मनीष द्विवेदी, प्रतापगढ़। शिव ही आदि हैं, शिव ही अनादि हैं, शिव ही सत्य हैं और शिव ही सुंदर हैं. वैसे तो भगवान शिव कैलाश पर्वत पर रहते हैं, लेकिन पूरे भारत में 12 ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं. इसके साथ ही भारत के कई शिवालय भोलेनाथ के चमत्कारों की गवाही देते हैं. इन शिवालयों में भक्तों की अटूट आस्था है. आज आपको एक ऐसे ही शिवालय के बारे में बताने जा रहे हैं, जो बाबा भोलेनाथ के भक्तों की आस्था का अटूट केंद्र माना जाता है. जहां लाखों लोग अपनी मुरादे लेकर बाबा के दरबार में आते हैं. इस शिव मंदिर को लोग घुइसरनाथ (घुश्मेश्वर नाथ) धाम के नाम से जानते हैं.

यह शिवालय उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के रामपुर विधानसभा के लालगंज अझारा तहसील में सई नदी के किनारे स्थित है. धार्मिक, आध्यात्मिक और पौराणिक विशिष्टता के कारण यह बाबा का धाम करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. यहां महाशिवरात्रि के अवसर पर प्रदेश के कोने-कोने से बाबा का जलाभिषेक करने के लिए पहुंचते हैं. शिवरात्रि के मौके पर तीन दिनों तक बाबा घुइसरनाथ की विशेष रूप से पूजन-अर्चना होती है. जिनके दर्शन लाभ के लिए भक्त आतुर रहते हैं. ऐसी जनश्रुति है कि सई नदी पहले बाबा घुइसरनाथ को स्पर्श करते हुए यानि उनके चरणों के पास से गुजरती थी और लोग सई नदी में स्नान के बाद बाबा के दर्शन किया करते थे.

लोक मान्यता है कि भगवान राम अपने वनवास जाते समय थक गए थे और यहीं पर विश्राम किया था. सई नदी के स्वच्छ जल से स्नान कर भगवान घुश्मेश्वर जी के दर्शन कर आगे बढ़े थे. जहां भगवान श्री राम जी थक कर आराम के लिए बैठे थे वहीं उनके शरीर से एक पसीने की बूंद गिरी जिससे एक दिव्य करील का वृक्ष उत्पन्न हुआ. श्री घुइसरनाथ धाम पावन सई तट पर आज भी श्रद्धालु पुण्य पाने के लिए बाबा के दरबार में पूजा-दर्शन और जलाभिषेक करने के बाद भक्त करील के वृक्ष का पूजन करते हैं. इस करील वृक्ष का वर्णन गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी रामचरित मानस में किया है. जिसे यूपी सरकार द्वारा संरक्षित किया गया है.

मंदिर से जुड़ी मान्यता और इतिहास को लेकर मंदिर के महंत मयंकभाल गिरी बताते हैं कि शिव पुराण में वर्णित एक कथा है कि सुदेहा और सुधर्मा नाम के ब्राह्मण-ब्राह्मणी यहां रहा करते थे, लेकिन उन्हें संतान की प्राप्ति नहीं हो रही थी. जिसके बाद सुदेहा ने अपनी बहन घुश्मा का विवाह अपने पति के साथ करा दिया. घुश्मा बहुत बड़ी शिवभक्त थी. वह प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंग बनाती उसका पूजन करती और विसर्जन कर देती थी. इसी दौरान शादी के कुछ दिनों बाद घुश्मा को कुछ दिनों बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. लेकिन उनकी बहन सुदेहा को इससे जलन होने लगी. पुत्र जब बड़ा हुआ तो जिस तालाब में घुश्मा शिवलिंग विसर्जित करती थी, उसी में उसकी हत्या करके फेंक दिया. जब घुश्मा को पता चला कि हमारे पुत्र की हत्या हो गई है और हत्या बहन ने की है. इस दौरान वह शिव के पूजन में बैठी थी, लेकिन उठी नहीं. महंत ने बताया कि घुश्मा के इसी त्याग पर बाबा भोलेनाथ प्रसन्न हुए और प्रकट होकर वरदान मांगने के लिए कहा. लेकिन घुश्मा ने भगवान से कहा कि मुझे कुछ नहीं चाहिए. जिसके बाद भगवान शिव ने उसके पुत्र को जीवित कर दिया.

महंत मयंक बालगिरी बताते हैं कि बाबा भोलेनाथ के कहने पर जनकल्याण के लिए घुश्मा ने वरदान मांगा कि आप यही घुश्मेश्वर के नाम से हमेशा के लिए प्रकट और प्रसिद्ध हो जाइए. जिसके बाद स्वयंभू शिवलिंग उत्पन हो गया जो घुश्मा के नाम से ही घुश्मेश्वर नाथ के नाम से जाना गया. हालांकि अब इसका नाम घुइसरनाथ धाम के नाम से प्रचलित हो गया है. लेकिन, कालांतर में प्रलय के कारण यह शिवलिंग एक टीले के रूप में परिवर्तित हो गई.

महंत के अनुसार, यहां सही नदी के किनारे तब एक इलापुर (कुम्भापुर) के नामक एक गांव था. यहां के रहने वाले घुइसर यादव रोजाना यहां जंगल में गाय भैंस चराने आते और इसी टीले के पत्थर पर मूंज खूंदते (एक प्रकार की रस्सी) थे. ऐसा वह रोज करते थे, आते और साफ सफाई करते फिर घर चले जाते. उनका उद्देश्य भक्ति से नहीं था क्योंकि वह उससे अनजान थे. उनका सिर्फ मकसद था कि मूंज खूंदगे और उससे पैसा मिलेगा. वह काफी समय तक आते रहे और रोज की तरह अपना काम करते और चले जाते, लेकिन एक दिन बीच में नहीं जा पाए. लेकिन उनका ध्यान उसी पत्थर पर लगा रहा जिसके बाद रात में उन्हें भगवान भोलेनाथ शॉप में दर्शन दिए कि मैं शिव हूं और मेरी पूजा करो, लेकिन घुइसर को विश्वास नहीं हुआ. वह फिर वहां गए, प्रतिदिन की तरह अपना काम किए और वापस चले आए. जिसके बाद बाबा भोलेनाथ ने फिर उन्हें रात में दर्शन दिए और कहा कि मैं शिव हूं मेरी पूजा करो.

मंदिर के महंत ने बताया कि दोबारा ऐसा होने पर उन्होंने पूरे गांव वालों को बताया, जिसके बाद पूरे गांव वाले मिलकर उस टीले की खुदाई शुरू कर दिए. शिवलिंग का पहला रखा मिला और फिर दूसरा, इसी तरह से 7 अरघों तक खुदाई की. उसके बाद खुदाई करने पर जहरीले जीव जंतु निकलने लगे और लोगों को काट लिए. तब जाकर लोगों को विश्वास हुआ कि यह शिव हैं. शिवालय का दोबारा प्रादुर्भाव घुइसर यादव के माध्यम से हुआ. जिसके बाद से घुइसरनाथ धाम के नाम से पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध हो गया. उन्होंने बताया कि महाशिवरात्रि पर बाबा भोलेनाथ के दरबार में लाखों की भीड़ होती है. शिवरात्रि पूरे साल का बाबा भोलेनाथ के लिए विशेष दिन होता है. उन्होंने कहा कि इस मौके पर 3 दिन भगवान घुइसरनाथ का बहुत भव्य श्रृंगार होता है. शिवरात्रि के एक दिन पहले बाबा को दूल्हे सरकार की तरह श्रृंगार किया जाता है. शिवरात्रि के दिन औघड़ के रूप में रुद्राक्ष से श्रृंगार होता है और उसके बाद राजसी वेश धारण करते हैं.

एक स्थानीय भक्त शिवकांत का कहना है कि महाशिवरात्रि पर बाबा घुइसरनाथ के धाम में आस-पास के जिले से बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं. उनका कहना है कि इस मौके पर दूसरे राज्य से भी कुछ श्रद्धालु पहुंचते हैं. यहां तीन दिन तक लगातार मेला चलता है. वे बताते हैं कि तीन दिन बाबा की विशेष पूजा और श्रृंगार होता है.

घुइसरनाथ धाम में प्रत्येक सोमवार को दूर-दूर से बाबा के पूजन और दर्शन के लिए आते है. साथ ही बाबा महाकाल की तर्ज पर भस्म आरती होती है. साथ ही प्रत्येक मंगलवार को बाबा धाम में विशाल मेला लगता है. इसके अलावा प्रत्येक वर्ष सावन में यहां पूरे उत्तर प्रदेश से शिव भक्त कांवड़ से जल लेकर पहुंचते हैं और जलाभिषेक करते हैं. पूरे सावन माह यहां पर धार्मिक आयोजन होते रहते हैं. घुइसरनाथनाथ धाम लालगंज चौराहे से 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.

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