शिवम मिश्रा,रायपुर। मुगलों के बारे जितना किताबों में पढ़ाया जा रहा है, उसका कोई प्रमाणिक तथ्य ही नहीं है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि क्योंकि लॉ के छात्र शिवांक वर्मा ने पुस्तकों में किए गए दावों के आधार पर राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) से सवाल किया, तो उन्होंने कोई पुख्ता जवाब ही नहीं दिया.

दरअसल 7 नवंबर 2020 को हिदायतुल्ला नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के छात्र शिवांक वर्मा ने आरटीआई (सूचना का अधिकार) के तहत मेल के माध्यम से हिस्ट्री की बुक में दावों के आधार पर मुगलों के ग्रांट की जानकारी मांगी थी. 12वीं में पढ़ाए जाने वाली किताब (थिम्स ऑफ इंडियन हिस्ट्री पार्ट-2) की बुक में दावा किया गया है कि शाहजहां और औरंगजेब के शासनकाल में युद्ध के दौरान जब मंदिर टूटे, तो उनकी मरम्मत के लिए उन्हें अनुदान दिया जाता था.

इस पर शिवांक ने एनसीईआरटी से इस दावे का सबूत मांगा और इसका सोर्स पूछा. इसके साथ ही शिवांक ने यह भी सवाल किया कि यदि मंदिरों की मरम्मत कराई गई है, तो उसकी संख्या बताई जाए. अब तक कितने मंदिरों की मरम्मत की गई है. इन्हीं दोनों सवाल का जवाब एनसीईआरटी ने 17 नवंबर 2020 को दिया. जिसमें कहा गया कि इस संबंध में हमारे पास कोई प्रमाणिक तथ्य उपलब्ध नहीं है.

नया रायपुर स्थित हिदायतुल्ला नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के छात्र शिवांक वर्मा ने बताया कि जब 12वीं में कक्षा में था, तब इस विषय को पढ़ा था. तभी से मन में इन दावों को लेकर सवाल उठ रहे थे. लंबे समय बाद सूचना के अधिकार के तहत एनसीईआरटी से जवाब मांग लिया. लेकिन पाठ्य-पुस्तक में किए गए दावों का उनके पास कोई तथ्यात्मक प्रमाण ही नहीं है.

ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या किताबों में मुगलों का ‘झूठा प्रचार’ किया जा रहा है ? क्या किताबों में मुगलों द्वारा मंदिरों के पुनर्निर्माण का झूठा ज्ञान छात्रों को दिया जा रहा है ? यदि ऐसा नहीं है, तो एनसीईआरटी ने आरटीआई के तहत पूछे गए सवाल पर प्रमाणिक तथ्य नहीं होने का हवाला क्यों दे दिया ?