया.

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700 पीठों का हिस्सा रहे हैं CJI गवई

सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट के अनुसार, पिछले छह वर्षों में न्यायालय ने लगभग 700 पीठों का गठन किया, जिन्होंने संवैधानिक और प्रशासनिक कानून, सिविल, आपराधिक, वाणिज्यिक विवाद, मध्यस्थता, विद्युत कानून, शिक्षा, पर्यावरण आदि जैसे विभिन्न विषयों पर मामलों की सुनवाई की.

उन्होंने लगभग 300 निर्णय लिखे हैं, जिनमें कई संविधान पीठ के निर्णय शामिल हैं, जो कानून के शासन और नागरिकों के मौलिक, मानव और कानूनी अधिकारों की रक्षा करते हैं.