नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को धन शोधन मामले (money laundering case) में 31 मई से प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) की हिरासत में चल रहे सत्येंद्र जैन (Minister Satyendar Jain) को कैबिनेट मंत्री के पद से निलंबित करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी. याचिकाकर्ता पूर्व भाजपा विधायक नंद किशोर गर्ग की ओर से दलीलें दिए जाने के बाद न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद के साथ मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका को खारिज कर दिया.

मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में सत्येंद्र जैन को किया गया था गिरफ्तार

याचिकाकर्ता का कहना है कि हवाला कारोबार में कथित संलिप्तता को लेकर मनी लॉन्ड्रिंग मामले में मंत्री सत्येंद्र जैन को गिरफ्तार किया गया था और यह शासन में कानून बनाने वाले एक लोक सेवक के लिए ठीक नहीं है. इस दौरान यह कहा गया कि सत्येंद्र जैन को 2015-2016 में कोलकाता की एक फर्म के साथ हवाला लेनदेन में संलिप्तता को लेकर गिरफ्तार किया गया है. गिरफ्तारी प्रतिकूल और कानून के शासन के लिए असंगत है, क्योंकि वह एक लोक सेवक हैं, जिन्होंने जनता के हित में कानून के शासन को बनाए रखने की संवैधानिक शपथ ली है.

हम कानून बनाने वाले नहीं हैं- हाईकोर्ट

इसमें कहा गया है, “ऐसा परिदृश्य लोक सेवक पर लागू कानून के प्रावधान के विपरीत है, जिसे केंद्रीय सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1965 के नियम 10 के अनुसार 48 घंटे से अधिक की हिरासत के तुरंत बाद निलंबित माना जाता है.” न्यायालय ने इससे पहले सत्येंद्र जैन को उनके पद से हटाने का आदेश देने से इनकार कर दिया था. हाईकोर्ट ने कहा था कि हमें अपनी सीमाएं पता हैं. हमें कानूनों, नियमों और अधिसूचनाओं का पालन करना होगा. हम इससे आगे नहीं जा सकते. हम कानून बनाने वाले नहीं हैं.

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सत्येंद्र जैन और उनके सहयोगियों के ठिकानों पर की गई थी छापेमारी

बता दें कि सत्येंद्र जैन, जिनकी जमानत 31 मई से विभिन्न सुनवाई में खारिज कर दी गई थी, वर्तमान में शहर के सरकारी लोकनायक जय प्रकाश (एलएनजेपी) अस्पताल में भर्ती हैं, क्योंकि उन्होंने स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की शिकायत की थी. सीबीआई ने सत्येंद्र जैन, उनकी पत्नी और अन्य पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपराध का आरोप लगाया है. 31 मार्च को ईडी ने अस्थायी रूप से मंत्री के स्वामित्व वाली और नियंत्रित कंपनियों से संबंधित 4.81 करोड़ रुपए की अचल संपत्तियों को कुर्क किया था. 6 जून को ईडी ने सत्येंद्र जैन, उनकी पत्नी और उनके उन सहयोगियों से संबंधित कई स्थानों पर छापे मारे थे, जिन्होंने या तो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उनकी सहायता की थी या मनी लॉन्ड्रिंग की प्रक्रियाओं में भाग लिया था. छापेमारी के दौरान 2.85 करोड़ रुपए नकद और 1.80 किलोग्राम वजन के 133 सोने के सिक्के बरामद किए गए थे.

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दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा- ‘सीएम करेंगे विचार’

दिल्ली हाईकोर्ट ने मंत्री सत्येंद्र जैन को कैबिनेट पद से निलंबित करने की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए बुधवार को कहा कि इस बारे में अदालत नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री तय करेंगे. हाईकोर्ट ने कहा कि इस बारे में राज्य के सर्वोत्तम हित में मुख्यमंत्री ही विचार करेंगे कि क्या आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति को मंत्री के रूप में बने रहने की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं. मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ याचिकाकर्ता पूर्व भाजपा विधायक नंद किशोर गर्ग की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने दलील देते हुए कहा है कि सत्येंद्र जैन एक लोक सेवक हैं, जिन्होंने जनता के हित में कानून के शासन को बनाए रखने की संवैधानिक शपथ ली है और उन्हें हवाला लेनदेन में उनकी कथित भूमिका के आरोप में गिरफ्तार किया गया है.

सीएम को राज्य के सर्वोत्तम हित में करना चाहिए काम

पीठ ने आदेश में कहा कि मुख्यमंत्री मंत्रिमंडल के सदस्यों को चुनने और मंत्रिपरिषद की नियुक्ति से संबंधित नीति तैयार करने में अपने विवेक का प्रयोग करते हैं. भारत के संविधान की अखंडता को बनाए रखने के लिए मंत्रिपरिषद की सामूहिक जिम्मेदारी है. यह मुख्यमंत्री के लिए राज्य के सर्वोत्तम हित में कार्य करना है और यह विचार करना है कि क्या कोई व्यक्ति जिसकी आपराधिक पृष्ठभूमि है और/या उसके खिलाफ नैतिक अधमता से जुड़े अपराधों के आरोप लगाए गए हैं, उन्हें नियुक्त किया जाना चाहिए और उन्हें मंत्री के रूप में बने रहने की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं.” कोर्ट ने कहा कि सुशासन केवल अच्छे लोगों के हाथ में होता है.

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अदालत का काम मुख्यमंत्री को निर्देश देना नहीं- हाईकोर्ट

हाईकोर्ट ने कहा कि कोर्ट का काम मुख्यमंत्री को निर्देश देना नहीं है, लेकिन यह कर्तव्य है कि अहम पदों पर बैठे लोगों को हमारे संविधान के सिद्धांतों को कायम रखने में उनकी भूमिका की याद दिलाई जाए. अदालत ने कहा कि “न्यायालय अच्छे या बुरे के फैसले को लेकर नहीं है, मगर यह निश्चित रूप से संवैधानिक पदाधिकारियों को हमारे संविधान के लोकाचार को बनाए रखने, संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए याद दिला सकता है. एक उपधारणा है कि मुख्यमंत्री को ऐसे संवैधानिक सिद्धांतों द्वारा अच्छी तरह से सलाह और मार्गदर्शन दिया जाएगा.”

डॉ बीआर अंबेडकर की टिप्पणी का किया जिक्र

अदालत ने भारतीय संविधान के पिता माने जाने वाले डॉ बीआर अंबेडकर की ओर से की गई टिप्पणी का भी जिक्र किया, जिन्होंने संविधान सभा की बहस के दौरान कहा था कि भले ही एक संविधान अच्छा हो, मगर यह निश्चित रूप से तब खराब हो जाता है, जब इसे चलाने वाले गलत लोग होते हैं, इसके अलावा संविधान कितना भी बुरा हो, मगर यह तब अच्छा हो सकता है, यदि इसे चलाने वाले बहुत अच्छे हों, संविधान का काम पूरी तरह से संविधान की प्रकृति पर निर्भर नहीं करता है. आदेश में कहा गया है कि “यह अदालत बीआर अंबेडकर की टिप्पणियों से पूरी तरह सहमत है और यह उम्मीद करती है कि मुख्यमंत्री लोगों का नेतृत्व करने के लिए व्यक्तियों की नियुक्ति करते समय अपने में रखे गए उस भरोसे को कायम रखेंगे, जो एक प्रतिनिधि लोकतंत्र की नींव बनाता है.”