CG News : वीरेन्द्र गहवई, बिलासपुर. हाईकोर्ट ने तलाक को लेकर फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ पत्नी की अपील खारिज कर दी है. पति ने आरोप लगाया था कि पत्नी ने पीरियड्स नहीं आने की बीमारी छिपाकर शादी की थी, यह उसके साथ मानसिक क्रूरता है. इसके अलावा वे लंबे समय से अलग रहे हैं. जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की डिवीजन बेंच ने कहा कि दंपती के बीच रिश्ता सुधरना संभव नहीं. (हाईकोर्ट ने तलाक का फैसला रखा बरकरार)
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पति ने बताया कि एक दिन पत्नी ने उसकी माहवारी रुकने की जानकारी दी. वह उसे डॉक्टर के पास लेकर गया, डॉक्टर को पत्नी ने बताया कि वह पिछले 10 साल से पीरियड्स नहीं होने की समस्या से जूझ रही है. इसके बाद दूसरे डॉक्टरों से जांच में भी गर्भधारण में गंभीर समस्या सामने आई. पति का कहना था कि पत्नी और उसके परिवार ने यह जानकारी शादी से पहले जानबूझकर छिपाई. इस संबंध में पूछने पर पत्नी ने कहा कि अगर पहले बता देती तो आप शादी से मना कर देते, इसलिए अब मुझे स्वीकार करना होगा.
दरअसल, कबीरधाम में रहने वाले दंपती की शादी 5 जून 2015 को हिंदू रीति से हुई थी. दो महीने तक उनके बीच सबकुछ सामान्य रहा, इसके बाद विवाद शुरू हो गए. पति ने फैमिली कोर्ट में दिए गए आवेदन में दावा किया था कि शुरुआती दो महीनों तक पत्नी का व्यवहार सामान्य रहा, लेकिन बाद में उसने घर के बुजुर्ग माता-पिता, भतीजे-भतीजियों की जिम्मेदारी उठाने पर आपत्ति जताना शुरू कर दिया. इधर पत्नी का आरोप था कि शादी के बाद घर की नौकरानी को काम से हटा दिया गया और सभी घरेलू काम उससे कराए गए. दावा किया कि उसे ‘बांझ’ कहकर प्रताड़ित किया जाता था.
मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्षों ने माना, कि वे वर्ष 2016 से अलग रह रहे हैं. मेडिकल दस्तावेजों से यह भी स्पष्ट हुआ कि पत्नी का इलाज चल रहा था, पर वह यह साबित नहीं कर पाई कि उसकी स्थिति पूरी तरह ठीक हो गई है. कोर्ट ने पाया कि पति-पत्नी के बीच विवाद इतने गहरे हो चुके हैं कि वैवाहिक संबंध का सामान्य स्थिति में लौटना संभव नहीं है. तलाक को बरकरार रखते हुए हाई कोर्ट ने पत्नी की आर्थिक स्थिति को देखते हुए 5 लाख रुपए स्थायी भरण-पोषण तय किया. पति को आदेश दिया है कि वह चार महीने भीतर यह राशि पत्नी को दे.
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