देश में एक जगह ऐसी भी जहां मोहब्ब्त का मेला लगता है. यहां पहुंचने के बाद प्रेमी जोड़ों की रूह सुकून मिलता है. वैसे भी इस समय दुनियाभर में प्यार का उत्सव वेलेंटाइन डे (valentine day 2019) मनाया जा रहा है. इस मौके पर जानिए राजस्थान के श्रींगगानगर जिले में स्थि​त लैला मजनूं की मजार के बारे में.

यूं तो लैला मजनूं की यह मजार एक सामान्य मजार की तरह ही है, मगर यह सैकड़ों साल पुरानी अमर प्रेम कहानी को समेटे हुए है. तभी तो इसे प्रेमी जोड़ों का तीर्थस्थल भी कहा जाता है और यहां हर साल सावन माह में मेला लगता है, जिसमें देशभर से हजारों प्रेमी-प्रेमिका व नवविवाहित जोड़े शामिल होते हैं. हर कोई लैला मजनूं की मजार की चौखट चूमकर अपने प्यार के अमर होने का आशीर्वाद मांगते हैं.

  • पाक बॉर्डर पर स्थित है लैला मजनूं की मजार

लैला मजनूं की मजार श्रीगंगानगर जिले अनूपगढ़ तहसील मुख्यालय से पश्चिम की ओर 10 किलोमीटर गांव बिंजौर में स्थित है. मजार के महज दो किलोमीटर दूर ही भारत-पाकिस्तान सीमा है. यह बॉर्डर इलाका होने के कारण यहां पर सीमा सुरक्षा बल का भी कड़ा पहरा रहता है. लैला मजनूं के सम्मान में भारतीय सेना ने मजनूं पोस्ट भी बना रखी है. लोगों में मान्यता है कि सैकड़ों साल पहले प्रेमी जोड़े लैला मजनूं ने अपनी जिंदगी के अंतिम लम्हे में बिंजौर गांव में ही गुजारे थे और फिर यहीं दम तोड़ दिया था. उनकी याद में ही यहां मजार बनी हुई है. खास बात यह है कि इलाके में हर साल घग्घर नदी आती है, जिसका पानी चारों ओर फैल जाता है, मगर कभी मजार तक नहीं पहुंच पाया.

  • 65 साल से लग रहा मेला

मेला कमेटी की मानें लैला मजनूं की मजार (laila majnu mazar) पर लगभग 65 साल से मेल लग रहा है. पहले मेले की अवधि एक दिन की हुआ करती थी, मगर प्रेमी जोड़े के उत्साह को देखते हुए मेले की अवधि पांच दिन की कर दी. मजार में दो समाधि बनी हुई है, पूर्व में बड़ी समाधि मजनूं की और पश्चिम में छोटी समाधि लैला की है. करीब छह बीघा में फैले मेला स्थल को सरकार लाखों रुपए खर्च करके पर्यटन स्थल के रूप में भी खर्च कर रही है.

  • जानिए कौन थे लैला-मजनूं

Laila Majnu की कहानी यह उस समय की काहानी है जब सिंध में अरबपति शाह अमारी के बेटे कैस (मजनूं) और लैला नाम की लड़की को एक दूसरे से प्‍यार हो गया और जिसका अंत मौत के साथ हुआ. उनके अमर प्रेम के चलते ही लोगों ने दोनों के नाम के बीच में ‘और’ लगाना मुनासिब नहीं समझा और दोनों हमेशा के लिए ‘लैला-मजनूं’ के रूप में ही अमर हो गए. लोगों का मानना हैं कि लैला-मजनूं सिंध प्रांत के रहने वाले थे. उनकी मौत यहीं पाकिस्‍तान बॉर्डर से महज 2 किलोमीटर दूर राजस्‍थान के गंगानगर जिले के अनूपगढ़ में हुई थी

कुछ लोगों का मानना है कि लैला के भाई को जब दोनों के इश्क का पता चला तो उसे बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने क्रूर तरीके से मजनूं की हत्या कर दी. एक कहानी यह भी कि मजनूं की हत्या का लैला को पता चला तो वह मजनूं के शव के पास पहुंची और जान दे दी. कुछ लोगों का मत है कि घर से भाग कर दर-दर भटकने के बाद, वे यहां तक पहुंचे और प्यास से उन दोनों की मौत हो गई। वहीं कुछ लोग कहते हैं कि परिवार वालों और समाज से दुखी होकर उन्होंने एक साथ आत्महत्या कर ली.