रायपुर- अचानकमार टाइगर रिजर्व में बंधक बनाए गए जंगली हाथी सोनू के मामले में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा है कि सोनू हाथी की उपेक्षा की गई है. खासतौर पर सोनू के इलाज पर लापरवाही बरती गई. कोर्ट ने इस मामले को उठाने वाले याचिकाकर्ताओं की तारीफ करते हुए कहा कि यदि इस मामले पर याचिका नहीं लगाई जाती, तो संविधान के किसी भी प्रावधान या किसी कानून के तहत हाथी सोनू कोर्ट से राहत के लिए प्रार्थना भी नहीं कर सकता था. कोर्ट ने कहा कि मानव उन कई प्रजातियों में से एक प्रजाति है, जिन्हें धरती पर रहने का अधिकार है. मानव जाति बिना मानवता के नीच होती हैं, मानव कहलाने लायक नहीं होती. कोर्ट ने कहा कि भारतीय संविधान के तहत प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अन्य जीव का संवर्धन करे तथा प्राणी मात्र के लिए दयाभाव रखे औऱ मावता की भावना का विकास करे. पूरी दुनिया में सभी जानवरों को मान्यता प्राप्त सिद्धांत लीव मी अलोन है.
बिलासपुर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टीबीएन राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति शरद कुमार गुप्ता की युगलपीठ ने याचिका पर सुनवाई की. इसके पूर्व केरल के हाथी विशेषज्ञ ने कोर्ट के आदेशानुसार 12 जुलाई 2017 को सोनू हाथी के स्वास्थ और व्यवहार की जांच कर हाईकोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. कोर्ट ने कहा कि हम डॉ. राजीव टीएस. की रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए सोनू को कभी भी वापस जंगल में, अपने रहवास क्षेत्र में छोड़े जाने के निर्णय को वन विभाग के विवेक पर छोड़ते है. गौरतलब है कि डॉ राजीव टीएस. ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि अचानकमार, सोनू को रखने के लिए उपयुक्त जगह नहीं है, उसे हाथियों के रहवास क्षेत्र में कैम्प में रखा जाना चाहिये जहां पर उसे जंगली हाथियों से घुलने मिलने का मौका मिले तथा वह धीरे-धीरे पुनः जंगली हाथियों का सा बर्ताव कर वापस जंगल चला जाये.
हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ़ शासन तथा प्रधान मुख्य वन संरक्षक को निर्देश दिये है कि वे ऐसे निर्देश जारी करें जिससे सोनू हाथी के समान घटना दुबारा ना हो. गौरतलब है कि प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने सोनू हाथी को पकड़ कर हाथियों के रहवास क्षेत्र में छोड़ने के आदेश दिये थे, परंतु अचानकमार के अधिकारियों ने सोनू को पकड़कर जंजीरों से बांध दिया था, जिससे उसके पांवों में गंभीर घाव बन गये थे. तब सोनू को गैरकानूनी रूप से पकड़ने और उसका इलाज कराने के लिए के लिये रायपुर निवासी नितिन सिंघवी ने जनहित याचिका दायर की गई थी. याचिका स्वीकार करने उपरांत सोनू का इलाज करने के लिए केरल से डॉक्टर राजीव टीएस और एनिमल राहत के डॉक्टर राकेश चित्तौरा आए थे.
छत्तीसगढ़ वन विभाग ने डॉ. राजीव टीएस. के साथ एनिमल राहत संस्था के डॉ. राकेश चित्तौरा को भी सोनू हाथी पर रिपोर्ट देने को कहा था. वन विभाग को दी गई रिपोर्ट में डॉ. राकेश चित्तौरा ने कई उदाहरणों को पेश करते हुए बताया कि अफ्रीका में हाथी के बच्चे जो कि केप्टिव हथनियों से होते है उन्हें भी युवा अवस्था में वापस जंगल में सफलता पूर्वक छोड़ा गया है. भारत में वाईल्ड लाईफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने कई केप्टिव एलीफेन्ट को अरूणाचल प्रदेश तथा असम में जंगल में सफलता पूर्वक छोड़ा है. डॉ राकेश चित्तौरा ने भी सोनू को रेडियो कॉलर लगा कर जंगल में छोड़ने का सुझाव वन विभाग को दिया है. कोर्ट ने केरल के डॉ राजीव टी.एस. द्वारा सोनू हाथी के लिये विभिन्न मौकों पर दी गई प्रचुर सहायता तथा ईलाज के लिये तारीफ करते हुऐ एनिमल वैलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया, छत्तीसगढ़ के वन विभाग के अधिकारियों की भी तारीफ की जिन्होंने सोनू हाथी के स्वास्थ का ध्यान रखा.