बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में संसदीय सचिव के पद बहाल रहेंगे या फिर इन्हें अवैधानिक घोषित कर दिया जाएगा, इस पर हाईकोर्ट अपनी अंतिम सुनवाई 4 सितंबर यानी सोमवार को करेगी. जब ये मामला दायर किया गया था तब कई राज्यों के मामले देश के अलग-अलग हाईकोर्ट में पेंडिग थे. लेकिन मामले के निर्णायक मोड़ तक पहुंचते-पहुंचते असम और सिक्किम के मामले में फैसला आ चुका है. जिसमें संसदीय सचिवों के पद को असंवैधानिक बताया गया है.
सोमवार को जब याचिका की सुनवाई होगी तो सरकार और संसदीय सचिवों की ओर से 16 वकीलों की फौज होगी. जबकि मोहम्मद अकबर की तरफ से अमृतो दास और राकेश चौबे की ओर से अभ्युदय सिंह पैरवी करेंगे.
इस मामले में सुनवाई के निर्णायक मौके पर मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह ने व्यक्तिगत रुप से पक्षकार बनाए जाने का विरोध किया है. उनकी दलील है कि ये फैसला उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री लिया है. लिहाज़ा उन्हें व्यक्तिगत रुप से पक्षकार न बनाया जाए. इस पर भी सुनवाई सोमवार को होगी. इससे पहले ये सुनवाई पिछले हफ्ते होनी थी लेकिन इसे टाल दी गई.
चूंकि किसी भी कोर्ट का फैसला दूसरे फैसले में नज़ीर होती है. लिहाज़ा छत्तीसगढ़ के मामले की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का निर्णय काफी अहम है. इस मामले में तीन याचिकाएं लगी हैं. एक याचिका राकेश चौबे और दो याचिकाएं मोहम्मद अकबर की ओर से लगी हैं. अपनी याचिकाओं में मोहम्मद अकबर और राकेश चौबे ने संसदीय सचिवों की नियुक्ति को चुनौती दी है.
मोहम्मद अकबर की एक याचिका सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं. अपनी दूसरी याचिका में मोहम्मद अकबर ने मांग की है कि संसदीय सचिवों को लाभ का पद मानते हुए उनकी विधानसभा सदस्यता ख़त्म की जाए.
सरकार की दलील है कि मध्यप्रदेश के 1967 के कानून में संशोधन करके छत्तीसगढ़ विधानसभा सदस्यता निवारण अधिनियम 2007 कानून बनाया है उसमें संसदीय सचिवों को लाभ के पद के दायरे से बाहर रखा गया है. लेकिन इस पर मोहम्मद अकबर की दलील है कि सरकार के नियम के मुताबिक भी वो संसदीय सचिव ही लाभ के पद के दायरे से बाहर माने जा सकते हैं जिसकी नियुक्ति राज्यपाल ने की हो.
जबकि प्रदेश के सभी संसदीय सचिवों की नियुक्ति मुख्यमंत्री ने की है. जिसका कोई संवैधानिक आधार नहीं है. लिहाज़ा इन्हें दोहरा लाभ मिला है और इन्हें विधानसभा की सदस्यता के अयोग्य घोषित किया जाए. अगर कोर्ट ने याचिकाकर्ता की मांग मान ली तो सरकार के लिए संकट खड़ा हो जाएगा.
इस फैसले पर प्रदेश के 11 संसदीय सचिवों की पैनी नज़र है कोर्ट ने अगस्त से इनके काम करने पर रोक लगा रखी है. संसदीय सचिव पद पर काबिज चंपादेवी पावले का कहना है कि हाईकोर्ट का जो भी फैसला होगा हमें स्वीकार होगा.