दिल्ली हाईकोर्ट(Delhi Highcourt) ने राजधानी के सरकारी अस्पतालों(Government Hospital) की खराब स्थिति पर अपनी चिंता व्यक्त की है. कोर्ट ने बताया कि पिछले एक वर्ष से अस्पतालों की समस्याओं और सुधार के लिए बैठकें आयोजित की जा रही हैं, लेकिन अब तक कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया है. इस संदर्भ में, दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक को निर्देश दिया गया है कि वे अपनी देखरेख में राज्य के सरकारी अस्पतालों में सुधार के लिए आवश्यक कदम उठाएं.
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस मनमीत पी. अरोड़ा की बेंच ने एम्स के निदेशक को निर्देश दिया है कि वे डॉ. एसके सरीन कमेटी द्वारा दिए गए सुझावों को लागू करने के लिए चार सप्ताह के भीतर एक योजना तैयार करें. इसके साथ ही, बेंच ने यह भी कहा कि उन्हें इस प्रक्रिया की शुरुआत की तारीख बतानी होगी, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि सिफारिशों पर कब से कार्य प्रारंभ होगा. हाईकोर्ट की बेंच ने उल्लेख किया कि वर्ष 2017 में जनहित याचिका पर स्वत: संज्ञान लेते हुए सुनवाई शुरू की गई थी, लेकिन आठ वर्षों के बाद भी स्थिति में कोई प्रगति नहीं हुई है. केवल समस्या को समझना ही पर्याप्त नहीं है; उसका समाधान भी आवश्यक है. इसलिए, सुधार के प्रयासों के बजाय मरीजों के हित में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है.
कमेटी ने की सिफारिशें: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक वर्ष पूर्व राजधानी के सरकारी अस्पतालों की खराब स्थिति का आकलन करने के लिए डॉ. एस के सरीन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था. जुलाई 2024 में इस समिति ने अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत की, जिसके बाद हाईकोर्ट ने दिल्ली के अस्पतालों की निगरानी का कार्य एम्स के निदेशक को सौंप दिया.
अभी डॉक्टरों की भारी कमी
अस्पतालों में चिकित्सकों की गंभीर कमी का सामना किया जा रहा है. इस संदर्भ में, डॉ. सरीन की समिति ने सुझाव दिया कि निजी क्षेत्र में कार्यरत चिकित्सकों को घंटे के अनुसार भुगतान करके ओपीडी और ऑपरेशन के लिए आमंत्रित किया जाए. सरकार ने जानकारी दी है कि पांच अस्पतालों को इस नई विधि के लिए चयनित किया जा रहा है, जहां पहले इस प्रक्रिया का परीक्षण किया जाएगा. इसके परिणामों के आधार पर आगे की कार्रवाई पर विचार किया जाएगा.
दो माह का स्टॉक जरूरी: दवाइयों का दो महीने का भंडार तैयार किया जाएगा. इसके अतिरिक्त, वार्षिक आवश्यकताओं के 50 प्रतिशत दवाइयों और अन्य उपकरणों के लिए बजट पहले से निर्धारित किया जाएगा.
अधिकारियों के साथ बैठक कर रिपोर्ट पेश करें
हाईकोर्ट ने एम्स के निदेशक को निर्देश दिया है कि वे दिल्ली सरकार के संबंधित अधिकारियों के साथ बैठक करें और यह सुनिश्चित करें कि सभी सिफारिशों को लागू करने की तिथि निर्धारित की जाए. बेंच ने स्पष्ट किया कि इस बार केवल सुनवाई नहीं होगी, बल्कि सरकारी अस्पतालों में सुधार की वास्तविक स्थिति भी सामने आनी चाहिए.
जन औषधि केंद्र खोलें
प्रत्येक अस्पताल में सस्ती दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए जन औषधि केंद्र स्थापित करने का प्रस्ताव संबंधित विभाग को प्रस्तुत किया गया है, जिससे लोगों को किफायती दवाएं प्राप्त हो सकें.
सरकार की दलीलें
अस्पताल में खराब उपकरणों की मरम्मत में देरी करने वाले व्यक्ति पर आर्थिक दंड लगाया जा रहा है.
डॉक्टरों के साथ-साथ नर्सिंग और अन्य पैरा मेडिकल स्टाफ की कमी को संविदा के आधार पर नियुक्तियों के माध्यम से पूरा किया जा रहा है.
एमबीबीएस पास करने वाले छात्रों के लिए सरकारी अस्पतालों में तीन साल तक सेवा देना अनिवार्य किया जा रहा है, जिससे उन्हें मेडिकल रेजिडेंट ऑफिसर बनने में मदद मिलेगी.
खून की जांच अब अस्पतालों के अलावा मोहल्ला क्लीनिक में भी की जा रही है, जहां मरीजों को दवाइयां भी उपलब्ध कराई जा रही हैं.
दिल्ली आरोग्य कोष के माध्यम से गंभीर मरीजों की जांच प्राइवेट लैब में कराई जा रही है, और इस प्रक्रिया में तेजी लाने की योजना बनाई जा रही है.
हर वर्ष अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट या निदेशक को पांच करोड़ रुपये दवाइयों और मशीनों की खरीद के लिए अलग से आवंटित करने का प्रस्ताव भेजा गया है, जिस पर विचार चल रहा है.
प्रत्येक जिले में हमेशा पांच एंबुलेंस उपलब्ध रखने की सिफारिश की गई थी. सरकार ने जानकारी दी है कि वर्तमान में हर जिले में छह से सात कार्डियो वेसिकल लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस मौजूद हैं.
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- उत्तर प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- मनोरंजन की बड़ी खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक