वीरेन्द्र गहवई, बिलासपुर। हाईकोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त और आयुक्त की नियुक्ति के मापदंड को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है। जस्टिस एन के व्यास की सिंगल बेंच ने याचिका खारिज करने के साथ ही नियुक्ति पर लगी रोक भी हटा दी।

दरअसल, अनिल तिवारी और डीके सोनी ने अपने अधिवक्ताओं के माध्यम से हाईकोर्ट में अलग-अलग याचिका दायर की थी। इसमें राज्य शासन द्वारा सूचना आयुक्त के लिए अनुभव की अनिवार्यता सहित अन्य मापदंडों को चुनौती दी गई थी। एक याचिकाकर्ता ने कहा कि वह पेशे से एक वकील हैं और उन्हें कानून के क्षेत्र में 23 वर्षों का अनुभव है। उन्होंने समिति द्वारा 9 मई 2025 के निर्णय को रद्द करने का निवेदन किया था, जिसके द्वारा मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर नियुक्ति के लिए याचिकाकर्ता की उम्मीदवारी को खारिज कर दिया गया था। एक अन्य याचिकाकर्ता ने कहा कि वकील और पीएचडी होने के साथ उन्हें 21 वर्ष का कार्य अनुभव है। इस आधार पर राज्य सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्ति के लिए याचिकाकर्ता की उम्मीदवारी पर विचार करने के लिए प्रतिवादियों को निर्देश जारी करने के लिए प्रार्थना की।उन्होंने नियुक्ति प्रक्रिया को निरस्त करने की मांग की थी।

ययाचिकाकर्ताओं का तर्क था कि जब मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त के पदों के लिए राज्य शासन की वैकेंसी निकली तब आवेदन के लिए अनुभव की कोई विशेष शर्त नहीं रखी गई थी लेकिन 9 मई 2025 को जारी इंटरव्यू कॉल लेटर में सर्च कमेटी ने विधि, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, समाज सेवा, प्रबंधन, पत्रकारिता, जनसंपर्क या प्रशासन के क्षेत्र में कम से कम 25 वर्षों के अनुभव की अनिवार्यता जोड़ दी। नये मापदंड के आधार पर 172 आवेदनों में से सिर्फ 51 को ही इंटरव्यू के लिए चुना गया। वहीं मुख्य सूचना आयुक्त के लिए 30 वर्ष के अनुभव की अनिवार्यता जोड़ दी गई।

मामले की सुनवाई 29 मई 2025 को समर वेकेशन के दौरान हुई। कोर्ट ने अगली सुनवाई तक अंतिम चयन प्रक्रिया आगे बढ़ाने पर रोक लगा दी थी। अंतरिम आदेश के मद्देनजर, राज्य शासन ने कार्यवाही स्थगित रखी। अंतिम सुनवाई के बाद कोर्ट ने पाया कि राज्य शासन द्वारा निर्धारित मापदंडों में कोई अवैधता या मनमानी नहीं है। पद के अनुरूप शासन को योग्यता और मापदंड तय करने का अधिकार है। इसके साथ ही याचिकाएं खारिज कर दी गई।